मिट्टी के बर्तन और कुल्हड़ तक सीमित रहने वाले कुम्हार अब नए कलेवर में हैं. चाहे महिला कुम्हार हो या युवा कुम्हार ने चीनी आइटम्स को बाजार से बाहर करने की ठान ली है. इसके लिए ये लोग दिन-रात मेहनत कर रहे हैं और बेहतरीन डिजाइंस बनाने में जुटे हुए हैं.
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वाराणसी: चीन के खिलाफ छेड़ी गई भारत की आर्थिक सर्जिकल स्ट्राइक में हमारे देश के कुम्हार भी योगदान दे रहे हैं. वाराणसी के कुम्हारों ने चाइनीज सामानों को धूल चटाने के लिए ट्रेनिंग भी लेनी शुरू कर दी है. खादी ग्रामोद्योग उन्हें आत्मनिर्भर बनने की ट्रेनिंग दे रहा है और सिखा रहा है कि वो कैसे अपने कौशल का इस्तेमाल करके चीन का कब्जा डेकोरेशन और क्ले मार्केट से हटा सकते हैं.
परंपरागत चीजों को मिल रही है तवज्जो
आत्मनिर्भर भारत के अभियान के तहत इस बार त्योहारों पर वाराणसी में परंपरागत चीजों को तवज्जो देने के तैयारी है. इसके लिए खादी ग्रामोद्योग वाराणसी में काशी के कुम्हार परिवारों को मिट्टी के झूमर और अन्य सजावटी सामान के साथ दीये और लैंप बनाने के लिए विशेष ट्रेनिंग दे रहा है. बाजार में कभी चाइनीज फ्लावर पाट और चाइनीज लैम्प की भरमार थी अब बाजारों से उन्हें दूर करने की कोशिश तेज हो गई है. वाराणसी में खादी ग्रामोद्योग कुम्हारों को ट्रेनिंग देकर उनसे चाइनीज सामानों से बेहतर डिजाइन तैयार करवा रहा है और तैयार माल को बाजार में खपत भी करा रहा है.
1000 कुम्हार परिवारों को ट्रेनिंग देने का लक्ष्य
खादी ग्रामोद्योग के निदेशक डीएस भाटी का कहना है कि वाराणसी के 80 कुम्हार परिवारों को ट्रेनिंग दी जा चुकी है और आने वाले दिनों में कई अन्य उत्पादों के साथ लगभग 1000 परिवारों को ट्रेनिंग देने का लक्ष्य है. खादी परिवार का ये प्रयास निश्चित तौर पर भारत को एक नया रूप प्रदान करेगा.
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काशी के कुम्हार कर रहे हैं जी-तोड़ मेहनत
मिट्टी के बर्तन और कुल्हड़ तक सीमित रहने वाले कुम्हार अब नए कलेवर में हैं. चाहे महिला कुम्हार हो या युवा कुम्हार ने चीनी आइटम्स को बाजार से बाहर करने की ठान ली है. इसके लिए ये लोग दिन-रात मेहनत कर रहे हैं और बेहतरीन डिजाइंस बनाने में जुटे हुए हैं. बाजार में जिन चीजों की ज्यादा डिमांड होती है, कुम्हार उन्हें अपने चाक पर खूबसूरत आकार दे रहे हैं.
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