Independence Day 2024: साल 1857 में हिंदुस्तान को आजाद कराने के लिए क्रांति का बिगुल बज चुका था. क्रांतिकारियों के दिल और दिमाग में सिर्फ आजाद भारत की कल्पना थी. क्रांतिकारी मर-मिटने को आमादा हो गए थे. भारत की आजादी की लड़ाई में जौनपुर के हौज गांव ने अहम भूमिका निभाई, इस गांव के लोगों ने 1857 की लड़ाई में कई अंग्रेजों को मौत के घाट उतार दिया था.
Trending Photos
जौनपुर/अजीत सिंह: यूपी के जौनपुर में शहीदों की चिंताओं पर लगेगें हर बरस मेले यह निशा बाकी होगा...किसी कवि द्वारा लिखी गयी यह लाइनें जौनपुर में इस शहीद स्मारक पर सटीक बैठती हैं. भारत की आजादी की लड़ाई में जौनपुर के हौज गांव ने बेहद अहम भूमिका निभाई. इस गांव के लोगों ने 1857 की लड़ाई में कई अंग्रेजों को मौत के घाट उतार दिया था.जौनपुर का हौज गांव, जहां अंग्रेजी हुकूमत ने एक साथ 15 लोगों को सूली पर चढ़ा दिया था. भारत की आजादी की लड़ाई में जौनपुर के हौज गांव ने बेहद अहम भूमिका निभाई थी. इस गांव के लोगों ने 1857 की लड़ाई में कई अंग्रेजों को मौत के घाट उतार दिया था.
आज़ादी की लड़ाई में अपना योगदान देने वाले गांव
भारत की आजादी के 78 साल पूरे होने पर हम उन शहीदों को याद कर रहे हैं, जिन्होंने देश के लिए अपनी जान तक की परवाह नहीं की. ऐसे ही एक कहानी जौनपुर से जुड़ी हुई है. इस गांव में उनकी याद गर्व के साथ हर साल मेला लगाया जाता है आज़ादी की लड़ाई में अपना योगदान देने वाले इस गांव का नाम पूरे भारत में गूंजने लगा. सन् 1986 में यहां पर शहीदों के सम्मान में एक स्मारक स्तंभ बनाया गया.
गांव के 15 लोगों को फांसी की सजा
जौनपुर शहर से करीब दस किलोमीटर की दूरी पर हौज गांव स्थित है. अंग्रेजों ने सन् 1858 में अंग्रेजी हुकुमत के सुपर वाइजर समेत एक दर्जन अंग्रेज अफसरों की हत्या करने के आरोप में गांव में ही फंसी की सजा दी गयी थी. गांव के बड़े बुजुर्ग ने बताया कि जब सन् 1857 में आजादी का विगुल बजा तो इस गांव के जमींदार बालदत्त ने युवाओं की एक टोली तैयार कर लिया. पांच जून 1857 को पता चला कि जौनपुर के सभी अंग्रेज अफसर सुपर वाइजर विगुड के नेतृत्व में वाराणसी जा रहे हैं. बालदत्त अपने साथ करीब एक सौ साथियों के साथ रास्ते में घेरकर सभी को मारने के बाद शव को दफ्न कर दिया. बाद में कुछ देश के गद्दारों ने झूठी गवाही देकर 15 लोगों को फंसी की सजा करा दी. उसके बाद बालदत्त को काला पानी की सजा सुनाई गई.
शहीदों के सम्मान में एक स्मारक स्तंभ
इन शहीदों की उपेक्षा काफी दिनो तक होती रही. 1986 में यहां पर शहीदों के सम्मान में एक स्मारक स्तंभ बनाया गया. चिंता हरण सिंह चौहान शहीद के वंशज ने बताया कि पूर्व कैबिनेट मंत्री जगदीश राय के पहल पर इस स्मारक पर हर 15 अगस्त को मेला लगने लगता था. इसमें नेता मंत्री अधिकारी आते थे. शहीदों को नमन करने के बाद सांस्कृतिक कार्यक्रम होता था. लेकिन बाद में इस स्मारक और गांव में होने वाले विकास कार्यो के नाम पर नेताओ का लगने वाले पत्थर को लेकर विवाद होने लगा. इसी गांव के अलग-अलग पार्टियो से ताल्लुक रखने वाले लोग एक दूसरे नेताओं का पत्थर उखाड़ फेकने लगे, जिसके कारण मेला लगना बंद हो गया. अब स्मारक के संगमरमर उखड़ने लगा है. स्मारक पर शहीदों के लिखे गये नाम धूमिल होने लग गए हैं. यही हाल रहा तो अगले बरस तक पूरी तरह से शहीदों का नाम मिट जायेगा.