कैसे पड़ा लौह पुरुष का नाम, सरदार वल्लभ भाई पटेल से जुड़े 10 अनसुने किस्से

Shailjakant Mishra
Oct 30, 2024

देसी रियासतों को किया एकजुट

सरदार वल्लभभाई पटेल के स्वतंत्रता के बाद देशी रियासतों का एकीकरण कर अखंड भारत के निर्माण में योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है.

नडियाद में जन्म

सरदार पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात के नडियाद में हुआ. 1897 में 22 साल की उम्र में उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की.

भारत का बिस्मार्क

आजादी के बाद विभिन्न रियासतों के एकीकरण में भूमिका निभाने के लिए पटेल को भारत का बिस्मार्क,लौहपुरुष भी कहा जाता है.

इंग्लैंड से वकालत

इंग्लैंड में वकालत पढ़ने के बाद भी उनका रुख पैसा कमाने की तरफ नहीं था. सरदार पटेल 1913 में भारत लौटे और अहमदाबाद में अपनी वकालत शुरू की.

लोकप्रियता

जल्द ही वे लोकप्रिय हो गए. मित्रों के कहने पर पटेल ने 1917 में अहमदाबाद के सैनिटेशन कमिश्नर का चुनाव लड़ा और जीत भी हासिल की.

चंपराण सत्याग्रह से प्रभावित

सरदार पटेल गांधीजी के चंपारण सत्याग्रह की सफलता से काफी प्रभावित थे.

किसानों का साथ

1918 में गुजरात के खेड़ा खंड में सूखा पड़ा. किसानों ने करों से राहत की मांग की, लेकिन ब्रिटिश सरकार ने मना कर दिया.

खेड़ा आंदोलन का नेतृत्व

गांधीजी ने किसानों का मुद्दा उठाया, पर वो अपना पूरा समय खेड़ा में अर्पित नहीं कर सकते थे. सरदार पटेल आगे आए और संघर्ष का नेतृत्व किया.

पहले गृह और उपप्रधानमंत्री बने

देश की स्वतंत्रता के बाद सरदार पटेल उपप्रधानमंत्री के साथ प्रथम गृह, सूचना तथा रियासत विभाग के मंत्री भी थे.

भरत रत्ना से नवाजा गया

सरदार पटेल के निधन के 41 वर्ष बाद 1991 में भारत के सर्वोच्च राष्ट्रीय सम्मान भारतरत्न से उन्हें नवाजा गया.

स्टेच्यू ऑफ यूनिटी

गुजरात में नर्मदा के सरदार सरोवर बांध के सामने सरदार वल्लभभाई पटेल की 182 मीटर ऊंची लौह प्रतिमा का निर्माण किया गया है.

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