कृपाचार्य महाभारत युद्ध में कौरवों की ओर से लड़े थे और वह जिंदा बचे 18 महायोद्धाओं में से एक थे.
कृपाचार्य शरद्वान के पुत्र थे. उनकी माता का नाम नामपदी था, जो एक देवकन्या थीं. कृपाचार्य की बहन कृपी का विवाह गुरु द्रोण के साथ हुआ था.
कृपाचार्य की शक्ति से अर्जुन और भीम भी भय खाते थे, उन्होंने कभी कौरवों के इस पराक्रमी योद्धा से युद्ध नहीं किया.
कृपाचार्य ब्राह्मण थे, दुर्योधन भी उनकी शक्तियों के बारे में वाकिफ नहीं था. लेकिन भीष्म पितामह ने दुर्योधन को उनकी सच्चाई बताई.
भीष्म ने बताया कि कृपाचार्य में एक या दो नहीं बल्कि पुरे के पुरे साठ हजार महारथियों को अकेले हारने की क्षमता रखते हैं.
इसके अलावा कृपाचार्य को पिता शरद्वान की तरह हीं अनेक युद्ध विद्याओं में महारत हासिल है.
कृपाचार्य चाहते तो पांडव सेना में हाहाकार मचा सकते हैं,लेकिन वह जानते थे कि धर्म पांडवों के साथ है, इसलिए उन्होंने पूरी शक्ति का प्रयोग नहीं किया.
कृपाचार्य को वरुणास्त्र,अग्नेआस्त्र,इन्द्रास्त्र और ब्रह्मस्त्र का ज्ञान था. वह भगवान परशुराम और गुरु द्रोण के समान ही शास्त्र और शस्त्र का ज्ञान रखने वाले एक ब्राह्मण हैं.
पौराणिक पात्रों की यह कहानी धार्मिक मान्यताओं और ग्रंथों में किए गए उल्लेख पर आधारित है. इसके काल्पनिक चित्रण का जी यूपीयूके हूबहू समान होने का दावा या पुष्टि नहीं करता.