मिर्जा गालिब को गुजरे 150 साल से ज्यादा हो चुके हैं लेकिन आज भी उनके कहे शेर लोगों की जुबां पर आ जाते हैं. पढ़िए उनके कुछ ऐसे ही बेहतरीन शेर.
उम्र भर ग़ालिब यही भूल करता रहा , धूल चहेरे पे थी और आइना साफ करता रहा
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पर दम निकले...बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले
उन के देखे से जो आ जाती है मुंह पर रौनक़...वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है.
हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है ...तुम्हीं कहो कि ये अंदाज़-ए-गुफ़्तुगू क्या.
हमको मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन,..दिल के खुश रखने को 'ग़ालिब' ये ख़याल अच्छा है.
यही है आज़माना तो सताना किसको कहते हैं, अदू के हो लिए जब तुम तो मेरा इम्तहां क्यों हो.
इश्क़ पर जोर नहीं है ये वो आतिश 'ग़ालिब',..कि लगाये न लगे और बुझाये न बुझे.
इस सादगी पे कौन न मर जाए ऐ ख़ुदा ,,,लड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहीं.