मृत्यु के बाद तेरहवीं का संस्कार क्यों जरूरी, क्या हैं हिन्दू धर्म की धार्मिक मान्यताएं

Terahvi Sanskar

हिन्‍दू धर्म में किसी के मृत्‍यु के बाद 13 दिनों तक शोक मनाया जाता है. इसके बाद आखिरी में तेरहवीं की जाती है. तो आइये जानते हैं हिन्‍दू धर्म में क्‍यों किया जाता है तेरहवीं संस्‍कार?.

भटकती है आत्‍मा

गरुड़ पुराण के मुताबिक, जब किसी व्‍यक्ति की मृत्‍यु होती है तो उसकी आत्‍मा 13 दिनों तक घर पर ही भटकती रहती है.

तेरहवीं क्‍यों करते हैं

गरुड़ पुराण के मुताबिक, किसी की मृत्‍यु के बाद अगर तेरहवीं न की जाए तो उसकी आत्‍मा पिशाच योनी में ही भटकती रहती है.

यमलोक की यात्रा

गरुड़ पुराण के मुताबिक, जब किसी व्‍यक्ति की मृत्‍यु होती है तो यमदूत उसकी आत्‍मा को यमलोक ले जाते हैं.

आत्‍मा भटकती है

मृत्‍यु के 24 घंटे तक आत्‍मा यमलोक में ही रहती है. इसके बाद यमदूत आत्‍मा को उसके परिजनों के बीच छोड़ देती है.

शांति के लिए पिंडदान

वहीं, 24 घंटे बाद आत्‍मा की शांति के लिए पिंडदान किया जाता है. 10 दिनों तक यह प्रक्रिया चलती रहती है.

11वें और 12वें दिन

इसके बाद 11वें और 12वें दिन के पिंडदान से शरीर पर मांस और त्‍वचा का निर्माण होता है

यमलोक तक यात्रा पूरी

13 दिन बाद तेहरवीं के दिन पिंडदान से आत्‍मा की यमलोक तक की यात्रा संपन्‍न हो जाती है.

ब्राहमण भोज जरूरी

तेरहवीं में ब्राहमण भोज करना जरूरी माना गया है. ब्राह्मणों द्वारा सब क्रिया कराई जाती है. ऐसे में अगर ब्राह्मण भोज न करवाया जाए तो मृतक की आत्मा पर ब्राह्मणों का कर्ज चढ़ जाता है.

आत्‍मा को मुक्ति नहीं

गरुड़ पुराण के मुताबिक, ब्राह्मण भोज के बिना मृतक की आत्मा को मुक्ति नहीं मिलती और उसे कष्ट भोगने पड़ते हैं.

डिस्क्लेमर

यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. zeeupuk इस जानकारी के लिए जिम्मेदारी का दावा नहीं करता है.

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