उद्धव ठाकरे को क्यों याद आए श्रीराम, ट्रेन में भरकर क्यों अयोध्या पहुंचाए शिवसैनिक?
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उद्धव ठाकरे को क्यों याद आए श्रीराम, ट्रेन में भरकर क्यों अयोध्या पहुंचाए शिवसैनिक?

एनडीए का घटक दल होने के बावजूद शिवसेना आखिर क्यों बीजेपी शासित राज्य उत्तर प्रदेश में आकर शक्ति प्रदर्शन कर रही है. क्यों शिवसेना को भगवान राम याद आ गए हैं? इन सारे सवालों का जवाब हम समझने की कोशिश करते हैं.

साल 2012 में बाल ठाकरे के निधन के बाद से उद्धव ठाकरे की अगुवाई में शिवसेना कमजोर होती जा रही है, वह अयोध्या के जरिए खोई साख हासिल करने की जुगत में है.

नई दिल्ली: पिछले तीन दिनों से अयोध्या और राम मंदिर का मुद्दा मीडिया में बना हुआ है. अयोध्या से जुड़ी खबरों में शिवसेना और उद्धव ठाकरे भी सुर्खियां बंटोर रहे हैं. उद्धव ने ट्रेेनों में भरकर महाराष्ट्र से शिवसैनिकों को लेकर अयोध्या पहुंचाया. ऐसे में लोगों के जेहन में कई तरह के सवाल उठ रहे हैं. सवाल है कि जिस राम मंदिर के मुद्दे को बीजेपी उठाती रही है, उसे अचानक शिवसेना क्यों उठा रही है? उत्तर भारतीयों की खिलाफत करके राजनीति चमकाने वाले उद्धव ठाकरे शिवसेना के हजारों कार्यकर्ताओं के साथ अचानक उत्तर प्रदेश क्यों आ गए हैं. एनडीए का घटक दल होने के बावजूद शिवसेना आखिर क्यों बीजेपी शासित राज्य में आकर शक्ति प्रदर्शन कर रही है. इस पूरे घटनाक्रम के पीछे क्या वजह है? इन सारे सवालों का जवाब हम समझने की कोशिश करते हैं.

  1. राम मंदिर के मुद्दे पर BJP को घेरना चाहते हैं उद्धव
  2. पिता बाल ठाकरे की तरह जमीनी नेता की छवि बनाना चाहते हैं उद्धव
  3. आगामी चुनावों में महाराष्ट्र में शिवसेना का सीएम चाहते हैं उद्धव

महाराष्ट्र में CM की कुर्सी पर उद्धव की नजर
शिवसेना के संस्थापक बाला साहेब ठाकरे जमीनी नेता थे, जबकि उनके बेटे उद्धव ठाकरे को पार्टी विरासत में मिली है. राजनीति के जानकार मानते हैं कि जनता के बीच बाल ठाकरे की तरह उद्धव की स्वीकार्यता नहीं है. पिता के शागिर्द रहे उद्धव इस बात को बखूबी समझते हैं. उद्धव के नेतृत्व में शिवसेना किस तरह कमजोर हो रही है इसकी बानगी महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के पिछले कुछ चुनाव परिणामों में नजर आती है. रामजन्म भूमि आंदोलन के बाद महाराष्ट्र में 1995 में पहला चुनाव हुआ था. इसमें शिवसेना को सबसे ज्यादा 73 और बीजेपी को 65 सीटें मिली थीं. 1999 के चुनाव में शिवसेना को 69 और बीजेपी को 56 सीटें मिली थीं. 2004 के विधानसभा चुनाव में शिवसेना को 62 और बीजेपी को 54 सीटें मिली थीं.

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2009 में बीजेपी को 46 और शिवसेना को 45 सीटों से संतोष करना पड़ा था. ये सारे चुनाव बीजेपी और शिवसेना ने मिलकर लड़े थे, लेकिन 2014 के विधानसभा चुनाव में दोनों दलों में तल्खी आ गई थी. इसके बाद दोनों ने अलग-अलग भाग्य आजमाया, जिसमें बीजेपी को 122 और शिवसेना को 63 सीटों से संतोष करना पड़ा. काफी ना-नकुर के बाद शिवसेना बीजेपी की देवेंद्र फडणवीस सरकार में शामिल हो गई. विधानसभा चुनाव में सीटें कम आने के चलते शिवसेना को मुख्यमंत्री का पद नहीं मिल पाया. यह टीस उद्धव को आजतक परेशान कर रही है.

बाबरी विध्वंस में शिवसेना के कार्यकर्ताओं ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था, जिसके चलते बाल ठाकरे की छवि एक कट्टर हिंदू नेता के रूप में स्थापित हुई थी. उद्धव पिता बाल ठाकरे के आजमाए फॉर्मूले को एक बार फिर से आजमाना चाहते हैं. वे चाहते हैं कि अगले साल होने वाले महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में बीजेपी से ज्यादा सीटें जीतकर एक बार फिर से बड़े भाई की भूमिका में आ सकें. शिवसेना चाहती है कि अगर 2019 में होने वाले विधानसभा में बीजेपी के साथ उसकी सरकार बनती है तो मुख्यमंत्री का पद उन्हीं के खाते में आए.

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बीजेपी की दुखती रग पर हाथ डाल रही है शिवसेना
एक बात यह भी है कि केंद्र और राज्य में सरकार की सहयोगी होने के बाद भी शिवसेना लगातार बीजेपी पर हमले करती आ रही है. इसके बावजूद बीजेपी उसे खास तवज्जो नहीं दे रही है. इस वक्त अयोध्या के मेयर से लेकर प्रधानमंत्री के पद तक बीजेपी सत्ता में है. ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि आखिर अयोध्या में राम मंदिर क्यों नहीं बन रहा है. कुल मिलाकर विपक्षी नेता से लेकर आम जनता तक अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के मुद्दे पर बीजेपी से सवाल पूछ रही है. शिवसेना समझ चुकी है कि राम मंदिर बीजेपी की दुखती रग है, इसलिए वह इसी मुद्दे को कुरेद रही है, ताकि इसके जरिए वह आगामी लोकसभा और विधानसभा चुनावों में सीट शेयरिंग में बीजेपी पर दबाव बना सके.

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शिवसैनिकों में जोश भरना चाहते हैं उद्धव ठाकरे
महाराष्ट्र में बीजेपी के मजबूत होने से शिवसेना के संगठन पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है. विचारधारा के मुद्दों पर शिवसेना और बीजेपी में काफी हद तक समानताएं हैं. ऐसे में संभावना है कि अगर शिवसेना कमजोर होती है तो उसके कार्यकर्ताओं का झुकाव बीजेपी की तरफ होगा. उद्धव इसी मुसीबत को टालने के लिए शिवसेना के कार्यकर्ताओं में जोश और उत्साह जगाना चाहते हैं. शायद इसी वजह से वह इतनी भारी संख्या में शिवसेना के कार्यकर्ताओं को उत्तर प्रदेश लेकर आए हैं. उद्धव पूरे परिवार के साथ अयोध्या पहुंचे हैं. इससे साफ संकेत है कि वह जनता और कार्यकर्ताओं को हिंदुत्व के मुद्दे पर जनता को क्या मैसेज देना चाहते हैं.

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बीजेपी पर दबाव बनाने के लिए शिवसेना ने इसलिए चुना यूपी
राजनीति के हिसाब से उत्तर प्रदेश का काफी महत्व है. ये भी कह सकते हैं कि इस वक्त बीजेपी का सबसे मजबूत गढ़ उत्तर प्रदेश ही है. यहां के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पीएम नरेंद्र मोदी के उत्तराधिकारी के रूप में देखा जा रहा है. पिछले करीब साढ़े चार साल की राजनीति पर गौर करें तो ये बात तो साफ हो चुकी है कि शिवसेना और बीजेपी का गठबंधन आगामी चुनावों में कायम रहेगा. हालांकि शिवसेना किसी भी कीमत पर महाराष्ट्र में अपनी ताकत बनाए रखना चाहती है. इसके लिए वह बीजेपी को निशाने पर लेने का एक मौका नहीं छोड़ना चाहती है. शायद इसलिए शिवसेना ने बीजेपी पर हमला करने के लिए उसके सबसे मजबूत गढ़ उत्तर प्रदेश को चुना है.

हिंदुत्व के मुद्दे पर उत्तर भारतीयों का भी साथ चाहते हैं उद्धव
शिवसेना महाराष्ट्र में उत्तर भारतीयों के खिलाफ आग उगलकर राजनीति करती है. जबकि पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनावों में बीजेपी उत्तर भारतीयों के मुद्दे पर नरमी दिखा चुकी है. माना जा रहा है कि शिवसेना हिंदुत्व के मुद्दे पर महाराष्ट्र और मुंबई में बसे उत्तर भारतीयों को अपने साथ लाना चाहती है. हालांकि ये तो 2019 में होने वाले लोकसभा और महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव का परिणाम आने के बाद ही स्पष्ट हो पाएगा कि आखिर उद्धव ठाकरे की रणनीति शिवेसना को कितना लाभ पहुंचा पाती है.

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