ZEE जानकारीः कैसे हमारे देश के विश्वविद्यालयों का माहौल खराब किया जा रहा है
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ZEE जानकारीः कैसे हमारे देश के विश्वविद्यालयों का माहौल खराब किया जा रहा है

रिपोर्ट के मुताबिक BHU में पूरी घटना का राजनीतिकरण 22 सितंबर 2017 से शुरू हो गया था . इस आंदोलन में कुछ राजनैतिक दलों के सदस्य, एक विशेष राजनीतिक विचारधारा के लोग, और दूसरे विश्वविद्यालयों के पूर्व छात्र, शामिल थे और छात्रों को अपने भाषण के ज़रिए उत्तेजित कर रहे थे.

ZEE जानकारीः कैसे हमारे देश के विश्वविद्यालयों का माहौल खराब किया जा रहा है

DNA में हमारा अगला विश्लेषण देश के तमाम विश्वविद्यालयों के छात्रों को समर्पित है. हमारी इस ख़बर को देखकर आपको पता चलेगा कि कैसे हमारे देश के विश्वविद्यालयों का माहौल खराब किया जा रहा है? हमारी इस ख़बर के केन्द्र में बनारस हिंदू University है. लेकिन इस ख़बर को समझने के लिए आपको कुछ तस्वीरें देखनी होंगी. ये तस्वीरें सितंबर 2017 की हैं. 21 सिंतबर 2017 को BHU में पढ़ने वाली एक लड़की ने अपने साथ हुई छेड़छाड़ की शिकायत की थी. और 22 सिंतबर को छेड़खानी की इस घटना के खिलाफ कुछ छात्राएं धरने पर बैठ गई थीं. और फिर अचानक छात्राओं का ये आंदोलन हिंसक हो गया था. इसके बाद 23 सितंबर को प्रदर्शनकारियों ने बनारस हिंदू University के कुलपति के आवास का घेराव किया और पथराव शुरू कर दिया. भीड़ ने BHU में कई वाहनों में आग लगाई, पेट्रोल पंप को जलाने की कोशिश की गई और पेट्रोल बम का इस्तेमाल भी किया गया .

इसके बाद पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर लाठीचार्ज कर दिया था. इस घटना के बाद BHU के कुलपति और प्रशासन की देशभर में आलोचना हुई थी. तमाम राजनीतिक दलों के बड़े बड़े नेताओं और प्रवक्ताओं ने इस घटना की निंदा की थी. और ये कहा था कि निर्दोष और मासूम छात्रों पर BHU प्रशासन ने लाठीचार्ज करवाया. 

इसके बाद BHU के कुलपति को हटाने के लिए दबाव डाला गया. उस वक्त BHU के कुलपति गिरीश चंद्र त्रिपाठी लगातार ये कह रहे थे कि विश्वविद्यालय को बदनाम करने के लिए ये साज़िश रची गई. बाहर के लोगों ने छात्रों के इस आंदोलन को हवा दी, जिसकी वजह से ये हिंसा हुई. लेकिन उनकी बातों को किसी ने नहीं सुना. बड़े बड़े बुद्धिजीवी पत्रकारों ने कुलपति गिरीश त्रिपाठी को अपने Prime Time Shows में Live बैठाकर उनसे जानबूझकर एक ख़ास एजेंडे के तहत सवाल पूछे थे. और ये साबित करने की कोशिश की गई थी, कि प्रोफेसर गिरीश चंद्र त्रिपाठी एक अयोग्य व्यक्ति हैं और ऐसे व्यक्ति के हाथ में BHU जैसे विश्वविद्यालय का प्रशासन नहीं होना चाहिए. 

लेकिन अब ऐसे तमाम बुद्धिजीवी पत्रकारों को एक बहुत बड़ा झटका लगा है. क्योंकि BHU में हुई हिंसा के लिए बनाई गई जांच कमेटी की रिपोर्ट आ गई है. और इस रिपोर्ट में साफ तौर पर ये लिखा गया है कि सितंबर 2017 में BHU में जो हिंसा हुई थी, वो एक ख़ास मकसद से की गई थी. उस हिंसा में बाहर के लोग भी शामिल थे. यानी छात्रों के शांतिपूर्ण प्रदर्शन को जानबूझकर भड़काया गया. और BHU की साख और गरिमा को गिराने की कोशिश की गई. इस हिंसा की जांच के लिए BHU प्रशासन की तरफ से एक जांच आयोग बनाया गया था. इस आयोग के अध्यक्ष इलाहाबाद हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस V.K. दीक्षित थे. जिन्होंने कई महीनों तक जांच करने के बाद अपनी रिपोर्ट सौंपी है.अब आपको विस्तार से ये बताते हैं कि इस जांच रिपोर्ट में क्या कहा गया है? 

जस्टिस वीके दीक्षित कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि है कि 22 और 23 सितबंर 2017 को BHU में हुई हिंसा की घटनाएं सुनियोजित थीं. इस दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी वाराणसी में थे. इसलिए कुछ बाहरी लोगों ने, प्रधानमंत्री की उपस्थिति का फायदा उठाते हुए BHU की छवि धूमिल करने की कोशिश की. छात्रों के आंदोलन की आड़ में बाहरी लोगों ने BHU की गरिमा को कमज़ोर करने की कोशिश की .रिपोर्ट में ये तथ्य भी सामने आया है कि छात्रों के शांतिपूर्ण प्रदर्शन में अराजक और असामाजिक तत्व शामिल हो गए. और उन्होंने अपने निहित स्वार्थों के लिए प्रदर्शन को गलत दिशा में मोड़ दिया . 

रिपोर्ट के मुताबिक BHU में पूरी घटना का राजनीतिकरण 22 सितंबर 2017 से शुरू हो गया था . इस आंदोलन में कुछ राजनैतिक दलों के सदस्य, एक विशेष राजनीतिक विचारधारा के लोग, और दूसरे विश्वविद्यालयों के पूर्व छात्र, शामिल थे और छात्रों को अपने भाषण के ज़रिए उत्तेजित कर रहे थे.रिपोर्ट में लिखा गया है कि BHU में छात्रों को भड़काने में आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह, All India Students' Association यानी AISA के नेता सुनील यादव और JNU के पूर्व छात्र मृत्युंजय सिंह शामिल थे. यही नहीं कैंपस में BHU Unsafe के पोस्टर लगाए गए और BHU के संस्थापक पंडित मदन मोहन मालवीय की प्रतिमा पर कालिख पोतने की कोशिश भी की गई. 

रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि 23 सितंबर 2017 की शाम को आंदोलन कर रही भीड़ हिंसक हो गई और BHU परिसर में पत्थरबाजी और तोड़फोड़ की गई. वाहनों में आग लगाई गई, पेट्रोल पंप को जलाने की कोशिश की गई और पेट्रोल बम का इस्तेमाल किया गया.यानी पहले आंदोलन को भड़काया गया और उसके बाद हिंसा हुई. जस्टिस वीके दीक्षित की रिपोर्ट में कहा गया है कि पीड़ित छात्रा ने अपना पक्ष जांच समिति के सामने नहीं रखा. पीड़ित लड़की छुट्टी पर चली गई थी. और बार बार सूचना देने के बाद भी पीड़ित लड़की आयोग के सामने बयान देने नहीं आई. रिपोर्ट में कहा गया है कि पीड़ित लड़की किसी भी तरह का बयान देने के लिए बिल्कुल भी इच्छुक दिखाई नहीं दे रही है .

BHU की डिप्टी चीफ़ प्रॉक्टर - प्रोफेसर श्रद्धा सिंह ने जांच समिति को बताया कि पीड़ित लड़की ने अपने शिकायती पत्र को 3 बार बदला और फिर तीसरी शिकायत पर FIR दर्ज़ की गई. प्रोफेसर श्रद्धा सिंह ने कहा कि आवेदन पत्र के तथ्य लगातार बदले गए जिनसे घटना को दूसरी दिशा देने का संकेत मिलता है.

इसी रिपोर्ट में एक चश्मदीद छात्रा का बयान भी दर्ज है. उस छात्रा ने अपने बयान में कहा है कि इस दौरान बाहरी प्रदर्शनकारी आज़ादी के नारे भी लगा रहे थे. मनुवाद और ब्राह्मणवाद के खिलाफ बातें हो रही थीं. यानी जो नारे दिल्ली में JNU के कैंपस में लगे थे, वहीं नारे BHU में भी दोहराए जा रहे थे. अपनी रिपोर्ट में जस्टिस वीके दीक्षित ने लिखा है कि तत्कालीन कुलपति गिरीश चंद्र त्रिपाठी का कार्यकाल नवंबर 2017 में खत्म हो रहा था. और उनसे असंतुष्ट रहने वाले कुछ लोग नहीं चाहते थे कि उनका कार्यकाल किसी भी हाल में आगे बढ़े.

जस्टिस वीके दीक्षित समिति ने BHU के तत्कालीन VC गिरीश चंद्र त्रिपाठी की भूमिका की भी जांच की . तत्कालीन VC को जांच में क्लीन चिट देते हुए कहा गया है कि गिरीश चंद्र त्रिपाठी की कार्यशैली और प्रशासनिक क्षमता पर किसी भी गवाह ने सवाल खड़े नहीं किए. कई गवाहों ने तत्कालीन कुलपति के आचरण, प्रशासनिक क्षमता और उनकी कार्यशैली की तारीफ़ की .यानी जानबूझकर BHU का माहौल खराब करने की कोशिश की गई. पूर्वाग्रह से पीड़ित कुछ लोगों ने BHU के बारे में दुष्प्रचार किया. 

BHU की स्थापना करने वाले पंडित मदन मोहन मालवीय की आत्मा भी आज बहुत दुखी होगी. पंडित मदन मोहन मालवीय ने कभी सपने में भी ये नहीं सोचा होगा, कि BHU के बारे में दुष्प्रचार करने के लिए, हमारे ही देश के कुछ लोग इस हद तक चले जाएंगे. वैसे BHU को बदनाम करने की कोशिश इससे पहले मार्च 2017 में भी हुई थी. कुछ मीडिया Reports में BHU की 4 लड़कियों को ये आरोप लगाते हुए देखा गया था कि BHU में लड़कों की तुलना में लड़कियों के साथ भेदभाव किया जाता है. मार्च 2017 में ऐसे आरोप लगाए गये थे, कि BHU में छात्राओं के Non Veg खाने पर पाबंदी है. छात्राओं पर अपनी पसंद के कपड़े पहनने पर पाबंदी है. और उनके कैम्पस में रात में देर से आने-जाने पर प्रतिबंध है. 

उस दौरान भी Zee News ने BHU से Ground Reporting की थी. और हमने पूरे देश को बताया था कि कैसे BHU के बारे में दुष्प्रचार किया गया. हमने BHU की कई छात्राओं से बात की थी, और सबने इन आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया था. ये सब इसलिए होता है क्योंकि हमारे देश के कुछ लोग Airconditioned कमरों में बैठकर, पहले से तय की गई कहानी लिख लेते हैं. और फिर उस कहानी को सच साबित करने के लिए... एजेंडा चलाते हैं. यानी देश में कुछ ऐसे बुद्धिजीवी और डिज़ाइनर पत्रकार सक्रिय हैं, जो एक एजेंडे के ज़रिये देश के सम्मानित विश्वविद्यालयों का माहौल खराब कर रहे हैं.

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