ZEE Jankari: वाराणसी में पीएम मोदी के रोड शो में इन चेहरों पर ध्‍यान दिया आपने...!
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ZEE Jankari: वाराणसी में पीएम मोदी के रोड शो में इन चेहरों पर ध्‍यान दिया आपने...!

नरेंद्र मोदी ने आज एक बार फिर बता दिया कि अपने खिलाफ पैदा किए गए माहौल को कैसे अपनी ताकत बनाया जाता है. आज हम इस Road Show का एक भव्य विश्लेषण करेंगे. लेकिन उससे पहले आपको ये पता होना चाहिए, कि नरेंद्र मोदी ने कैसे एक Road Show की मदद से ना सिर्फ वाराणसी बल्कि पूरे देश के वोटर्स को साधने की कोशिश की है.

ZEE Jankari: वाराणसी में पीएम मोदी के रोड शो में इन चेहरों पर ध्‍यान दिया आपने...!

आपने फिल्मी पर्दे पर Action से भरपूर, 3 घंटे की कई सुपरहिट फिल्में देखीं होंगी. लेकिन आज हम आपको 3 घंटे से भी बड़ी एक राजनीतिक फिल्म दिखाएंगे. ये फिल्म आज दुनिया के सबसे पुराने शहरों में से एक वाराणसी में चल रही है. इस राजनीतिक फिल्म में चुनावों वाले Action सीन हैं, ज़बरदस्त डायलॉग्स हैं, जनसैलाब है, गंगा की सौगंध है, और भक्ति की शक्ति वाली महा-आरती भी है. आप सोच रहे होंगे कि इस फिल्म का नाम क्या है... इसका नाम है काशी में गंगा की सौगंध

शुक्रवार 26 अप्रैल को प्रधानमंत्री मोदी वाराणसी से लोकसभा चुनाव के लिए अपना नामांकन भरेंगे. और नामांकन से ठीक पहले आज उन्होंने वाराणसी की गलियों और सड़कों पर एक ऐसा Road Show किया है. जिसकी तस्वीरें देखकर, उनके विरोधियों को पसीना आ गया होगा. नरेंद्र मोदी ने आज एक बार फिर बता दिया कि अपने खिलाफ पैदा किए गए माहौल को कैसे अपनी ताकत बनाया जाता है. आज हम इस Road Show का एक भव्य विश्लेषण करेंगे. लेकिन उससे पहले आपको ये पता होना चाहिए, कि नरेंद्र मोदी ने कैसे एक Road Show की मदद से ना सिर्फ वाराणसी बल्कि पूरे देश के वोटर्स को साधने की कोशिश की है.

इस Road Show की मदद से नरेंद्र मोदी, उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के गठबंधन को ध्वस्त करना चाहते हैं. और Road Show में जितनी बड़ी संख्या में लोग इकट्ठा हुए, उसे देखते हुए, ये कहा जा सकता है, कि आज वहां पर तिल रखने तक की जगह नहीं थी. 2014 के मुक़ाबले इस बार मोदी के Road Show में लोगों की संख्या ज़्यादा थी. पिछली बार ये संख्या क़रीब 5 लाख थी. और इस बार अनुमान है, कि 6 लाख से ज़्यादा लोगों ने Road Show में हिस्सा लिया.

सबसे दिलचस्प बात ये थी, कि इस Road Show में आध्यात्मिक और राजनीतिक यात्रा का अनोखा संगम था. वाराणसी सहित देश के अलग-अलग हिस्सों में सबकी नज़रें आज सिर्फ प्रधानमंत्री मोदी पर थीं. लेकिन कुछ तस्वीरें ऐसी भी थीं, जिनपर आपका ध्यान नहीं गया होगा. और ये तस्वीरें थीं, प्रधानमंत्री मोदी के काफिले के पीछे चल रहे नेताओं की. जिनमें उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से लेकर, शाहनवाज़ हुसैन, उत्तरप्रदेश बीजेपी के अध्यक्ष महेन्द्र नाथ पाण्डेय, अनुप्रिया पटेल और संजय निषाद जैसे चेहरे शामिल थे. अब कोई भी यही सोचेगा, कि इसमें कौन सी बड़ी बात हो गई. तो जो लोग ऐसा सोच रहे हैं, अब उन्हें इस सवाल का जवाब दे देते हैं.

मोदी के पीछे चल रहे रथ में पहला नाम था, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का. उनका प्रधानमंत्री के पीछे चलने का मकसद ये था, कि वो वाराणसी और पूर्वी उत्तर प्रदेश की जनता पर अपना गहरा असर डाल सकें. वो उत्तर प्रदेश में बीजेपी के सबसे प्रभावशाली नेता है, उनकी जो हिंदुत्व वाली छवि है उसका फायदा उठाने की कोशिश की गई है.

दूसरा नाम था, संजय निषाद का. जो निषाद समुदाय का एक बड़ा चेहरा है. पूर्वांचल में निषाद, मछुआरे, केवट और नाविकों का एक बहुत बड़ा वोट बैंक है. BSP और SP के गठबंधन के बाद ये जातिगत समीकरण बीजेपी के लिए और भी ज़्यादा महत्वपूर्ण हो गए हैं. 2018 में गोरखपुर में हुए लोकसभा के उपचुनाव में इसका सीधा असर दिखाई दिया था. उस वक्त लगभग तीन दशक तक बीजेपी के पास रही गोरखपुर लोकसभा सीट में, वो 2 प्रतिशत वोटों के अंतर से हार गई थी. और उस सीट को जीतने वाले नेता का नाम था, प्रवीण कुमार निषाद. जिन्होंने समाजवादी पार्टी के टिकट पर लोकसभा का उपचुनाव लड़ा था. हालांकि, अब वो बीजेपी में शामिल हो चुके हैं. और वो संजय निषाद के पुत्र हैं.
 
प्रधानमंत्री मोदी के पीछे चलने वाले नेताओं में एक नाम शाहनवाज़ हुसैन का भी था. जो बीजेपी का एक बड़ा मुस्लिम चेहरा है. और ऐसा कहा जा रहा है, कि इस Road Show में हिस्सा लेकर उन्होंने मुस्लिम समुदाय और बुनकरों को साधने की कोशिश की है. वाराणसी में 3 लाख से ज़्यादा मुस्लिम वोटर्स हैं. जबकि पूरे उत्तर प्रदेश में करीब 20 प्रतिशत मुस्लिम वोटर्स हैं.

इस लिस्ट में एक और नाम, उत्तर प्रदेश बीजेपी के अध्यक्ष महेन्द्र नाथ पाण्डेय का है. जिनके Road Show में शामिल होने का एक मतलब ये है, कि बीजेपी ब्राह्मण वोट बैंक को भी अपने हाथ से नहीं जाने देना चाहती. वाराणसी में क़रीब 3 लाख ब्राह्मण वोटर्स हैं. पूरे पूर्वांचल में ब्राह्मण एक बहुत बड़ा वोट बैंक हैं. और ऐसा माना जाता है, कि वो हमेशा से बीजेपी के कोर वोटर रहे हैं.
 
अपना दल की अनुप्रिया पटेल भी इस Road Show का हिस्सा बनीं. और ऐसा करने के पीछे का मकसद कुर्मी और पटेल समुदाय का समर्थन हासिल करना हो सकता है. वाराणसी में 2 लाख से ज़्यादा कुर्मी और पटेल वोटर्स हैं.

आज Road Show के दौरान सबसे दिलचस्प तस्वीर उस वक्त दिखाई दी, जब वाराणसी के मुस्लिम समुदाय के लोगों ने प्रधानमंत्री मोदी का भव्य स्वागत किया. भीड़ में खड़ा मुस्लिम समुदाय का एक व्यक्ति हाथों में शॉल लेकर प्रधानमंत्री के काफिले के आने का इंतज़ार कर रहा था. हालांकि, वो उनके क़रीब नहीं जा पा रहा था. लेकिन जैसे ही प्रधानमंत्री मोदी ने उस व्यक्ति को इशारा करते हुए देखा, तो उन्होंने खुद उसे शॉल अपनी तरफ फेंकने को कहा. और फिर नरेंद्र मोदी उसी शॉल को ओढ़कर आगे बढ़ गये.

लोकसभा चुनाव के तीन चरण पूरे हो चुके हैं. और चार चरणों में अभी चुनाव होना बाकी है. इन चारों ही चरणों में 240 लोकसभा सीटों पर मतदान होगा. इन 240 सीटों में से बीजेपी ने वर्ष 2014 में अकेले अपने दम पर 161 सीटें जीती थीं. यानी पिछले बार के लोकसभा चुनाव में बीजेपी द्वारा जीती गईं क़रीब 57 फीसदी सीटों पर अगले चार चरणों में मतदान होगा. और यही सीटें तय करेंगी, कि 2019 में बीजेपी की सत्ता में वापसी हो पाती है या नहीं. इनमें से ज़्यादातर सीटें बीजेपी और हिन्दुत्व का गढ़ माने जाने वाले राज्यों की हैं. इनमें मध्यप्रदेश की सभी 29 सीटें, राजस्थान की सभी 25 सीटें, झारखंड की सभी 14 सीटें, उत्तर प्रदेश की 54 सीटें, बिहार की 26 सीटें, महाराष्ट्र की 17 सीटें और ओडिशा की 6 सीटें शामिल हैं.

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है, कि हिन्दू आस्था का केंद्र माने जाने वाले वाराणसी में इतना बड़ा और भव्य Road Show करना और उसके बाद गंगा आरती में शामिल होना. ये एक सोची समझी रणनीति है. जिसके तहत बीजेपी वाराणसी और उससे जुड़ी पूर्वांचल की 30 से ज़्यादा सीटों को साधना चाहती है. और इसी के साथ उसका लक्ष्य बाकी बची 240 सीटों में से ज़्यादा से ज़्यादा सीटें जीतने का है. यहां गौर करने वाली बात ये भी है कि इन 240 सीटों में क़रीब 41 करोड़ वोटर्स हैं. जिनमें से 30 करोड़ से ज़्यादा हिन्दू हैं. इसलिए प्रधानमंत्री के बनारस वाले रोड शो में भारत के बहुसंख्यक वर्ग को साधने का राजनीतिक संदेश भी है.

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