वाघा बॉर्डर पर जिस तरह से मनाया गया बैसाखी पर्व, आप देखकर दांतों तले दबा लेंगे उंगलियां
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वाघा बॉर्डर पर जिस तरह से मनाया गया बैसाखी पर्व, आप देखकर दांतों तले दबा लेंगे उंगलियां

देशभर में नई फसल का त्योहार बैसाखी धूमधाम से मनाया गया. 1699 में दसवें सिख गुरु गोबिंद सिंह ने बैसाखी के दिन ही खालसा पंथ की नींव रखी थी. बैसाखी पर्व को लोगों ने अपने-अपने तरीके से मनाया. भारत-पाकिस्तान के बीच वाधा बॉर्डर पर कुछ इस तरह बैसाखी मनाई गई. जिसे आपको देखने के लिए हिम्मत जुटानी होगी. आप खुद ही देखें यह सनसनीखेज वीडियो- 

वाघा बॉर्डर पर जिस तरह से मनाया गया बैसाखी पर्व, आप देखकर दांतों तले दबा लेंगे उंगलियां

नई दिल्ली: देशभर में नई फसल का त्योहार बैसाखी धूमधाम से मनाया गया. बैसाखी पर्व को लोगों ने अपने-अपने तरीके से मनाया. भारत-पाकिस्तान के बीच वाधा बॉर्डर पर कुछ इस तरह बैसाखी मनाई गई. जिसे आपको देखने के लिए हिम्मत जुटानी होगी. आप खुद ही देखें यह सनसनीखेज वीडियो- 

सिखों के दसवें गुरु गोबिन्द सिंह ने बैसाखी के दिन ही आनंदपुर साहिब में वर्ष 1699 में खालसा पंथ की नींव रखी थी. इसका 'खालसा' खालिस शब्द से बना है, जिसका अर्थ शुद्ध, पावन या पवित्र होता है. चूंकि दशम गुरु, गुरु गोविन्द सिंह ने इसी दिन खालसा पंथ की स्थापना की थी. इसलिए वैशाखी का पर्व सूर्य की तिथि के अनुसार मनाया जाने लगा. खालसा-पंथ की स्थापना के पीछे गुरु गोबिन्द सिंह का मुख्य लक्ष्य लोगों को तत्कालीन मुगल शासकों के अत्याचारों से मुक्त कर उनके धार्मिक, नैतिक और व्यावहारिक जीवन को श्रेष्ठ बनाना था. 

इस प्रकार, बैसाखी त्यौहार अप्रैल माह में तब मनाया जाता है, जब सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है. यह खगोलीय घटना 13 या 14 अप्रैल को होता है. इस समय सूर्य की किरणें तेज होने लगती हैं, जो गर्मी के मौसम का आगाज करती हैं. इन गर्म किरणों के प्रभाव से जहां रबी की फसल पक जाती हैं, वहीं गरमा और खरीफ फसलों का मौसम शुरू हो जाता है. अब जिस देश की बुनियाद ही खेती पर टिकी हो, वहां इसका एक उत्सव तो बनता है. यही कारण है कि इस तिथि के आसपास भारत में अनेक पर्व-त्यौहार मनाए जाते हैं, जो वस्तुतः कृषिगत त्यौहार ही हैं.

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