राष्ट्रपिता की 150वीं जयंती के मौके पर भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद द्वारा प्रकाशित पुस्तक 'गांधी एंड हेल्थ@150' में महात्मा गांधी की आहार सारणी से लेकर उन्हें हुए रोगों के संबंध में जानकारी दी गई है.
Trending Photos
नई दिल्ली: महात्मा गांधी के निधन के 71 साल बाद उनकी अच्छी सेहत को लेकर बड़ा खुलासा हुआ है. गांधीजी के स्वास्थ्य पर आधारित एक पुस्तक में कहा गया है कि शाकाहारी भोजन और नियमित व्यायाम उनकी अच्छी सेहत का राज था. पुस्तक के अनुसार उन्होंने दृढ़ता से शाकाहारी भोजन अपनाया और खुले में व्यायाम किया क्योंकि उनका मानना था कि व्यायाम मन और शरीर के लिए उतना ही आवश्यक है जितना कि भोजन मन, हड्डियों और मांस के लिए.
राष्ट्रपिता की 150वीं जयंती के मौके पर भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद द्वारा प्रकाशित पुस्तक 'गांधी एंड हेल्थ@150' में महात्मा गांधी की आहार सारणी से लेकर उन्हें हुए रोगों के संबंध में जानकारी दी गई है.
राष्ट्रीय गांधी संग्रहालय में संरक्षित पुस्तक में दावा किया गया है कि गांधी के भोजन के साथ प्रयोगों, लंबे उपवासों और चिकित्सीय सहायता लेने में हिचकिचाहट ने कुछ मौकों पर उनकी सेहत को खराब कर दिया था और उन्होंने महसूस किया था कि "वह मृत्यु के दरवाजे पर हैं.’’
आईसीएमआर के "संग्रहणीय संस्करण" के अनुसार गांधी को अपने जीवन के विभिन्न चरणों के दौरान कब्ज, मलेरिया और प्लुरिसी (ऐसी स्थिति जिसमें फेफड़ों में सूजन आ जाती है) सहित कई बीमारियों का सामना करना पड़ा.
पुस्तक के अनुसार गांधी को तीन मौकों 1925, 1936 और 1944 में उन्हें मलेरिया हुआ. इसके अलावा वह प्लुरिसी से भी पीड़ित हुए. उन्होंने 1919 में बवासीर और 1924 में अपेंडिसाइटिस का ऑपरेशन भी कराया.
इस पुस्तक का विमोचन 20 मार्च को दलाई लामा ने किया. पुस्तक के अनुसार लंदन में छात्र जीवन में गांधीजी हर दिन शाम को लगभग आठ मील पैदल चलते थे और बिस्तर पर जाने से पहले 30-40 मिनट के लिए फिर से टहलने जाते थे. गांधीजी के अच्छे स्वास्थ्य का श्रेय ज्यादातर उनके शाकाहारी भोजन और खुली हवा में व्यायाम करने को दिया गया.
गांधीजी का वजन 46.7 किलोग्राम था. 70 वर्ष की आयु में उनका बॉडी मास इंडेक्स 17.1 था, जिसे स्वास्थ्य विशेषज्ञ "कम वजन" मानते हैं.
पुस्तक के 'नियर डेथ्स डोर' खंड में गांधी के भोजन के साथ प्रयोगों, लंबे उपवासों और चिकित्सा सहायता लेने से परहेज करने का वर्णन किया गया है, जिससे उनकी स्वास्थ्य स्थिति बिगड़ गई और उन्हें लगा कि "वह मृत्यु के दरवाजे पर हैं.’’
पुस्तक में उनके दृढ़ विश्वास का भी उल्लेख किया गया है कि बचपन में मां का दूध पीने के अलावा लोगों को अपने दैनिक आहार में दूध को शामिल करने की आवश्यकता नहीं है. उन्होंने गाय या भैंस का दूध नहीं पीने की प्रतिज्ञा की थी जो घरेलू उपचार और प्राकृतिक चिकित्सा पर उनके विश्वास को रेखांकित करता है.