नायडू ने कहा, ''यह याद रखना चाहिए कि ऐसे आर्थिक अपराध देश की हालत एवं समृद्धि के लिए प्रत्यक्ष चुनौती हैं.''
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बेंगलुरू: उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने उद्योग निकायों से कारोबारी समुदाय की छवि खराब करने वाले लोगों को बाहर निकालने का अनुरोध करते हुए रविवार को विभिन्न देशों से आर्थिक अपराधों में शामिल भगोड़ों को शरण ना देने की सहमति पर पहुंचने के लिए कहा. उन्होंने 'द हिंदू' द्वारा आयोजित कॉन्क्लेव ''द हडल'' में कहा, ''कुछ लोगों के आर्थिक अपराधों के मद्देनजर मैं उद्योग संस्थाओं से उन लोगों को बाहर निकालने का अनुरोध करता हूं जिन्होंने कारोबारी समुदाय की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाया.''
उपराष्ट्रपति ने कहा, ''विभिन्न देशों के लिए समय आ गया है कि वह आर्थिक भगोड़ों को आश्रय मुहैया ना कराने की सहमति पर पहुंचे.'' उनकी यह टिप्पणियां कारोबारी विजय माल्या के ब्रिटेन से भारत में संभावित प्रत्यर्पण के मद्देनजर आई है. आपको बता दें कि ब्रिटेन की एक अदालत ने गत वर्ष 10 दिसंबर को माल्या के प्रत्यर्पण का आदेश दिया था जो 9,000 करोड़ रुपये की कथित धोखाधड़ी और धन शोधन के सिलसिले में भारत में वांछित है.
नायडू ने कहा, ''यह याद रखना चाहिए कि ऐसे आर्थिक अपराध देश की हालत एवं समृद्धि के लिए प्रत्यक्ष चुनौती हैं.'' संसद और विधानसभाओं के संचालन में बाधाओं पर चिंता जताते हुए उन्होंने कहा कि अगर इन सदनों को लोगों की आकांक्षाओं को पूरा करना है तो राजनीतिक दलों के लिए अपने सांसदों तथा विधायकों के वास्ते आचार संहिता बनाने और प्रभावी संचालन सुनिश्चित करने का समय आ गया. उन्होंने कहा, ''यह वाकई दुर्भाग्यपूर्ण है कि अव्यवस्था और बाधाएं प्रक्रिया का हिस्सा बन गई हैं.''
उपराष्ट्रपति ने कहा कि उन्हें लगता है कि राजनीतिक दलों को चुनाव जीतने के लिए लोकलुभावन और अव्यावहारिक वादे नहीं करने चाहिए क्योंकि व्यर्थ की योजनाओं के कारण दीर्घकाल में देश की अर्थव्यवस्था पर असर पड़ेगा. नायडू ने कहा, ''हमें लोगों को उनके पैरों पर खड़ा करने के लिए सशक्त बनाने की जरुरत है ना कि उन्हें सरकारों पर निर्भर बनाते रहने की.'' उन्होंने कहा कि कार्यपालिका, विधानसभा और न्यायपालिका के बीच नाजुक संतुलन हमेशा बरकरार रहना चाहिए और किसी को भी दूसरे के अधिकार क्षेत्र में दखल नहीं देना चाहिए.
भारत में मीडिया के परिदृश्य पर उन्होंने कहा कि प्रबंधन के विचारों के अनुरूप कुछ खबरें एकतरफा पेश की जाती है और मीडिया संस्थान व्यावसायिक और राजनीतिक विचारों के लिए शुरू किए जा रहे है ना कि लोगों को बिना तोड़े मरोड़े और कांट छांट वाली खबरें देने के लिए. उन्होंने कहा कि खबरों को बिना सोचे समझे सनसनीखेज बनाना और पेड न्यूज कुछ ऐसे मुद्दे हैं जिनसे मीडिया पेशेवरों को खुद ही निपटना होगा.
(इनपुट भाषा से)