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नई दिल्ली: जानवरों और इंसानों के बीच प्रेम की कई कहानियां आपने सुनी होंगी. लेकिन आज हम आपको मध्य प्रदेश के पेंच टाइगर रिजर्व की एक ऐसी बाघिन की कहानी बताने जा रहे हैं, जो आपको हैरान कर देगी. इस बाघिन से जंगल के आसपास के गांववालों को इतना लगाव हो गया था कि बाघिन के मरने की खबर से लोगों की आंखें भर आईं. बाघिन के अंतिम संस्कार में पूरा गांव उमड़ आया और बाघिन का अंतिम संस्कार भी गांव के लोगों ने उसी तरह किया, जैसे किसी इंसान का अंतिम संस्कार किया जाता है.
बाघिन के अंतिम संस्कार से पहले शव यात्रा निकाली गई. उसके लिए चिता सजाई गई और फूल-मालाएं चढ़ाकर लोगों ने बाघिन को अंतिम विदाई भी दी. इसके बाद हिंदू रीति-रिवाज से उसे गांव की ही एक महिला ने मुखाग्नि दी. एक बाघिन के साथ गांववालों का संबंध इतना भावनात्मक था कि मुखाग्नि देने वाली महिला बोल पड़ीं कि इस जंगल की शान चली गई.
ये बाघिन इस जंगल की शान थी. लोग तो ये भी मानते हैं कि पन्ना जिले के जंगलों में बाघों की दहाड़ इसी बाघिन की देन है. मरते समय इस बाघिन की उम्र 17 साल थी. साल 2008 से 2018 के बीच 10 साल में इस बाघिन ने 29 शावकों को जन्म दिया था. भारत क्या, पूरी दुनिया में किस बाघिन ने इतने शावक पैदा नहीं किए. इसीलिए पेंच टाइगर रिजर्व में जो पर्यटक घूमने आते थे, उनको बताया जाता था कि ये बाघिन तो 'सुपर मॉम' है. जंगल के पास बसे लोग इतनी अंग्रेजी नहीं जानते, इसलिए गांव वाले इस बाघिन को 'माताराम' कहते थे.
#DNA : एक बाघिन का 'सनातन' अंतिम संस्कार@sudhirchaudhary
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— Zee News (@ZeeNews) January 20, 2022
माताराम दूसरी बाघिनों से अलग थी, इसलिए उसे अंतिम विदाई भारतीय संस्कृति के हिसाब से दी गई. वैसे भारत की संस्कृति तो यही है कि इसमें जंगल, जमीन, नदी, पहाड़, पेड़, पक्षी, सबकी पूजा की जाती है. पूरी दुनिया में अकेली भारतीय संस्कृति ही है, जो पूरी प्रकृति को देवी-देवता का दर्जा देती है. लोग किसी को छोटा ना समझें, इसीलिए पुराणों में ये व्यवस्था की गई है.
भारत में हर देवी-देवता के साथ किसी ना किसी पशु-पक्षी को जोड़ा गया है. बाघ को माता पार्वती की सवारी मान लिया गया, तो चूहे को भगवान गणेश के वाहन के रूप में मान्यता दी गई. गिद्ध को शनिदेव की सवारी बनाया गया, ताकि लोगों को समझाया जा सके कि गिद्ध भी हमारे लिए महत्वपूर्ण है, जो मृत पशुओं का शव खाता है. शव के सड़ने से पैदा होने वाले बैक्टीरिया और वायरस से इंसानों को बचाता है.
प्रकृति के लिए इतनी गहरी सोच किसी और संस्कृति में नहीं मिलती. हमारे देश में जैन मुनि आज भी नंगे पैर चलते हैं कि कहीं जूते-चप्पल के नीचे कोई चींटी या कीड़ा ना दब जाए. ऐसी परंपराएं ये समझाने के लिए बनाई गईं कि पृथ्वी पर जो कुछ भी है, वो हमारे जीवन से जुड़ा हुआ है. उसके बिना हमारा काम नहीं चल सकता, इसलिए खयाल तो पूरी प्रकृति का रखना पड़ेगा.
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