Waqf Amendment Act: वक्फ संशोधन अधिनियम को लेकर आज कोर्ट ने करीब साढ़े तीन घंटे सरकार की ओर से एसजी तुषार मेहता की दलील सुनी. जानें आज क्या- क्या हुआ.
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Waqf Amendment Act: वक्फ संशोधन अधिनियम को लेकर आज कोर्ट ने करीब साढ़े तीन घंटे सरकार की ओर से एसजी तुषार मेहता की दलील सुनी. तुषार मेहता ने इस एक्ट के विभिन्न प्रावधानों पर याचिकाकर्ताओं की ओर मंगलवार को रखी गई आपत्तियों पर सिलसिलेवार तरीके से अपनी बात रखी. मेहता ने कानून पर अंतरिम रोक की याचिकाकार्ताओं की मांग पर कड़ा विरोध जताया. उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ताओं की ओर से जो दलीलें रखी गईं ,वह तथ्यों से परे हैं.
व्यापक विचार विमर्श के बाद क़ानून पास हुआ
तुषार मेहता ने कहा कि सैकड़ों साल पुराने वक्फ क़ानून की खामी को दूर करने के लिए सरकार यह क़ानून लाई है. इस कानून को व्यापक विचार विमर्श और सदन में चर्चा के बाद पास किया गया है. जेपीसी ने इस कानून के हर पहलू पर चर्चा की. प्रस्तावित क़ानून के बारे में हमे 96 लाख ज्ञापन मिले. जेपीसी ने 36 बार मीटिंग की. विभिन्न मुस्लिम संस्थाओं समेत तमाम स्टेक होल्डर्स के साथ रायशुमारी की गई. उनके सुझाव पर गौर किया गया.
सरकारी संपत्ति के दावे की जांच पर सफाई
एसजी तुषार मेहता ने वक़्फ के सरकारी संपत्ति होने के दावे की जांच प्रकिया पर याचिकाकर्ताओं की ओर से उठाए सवालों को खारिज किया. उन्होंने कहा कि वक़्फ़ की आड़ में सरकारी संपत्ति पर किसी को अपना कब्जा जमाने की इजाज़त नहीं दी जा सकती है. ऐसी ज़मीन का मालिक पूरा देश है. सरकार को इस बात का अधिकार है कि वो जांच करे कि कोई संपत्ति सरकार की है या नहीं, भले ही लंबे समय से उसका इस्तेमाल वक़्फ़ के तौर पर हो रहा हो.
संपत्ति का मालिकाना हक कोर्ट तय करेगा
सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि इस केस में याचिकाकर्ता कोर्ट को गुमराह करने की कोशिश कर रहे है कि नए कानून के सेक्शन 3 तहत कमिश्नर की जांच फाइनल होगी. दरअसल इस वक़्फ़ संसोधन अधिनियम के सेक्शन 3 के तहत प्रावधान है कि जब तक कमिश्नर सरकारी प्रॉपर्टी के दावे की पड़ताल कर रिपोर्ट नहीं दे देता, तब तक उसे वक़्फ संपत्ति नहीं माना जाएगा. तुषार मेहता ने कहा कि ऐसे विवाद की स्थिति में कमिश्नर की जांच का जो निष्कर्ष रहेगा, उसके चलते सिर्फ रेवेन्यू रिकॉर्ड को अपडेट किया जाएगा. रेवेन्यू ऑथोरिटी इस बात का रिकॉर्ड रखती है कि कोई संपत्ति सरकारी संपत्ति है या नहीं. लेकिन उस संपत्ति के मालिकाना हक़ का सवाल कमिश्नर की रिपोर्ट से तय नहीं होगा. कमिश्नर के निष्कर्ष को दूसरा पक्ष वक़्फ़ ट्रिब्यूनल ,हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक में चुनौती दे सकता है. संपत्ति के मालिकाना हक वक़्फ़ का है या सरकार, यह कोर्ट तय करेगा.
वक़्फ़ के रजिस्ट्रेशन का नियम सौ साल पुराना
तुषार मेहता ने कहा कि वक़्फ़ संपत्ति का रजिस्ट्रेशन क़ानून में अनिवार्य पहले से भी रहा है. 1923 के मुसलमान वक्फ एक्ट में वक़्फ़ का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य किया गया था, बाद में 1954, 1995 के क़ानून में रजिस्ट्रेशन ज़रूरी था. वक़्फ़ सम्पत्ति की जानकारी सार्वजनिक हो, उनका ऑडिट हो सके- इसके लिए ज़रूरी है कि उनका रजिस्ट्रेशन हो. इसके अलावा तुषार मेहता ने कहा कि रजिस्ट्रेशन के लिए रजिस्ट्रेशन डीड या दूसरे दस्तावेज देना ज़रूरी नहीं है( जैसा कि याचिकाकर्ताओं की ओर से दलील दी जा रही है कि सैंकड़ो साल पुरानी मस्जिद के कागज हम कहाँ से लाएंगे), हकीकत यह है कि सिर्फ वक़्फ़ संपत्ति के बारे में जानकारी देकर उसका रजिस्ट्रेशन कराया जा सकता था.
5 साल इस्लाम का अनुयायी की शर्त क्यों जरूरी
सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि 2013 से पहले सिर्फ एक मुस्लिम ही अपनी संपत्ति वक़्फ सकता है. 2013 में चुनाव से पहले इसमे बदलाव किया और ग़ैर मुस्लिम को भी यह अधिकार दे दिया गया. तुषार मेहता ने कहा कि वक़्फ़ के लिए 5 साल तक इस्लाम की प्रैक्टिस रखने की शर्त का मतलब यह नहीं है कि सरकार चाहती है कि वो व्यक्ति 5 बार नमाज पढ़ रहा है या शराब न पीता हो. यह शर्त सिर्फ इसलिए रखी गई है कि धर्मांतरण के ज़रिए क़ानून का दुरुपयोग न हो. मुस्लिम धर्म मे धर्मांतरण का पहले से ग़लत इस्तेमाल होता रहा है. यहां तक कि मुस्लिम समुदाय के लोगों ने भी इसे लेकर अपनी चिंता जाहिर की है.
वक़्फ़ इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं
तुषार मेहता ने कहा कि वक़्फ़ इस्लाम का सिद्धांत ज़रूर है. पर यह इस्लाम धर्म का अनिवार्य हिस्सा नहीं है. इस्लाम में वक़्फ़ सिर्फ चैरिटी है,और कुछ नहीं. बहुत से ऐसे मुस्लिम हो सकते है ,जो आर्थिक तौर पर इतने सक्षम नहीं हो. ऐसी सूरत में वो अगर कोई वक़्फ़ नहीं कर रहे है तो इसका मतलब यह नहीं कि उन्हें दूसरों के मुकाबले कमतर आंका जाए. मेहता ने कहा कि वक्फ बाय यूजर भी कोई अपने आप में मौलिक अधिकार नहीं है.
वक़्फ़ की हिंदू धर्माथ बोर्ड से तुलना ठीक नहीं
तुषार मेहता ने कहा कि वक़्फ़ बोर्ड की तुलना हिंदू धर्माथ एंड बंदोबस्ती बोर्ड (Hindu endowment board )से नहीं की जा सकती. वक़्फ़ बोर्ड का काम पूरी तरह से धर्मनिरपेक्ष है. प्रॉपर्टी का प्रबंधन, उनका रजिस्ट्रेशन, खातों के ऑडिट ये पूरी तरह से ऐसा काम है, जिसका धर्म से कोई वास्ता नहीं है. यही नहीं वक़्फ़ मस्जिद, दरगाह के अलावा अनाथलाय, स्कूल कुछ भी हो सकता है. वक़्फ़ बोर्ड से प्रभावित ग़ैर मुस्लिम हो सकते है इसलिए गैर मुस्लिमों की इसमे नुमाइंदगी से कोई असर नहीं पड़ेगा. वैसे भी गैर मुस्लिमों का बोर्ड और काउंसिल में बहुमत नहीं होगा. तुषार मेहता ने कहा कि Hindu Religious endowment Act से वक़्फ़ बोर्ड की तुलना बेईमानी है. Hindu endowment एक्ट का काम पूरी तरह से धार्मिक है. इस एक्ट के तहत कमिश्नर मंदिर ने जाकर पुजारी को नियुक्त कर सकता है,पर वक़्फ़ बोर्ड का ऐसा कोई धार्मिक काम नहीं है.
संरक्षित स्मारकों को इसलिए वक्फ के नियंत्रण से बाहर किया गया
संरक्षित स्मारकों को वक्फ के नियंत्रण से बाहर रखने के प्रावधान का बचाव करते हुए सालिसिटर जनरल ने कहा कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की आपत्तियों के मद्देनजर सरकार ने यह फैसला लिया है. ASI ने संसद की संयुक्त समिति को बताया था कि वक्फ बोर्ड उन्हें संरक्षित स्मारकों के संरक्षण या रखरखाव कार्य करने से रोकता है. यहां तक कि कई मामलों में, वक्फ बोर्ड ने संरक्षित स्मारकों में बदलाव तक करवा डाले. तुषार मेहता ने कहा कि संरक्षित स्मारक देश का गौरव है. बहुत से संरक्षित स्मारक को वक़्फ़ घोषित कर दिया , जिनके चलते विवाद की स्थिति बनी. इसलिए क़ानून में यह बदलाव किया.