Muttaqi on Afghanistan Pakistan: भारत दौरे पर आए तालिबान विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी ने अफगानिस्तान में महिला शिक्षा के बुरे हाल पर स्पष्टीकरण देने की कोशिश की है. मुत्ताकी ने कहा कि तालिबान महिला शिक्षा के खिलाफ नहीं है लेकिन वह इसे कुछ सीमाओं में रखकर देना चाहता है.
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Taliban on Women Education: अफगानिस्तान के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी ने अपने देश में महिलाओं और लड़कियों की शिक्षा पर लगे प्रतिबंध को लेकर सफाई दी है. भारत दौरे पर आए मुत्ताकी ने कहा, 'इसमें कोई शक नहीं कि अफगानिस्तान के उलेमा और मदरसे देवबंद से गहरे रिश्ते रखते हैं. लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि हम आधुनिक और महिला शिक्षा से परहेज रखते हैं.'
महिला शिक्षा को हराम नहीं कहा बल्कि...
रविवार को दिल्ली में आयोजित प्रेस वार्ता में मुत्ताकी ने कहा, 'फिलहाल हमारे देश में करीब 1 करोड़ विद्यार्थी स्कूलों और अन्य शैक्षणिक संस्थानों में पढ़ रहे हैं, जिनमें 28 लाख महिलाएं और लड़कियां शामिल हैं. धार्मिक मदरसों में यह शिक्षा स्नातक स्तर तक उपलब्ध है. कुछ क्षेत्रों में सीमाएं हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि हम शिक्षा के खिलाफ हैं. हमने इसे धार्मिक रूप से ‘हराम’ नहीं कहा है, बस दूसरे आदेश तक के लिए स्थगित किया गया है.'
#WATCH | Delhi | On the ban on education for women in his country, Afghanistan Foreign Minister Amir Khan Muttaqi says, "There is no doubt that Aghanistan has relations with Ulema Madaris and with Deoband perhaps greater than others. With regards to education, at present we have… pic.twitter.com/XYKsAViqL5
— ANI (@ANI) October 12, 2025
हमने पाकिस्तान में सैन्य लक्ष्य पूरे किए- मुत्ताकी
पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच तनाव पर अफगानिस्तान के विदेश मंत्री अमीर खान मुत्ताकी ने कहा,'पाकिस्तान के ज़्यादातर लोग शांति पसंद हैं और अफगानिस्तान के साथ अच्छे रिश्ते चाहते हैं. हमें पाकिस्तानी आम जनता से कोई समस्या नहीं है. लेकिन पाकिस्तान में कुछ ऐसे तत्व हैं जो दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ा रहे हैं. अफगानिस्तान अपने सीमाओं और राष्ट्रीय हितों की रक्षा करेगा, इसलिए पाकिस्तान की ओर से हुई कार्रवाई का हमने तुरंत जवाब दिया. बीती रात हमने अपने सैन्य लक्ष्य पूरे कर लिए हैं. हमारे दोस्त देशों क़तर और सऊदी अरब ने कहा है कि यह संघर्ष अब खत्म होना चाहिए, इसलिए हमने अपनी ओर से फिलहाल इसे रोक दिया है. अब हालात काबू में हैं.'
मुत्ताकी ने आगे कहा, 'हम सिर्फ शांति और अच्छे संबंध चाहते हैं. लेकिन जब कोई हमारे आंतरिक मामलों में दखल देने की कोशिश करता है, तो अफगानिस्तान के सभी नागरिक, सरकार, उलेमा और धार्मिक नेता एकजुट होकर देश के हित में खड़े हो जाते हैं. अफगानिस्तान पिछले 40 सालों से संघर्ष झेल रहा है, लेकिन अब वह आज़ाद है और शांति के लिए काम कर रहा है. अगर पाकिस्तान शांति और अच्छे संबंध नहीं चाहता, तो अफगानिस्तान के पास और भी विकल्प मौजूद हैं.'
मुत्ताकी का यह बयान ऐसे समय आया है जब अंतरराष्ट्रीय समुदाय अफगानिस्तान में महिलाओं की शिक्षा और अधिकारों को लेकर गहरी चिंता जता रहा है. अगस्त 2021 में तालिबान के दोबारा सत्ता में आने के बाद से देश में महिलाओं और लड़कियों के अधिकारों पर लगातार पाबंदियां लगाई जा रही हैं. सत्ता संभालने के शुरुआती महीनों में तालिबान ने वादा किया था कि वह इस्लामी सिद्धांतों के तहत महिलाओं को शिक्षा और रोजगार का अधिकार देगा, लेकिन हकीकत इसके ठीक उलट निकली.
तालिबान के आने के बाद से अफगानिस्तान बेहाल
तालिबान शासन के दौरान सबसे पहले माध्यमिक विद्यालयों में लड़कियों के प्रवेश पर रोक लगा दी गई. इसके बाद विश्वविद्यालयों के दरवाजे भी महिलाओं के लिए बंद कर दिए गए. अब स्थिति यह है कि अफगानिस्तान दुनिया का एकमात्र देश बन चुका है जहां महिलाओं को माध्यमिक और उच्च शिक्षा से वंचित रखा जा रहा है. संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार, लाखों लड़कियां, जो पहले स्कूलों और कॉलेजों में पढ़ाई कर रही थीं, वे अब अपने घरों तक सीमित हो चुकी हैं.
तालिबान प्रशासन का दावा है कि यह पाबंदियां अस्थाई हैं और इस्लामी ढांचे के अनुरूप शिक्षा प्रणाली तैयार होने तक ही लागू रहेंगी. मुत्ताकी ने कहा कि शिक्षा को हराम नहीं बताया गया है और यह सिर्फ नीतिगत पुनर्विचार का हिस्सा है. लेकिन बीते चार वर्षों में यह अस्थाई प्रतिबंध स्थायी जैसा हो गया है. देश में लड़कियों की पढ़ाई कब से शुरू होगी, इस बारे में अब तक समयसीमा की घोषणा नहीं की गई है.
महिलाओं पर लगाई गई हैं कई पाबंदियां
इसी दौरान, अफगानिस्तान में महिलाओं की सामाजिक स्थिति भी तेजी से बिगड़ी है. तालिबान ने महिलाओं के कामकाज, आवाजाही और पहनावे को लेकर कड़े नियम लागू कर दिए हैं. उन्हें सरकारी नौकरियों से हटाया गया, गैर-सरकारी संगठनों में काम करने से रोका गया, और कई प्रांतों में बिना पुरुष अभिभावक के घर से बाहर निकलने पर पाबंदी लगा दी गई. यहां तक कि पार्कों और सार्वजनिक स्थानों पर भी महिलाओं का प्रवेश सीमित कर दिया गया है.
काबुल और अन्य प्रमुख शहरों में सैकड़ों निजी संस्थान, जो पहले लड़कियों के लिए शिक्षा के केंद्र थे, अब या तो बंद हो चुके हैं या केवल धार्मिक पाठ्यक्रम चलाने की अनुमति रखते हैं. देश की विश्वविद्यालय प्रणाली लगभग ढह चुकी है, क्योंकि महिला शिक्षक और छात्राएं दोनों ही निष्कासित कर दी गई हैं.
गुप्त रूप से पढ़ाई कर रही कुछ लड़कियां
इसके बावजूद, अफगानिस्तान में कई महिलाएं और लड़कियां शिक्षा की मशाल जलाए रखने की कोशिश कर रही हैं. कुछ ने ऑनलाइन माध्यमों का सहारा लिया है, तो कुछ गुप्त स्कूलों में पढ़ाई जारी रखे हुए हैं. राजधानी काबुल और हेरात जैसे शहरों में अंडरग्राउंड क्लासरूम्स चल रहे हैं, जहां सीमित संख्या में छात्राओं को चुपचाप पढ़ाया जाता है. इन स्कूलों को अक्सर मानवीय संगठनों की मदद से चलाया जाता है, लेकिन तालिबान के डर से इन्हें गुप्त रखा जाता है.
संयुक्त राष्ट्र, यूरोपीय संघ और मानवाधिकार संगठनों ने तालिबान की इन नीतियों की कड़ी आलोचना की है. यूएन वीमेन की कार्यकारी निदेशक सिमा बहौस ने हाल ही में कहा था, 'तालिबान का यह रवैया सिर्फ महिलाओं के अधिकारों का नहीं, बल्कि अफगानिस्तान के भविष्य का दमन है. किसी भी देश की तरक्की आधी आबादी को पीछे रखकर संभव नहीं है.'
तालिबान से पहले कैसा था अफगानिस्तान?
अगर तालिबान से पहले वाले अफगानिस्तान पर नजर डालें तो 2001 से 2021 के बीच वहां पर अमेरिका समर्थित सरकार थी. इस दौरान वहां पर महिलाओं की शिक्षा में उल्लेखनीय प्रगति हुई थी. देश में लड़कियों के स्कूलों की संख्या कई गुना बढ़ी और विश्वविद्यालयों में महिला छात्रों की भागीदारी 30% तक पहुंच गई थी. लेकिन अब ये सारे प्रयास लगभग मिट चुके हैं.