अन्नाद्रमुक को छोड़कर सभी दलों ने वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) से संबंधित संविधान संशोधन विधेयक पर अपना समर्थन व्यक्त किया हालांकि राजस्व संबंधी राज्यों के हितों की सुरक्षा, मुआवजा, कर की दर के ढांचे जैसे विषयों पर सरकार से स्थिति स्पष्ट करने की मांग की।
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नई दिल्ली : अन्नाद्रमुक को छोड़कर सभी दलों ने वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) से संबंधित संविधान संशोधन विधेयक पर अपना समर्थन व्यक्त किया हालांकि राजस्व संबंधी राज्यों के हितों की सुरक्षा, मुआवजा, कर की दर के ढांचे जैसे विषयों पर सरकार से स्थिति स्पष्ट करने की मांग की।
राज्यसभा में पारित संविधान 122वां संशोधन विधेयक 2014 पर चर्चा की शुरुआत करते हुए कांग्रेस सदस्य एम वीरप्पा मोइली ने कहा कि अगर सरकार इस विषय पर पहले आमराय बनाने की कोशिश करती तो यह काफी समय पहले पारित हो जाता।
उन्होंने कहा कि यह ऐतिहासिक विधेयक है जो देश की अर्थव्यवस्था में नये कालखंड की शुरूआत करेगा। उन्होंने कहा कि संकट, चुनौतियां चाहे जो भी हों लेकिन देश की अर्थव्यवस्था की बुनियाद हमेशा मजबूत रही है।
मोइली ने कहा कि हमें मानना होगा कि 1991 में तत्कालीन वित्त मंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने देश में आर्थिक सुधारों की शुरूआत की थी।
उन्होंने जीएसटी के संबंध में कहा, ‘अगर सरकार पहले आमराय बना लेती तो विधेयक बहुत पहले पारित हो जाता।’ पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा कि आज हमारी पार्टी जीएसटी पर पूरा समर्थन दे रही है।
मोइली ने राज्यसभा में जीएसटी से संबंधित संविधान संशोधन विधेयक को पारित करने में लगे समय और आमराय बनाने में सरकार की ओर से की गयी मशक्कत का जिक्र करते हुए कहा कि इस मामले में सरकार ने उच्च सदन को अधिक महत्व दिया।
उन्होंने कहा कि यह चिंता हमारे साथ सत्तारूढ़ दल के सदस्यों की भी है कि इस सदन को गंभीरता से नहीं लिया गया।
उन्होंने कहा कि सरकार को ऐसा लगता है कि इस सदन में जानकार लोग नहीं हैं। मोइली ने कहा कि सरकार ने संयुक्त समिति बनाने के हमारे सुझाव को नहीं माना। अंतत: उसे उच्च सदन में झुकना पड़ा और स्थाई समिति बनानी पड़ी।
उन्होंने कहा कि अगर लोकसभा में भी इसी तरह के प्रयास होते तो ‘अभी विधेयक में जो कुछ खामियां हैं, वो नहीं रहतीं।’ मोइली ने कहा कि सरकार को विपक्ष से दोनों सदनों में और संसद के बाहर समान रूप से चर्चा करनी चाहिए थी।