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नई दिल्लीः इस्लाम धर्म में पर्दा प्रथा को लेकर पांच प्रमुख परिधान हैं. इनमें पहला है बुर्का- जिसमें सिर से लेकर पैर तक पूरा शरीर एक कपड़े से ढका होता है और आंखों के आगे भी एक मोटी सी जाली होती है. दूसरा है नकाब- ये बुर्के की तरह ही होता है लेकिन इसमें आंखें कवर नहीं होती. तीसरा है चादर- ये भी बुर्के जैसा ही होता है लेकिन इसमें आंखों के साथ चेहरा भी नहीं ढका जाता. चौथा है हिजाब- इसमें एक शॉल से केवल सिर और गर्दन को ढका जाता है. और पांचवां है दुपट्टा- जिसमें केवल सिर को किसी खास कपड़े से कवर किया जाता है.
आपको ये बात जानकर हैरानी होगी कि कुरान में महिलाओं और पुरुषों के लिए किसी भी खास तरह के धार्मिक परिधान का ज़िक्र नहीं है. कुरान में केवल Modesty का ज़िक्र किया गया है. यानी इस बात पर जोर दिया गया है कि महिला और पुरुष दोनों इस तरह के कपड़े पहनें, जो उनकी गरिमा और लाज को बनाकर रखें. लेकिन इस्लाम धर्म के ठेकेदारों और मुस्लिम नेताओं ने समय-समय पर लोगों को इस पर गुमराह करने की कोशिश की है.
प्राचीन काल में अरब, ईरान और रोम में महिलाओं द्वारा अपने सिर और चेहरे को ढक कर रखने की परम्परा थी. और इस परम्परा का पालन भी केवल राज परिवार और उच्च वर्ग की महिलाओं तक सीमित था. ये बात उस समय की है, जब इस्लाम धर्म अस्तित्व में भी नहीं आया था. 7वीं शताब्दी में जब अरब में इस्लाम धर्म की उत्पत्ति हुई तो ये पहनावा काफ़ी लोकप्रिय हो गया. हालांकि 20वीं शताब्दी तक भी अरब और ईरान जैसे देशों में ही बुर्का और नकाब पहना जाता था. जबकि मध्य एशिया और दक्षिण पूर्वी एशिया के देशों में मुस्लिम महिलाएं स्थानीय पहनावे को ही प्राथमिकता देती थीं. एक लाइन में कहें तो मुस्लिम महिलाओं पर बुर्के और हिजाब के पहनावे को थोपने की शुरुआत 100 साल पहले शुरु हुई. और इसमें भारत जैसे देश भी शामिल हैं.
आपने इस्लामिक संस्था, तब्लीगी जमात का नाम ज़रूर सुना होगा. इस संस्था ने ही 1920 के दशक में ये आन्दोलन चलाया था कि भारत की मुस्लिम महिलाओं को बुर्के और हिजाब में रहना चाहिए और मुस्लिम पुरुषों को लम्बी दाढ़ी रखनी चाहिए. और यहीं से धार्मिक कट्टरवाद भारत में अपनी जड़ें और मजबूत करते चला गया.
भारत में धर्मनिरपेक्षता के नाम पर कई दुकानें खुली हुई हैं, जिनके ज़रिए इस विचार का व्यापार किया जाता है. लेकिन सच ये है कि भारत में आज भी सभी धर्मों के लिए समान व्यवस्था को लागू करना मुश्किल है. जबकि दुनिया के कई देशों में स्थिति इसके बिल्कुल विपरित है. उदाहरण के लिए, Switzerland में मार्च 2021 को एक जनमत संग्रह हुआ था, जिसमें लगभग 51 प्रतिशत लोगों ने सार्वजनिक स्थानों पर बुर्का और नकाब पहनने पर प्रतिबंध लगाने का समर्थन किया था, जिसके बाद वहां इसे कानूनी रूप भी दे दिया गया.
Switzerland के अलावा Netherlands, France, बेल्जियम, चीन, डेनमार्क, ऑस्ट्रिया, Bulgaria, Norway, Sweden, Russia और कजाख्स्तान जैसे देशों में किसी ना किसी रूप में बुर्के पर पूर्ण और आंशिक प्रतिबंध लगाया गया है. इन देशों में भी जब इस पर कड़े कानून बनाए गए थे, तब वहां पर भी विरोध प्रदर्शन हुए थे. लेकिन ये देश धार्मिक कट्टरवाद के ख़िलाफ़ अड़े रहे और आज इन देशों में इन कानूनों का पालन हो रहा है.
इस मामले में भारत के संविधान के Article 14 और 25 के साथ Article 26 की भावना को भी समझना बहुत ज़रूरी है. संविधान का Article 14 ये कहता है कि देश के हर नागरिक के अधिकार बराबर हैं. जबकि संविधान का Article 25 कहता है कि हर व्यक्ति को अपनी मर्ज़ी से किसी भी धर्म को मानने का अधिकार है और Article 26 लोगों को धार्मिक परंपरा निभाने की इजाज़त देता है. आप ये भी कह सकते हैं कि Article 25 और 26 वो ढाल हैं, जिनके पीछे तमाम Personal Laws छिपे हुए हैं.
इसलिए केन्द्र सरकार चाहे तो संसद में Uniform Civil Code पर बिल लेकर आ सकती है. जिसके तहत सभी धार्मिक क़ानूनों को ख़त्म करके समान न्याय व्यवस्था लागू की जा सकती है. हालांकि कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि इसमें Article 25 और 26 रुकावट बन सकते हैं. ये मामला क़ानून से ज़्यादा सामाजिक है...क्योंकि Uniform Civil Code हर धर्म के लोगों पर असर डालेगा. और भारत जैसे बड़े देश में इसे बिना विरोध के लागू करना सरकार के सामने बड़ी चुनौती होगी.