क्या है आर्टिकल 142? जिस पर धनखड़ ने सुप्रीम कोर्ट को सुनाया, सिब्बल ने कर डाला पलटवार
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क्या है आर्टिकल 142? जिस पर धनखड़ ने सुप्रीम कोर्ट को सुनाया, सिब्बल ने कर डाला पलटवार

Vice President Jagdeep Dhankhar vs Kapil Sibbal: कांग्रेस पार्टी के राज्यसभा सांसद और सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ की टिप्पणी की आलोचना करते हुए कहा कि उन्हें पता होना चाहिए, 'राज्यपाल और राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद की 'सहायता और सलाह' पर कार्य करते हैं.'

क्या है आर्टिकल 142? जिस पर धनखड़ ने सुप्रीम कोर्ट को सुनाया, सिब्बल ने कर डाला पलटवार

Judiciary vs Legislative: न्यायपालिका और कार्यपालिका में टकराव की खबरें एक बार फिर सुर्खियों में हैं. ऐसा तब होता है कि जब अदालतें, कार्यपालिका के फैसलों या कामों को चुनौती देती है. संविधान और कानून के जानकारों के मुताबिक ये टकराव संविधान की व्याख्या, पावर सेपरेशन और जनहित पर आधारित होता है. हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु बनाम राज्यपाल मामले में फैसला सुनाते हुए जो कुछ कहा उस पर शुरू हुई बहस खत्म होने की नाम नहीं ले रही है. तमिलनाडु बनाम राज्यपाल मामले में सुप्रीम कोर्ट (SC) ने राज्यपाल की तरह राष्ट्रपति के लिए भी समय-सीमा बताई थी.

सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?

SC ने कहा, 'राष्ट्रपति को राज्यपाल द्वारा सुरक्षित रखे गए विधेयकों पर 3 महीने के भीतर फैसला लेना होगा. राज्य, राष्ट्रपति की निष्क्रियता के खिलाफ अदालत जा सकते हैं. कारणों के अभाव में कोर्ट राष्ट्रपति की ओर से सद्भावना की कमी का अनुमान लगा सकती है.' 

तमिलनाडु बनाम राज्यपाल केस में गवर्नर के हवाले से राष्ट्रपति को निर्देश देना और संसद में वक्फ संशोधन बिल पास होने के बाद सुप्रीम कोर्ट में नए कानून को चुनौती देने के दौरान सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी सोशल मीडिया पर भी वायरल हो रही है. खासकर X पर बहुत सी बातें ट्रेंड कर रही हैं. ये बहस न्यायपालिका बनाम कार्यपालिका से जोड़कर देखा जा रही है. अपनी बात सोशल मीडिया पर रखने को भी लोग अभिव्यक्ति की आजादी बता रहे हैं.

उपराष्ट्रपति ने न्यूक्लियर मिसाइल से तुलना क्यों की?

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने हाल ही में संविधान के अनुच्छेद 142 पर न्यायपालिका की बढ़ती निर्भरता के बारे में गंभीर चिंता जताते हुए ऐसा धमाकेदार बयान दिया था जिसकी गूंज सुप्रीम कोर्ट परिसर से लेकर पूरे देश में सुनाई पड़ रही है. उपराष्ट्रपति ने अनुच्छेद 142 को 'लोकतांत्रिक ताकतों के खिलाफ ऐसी परमाणु मिसाइल' बताया था जो ज्युडीशियरी के पास चौबीसों घंटे उपलब्ध है. उपराष्ट्रपति ने अपनी भारत में संवैधानिक व्याख्या प्रथाओं की व्यापक समीक्षा का आह्वान किया. धनखड़ की टिप्पणी हाल ही में विधेयकों पर राष्ट्रपति की कार्रवाई को निर्देशित करने वाले न्यायिक फैसलों की पृष्ठभूमि में आई है. 

अनुच्छेद 142 क्या है?

संविधान का अनुच्छेद 142 सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court)  को अपने समक्ष किसी मामले में पूर्ण न्याय सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक कोई भी आदेश पारित करने के लिए व्यापक विवेकाधीन शक्तियां प्रदान करता है. ये प्रावधान सर्वोच्च न्यायालय को किसी विवाद को व्यापक रूप से हल करने के लिए मौजूदा कानूनों को दरकिनार करने या कानूनी खामियों को भरने की अनुमति देता है. इसका उपयोग निर्देश जारी करने, डिक्री लागू करने, दस्तावेज़ प्रस्तुत करने के लिए बाध्य करने या अवमानना ​​के लिए दंडित करने के लिए भी किया जा सकता है. इसे न्याय प्रदान करने के लिए एक ब्रहास्त्र जैसे शक्तिशाली माध्यम के रूप में देखा जाता है.

क्या बोले थे उपराष्ट्रपति धनखड़?

राज्यसभा के एक कार्यक्रम में धनखड़ ने ऐसी स्थिति के प्रति आगाह किया था, जहां कोर्ट सीधे राष्ट्रपति को निर्देश देती हुई नजर आई. उपराष्ट्रपति  धनखड़ ने उस हवाले से ऐसे अधिकार के संवैधानिक आधार पर सवाल उठाया था. उन्होंने कहा था- 'हम ऐसी स्थिति नहीं बना सकते, जहां आप भारत के राष्ट्रपति को निर्देश दें, और किस आधार पर? संविधान के तहत आपके पास एकमात्र अधिकार अनुच्छेद 145(3) के तहत संविधान की व्याख्या करना है. वह भी ऐसी व्याख्या केवल जो पांच सदस्यीय खंडपीठ या उससे अधिक न्यायाधीशों वाली संविधान पीठ से आनी चाहिए.'

खासकर अनुच्छेद 142 के उपयोग का उल्लेख करते हुए, धनखड़ ने कहा, 'अनुच्छेद 142 न्यायपालिका के लिए चौबीसों घंटे उपलब्ध लोकतांत्रिक ताकतों के खिलाफ एक परमाणु मिसाइल बन गया है.'

सिब्बल ने किया धनखड़ पर पलटवार

कांग्रेस पार्टी सांसद कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर जगदीप धनखड़ की टिप्पणी की आलोचना करते हुए कहा, 'उपराष्ट्रपति को पता होना चाहिए कि राज्यपाल और राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद की 'सहायता और सलाह' पर कार्य करते हैं. सिब्बल ने कहा कि राज्यपाल द्वारा विधेयकों को रोकना वास्तव में विधायिका की सर्वोच्चता में दखलंदाजी है.'

न्यूज़ एजेंसी एएनआई ने सिब्बल के हवाले से कहा, 'यह धनखड़ जी (उपराष्ट्रपति) को पता होना चाहिए, वे पूछते हैं कि राष्ट्रपति की शक्तियों में कटौती कैसे की जा सकती है, लेकिन शक्तियों में कटौती कौन कर रहा है? सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष सिब्बल ने ये भी कहा, 'ये तो उल्टी बात है. अगर संसद विधेयक पारित करती तो क्या राष्ट्रपति उसके कार्यान्वयन को अनिश्चित काल के लिए टाल सकते हैं? क्या किसी को इसके बारे में बात करने का अधिकार नहीं है?

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