What is caste-census: केंद्र की मोदी सरकार ने बुधवार (30 अप्रैल 2025) को जनगणना कराने से जुड़ी एक बड़ी घोषणा की है. केंद्र ने ऐलान किया कि जाति गणना आगामी जनगणना का हिस्सा होगी और आश्वासन दिया कि यह 'पारदर्शी' तरीके से किया जाएगा. ऐसे में, चलिए जानते हैं क्या होती है जाति जनगणना और ये कैसे की जाती है?
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Meaning of Caste Census: देश में जाति जनगणना की लंबे वक्त से यह मांग चल रही थी, जिसे अब जाकर केंद्र ने इसे हरी झंडी दिखाई है. मोदी सरकार ने जाति जनगणना करवाने का फैसला किया है. सरकार के इस घोषणा के बाद देश की सियासत में हलचल पैदा हो गई है और अपोजिशन पार्टियां इसे अपनी जीत के रूप में देख रही है. वहीं, केंद्र ने बुधवार को कहा कि जाति जनगणना आगामी जनगणना का हिस्सा होगी. सरकार ने इस दौरान आश्वासन दिया कि यह 'पारदर्शी' तरीके से किया जाएगा. अब यहां पर सवाल उठता है कि क्या होती है जाति जनगणना और ये कैसे की जाती है? तो चलिए जानते हैं.
कैबिनेट के फ़ैसलों पर मीडिया को संबोधित करते हुए सूचना एवं प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा कि कुछ राज्यों ने जाति सर्वेक्षण करवाए हैं, लेकिन जनगणना करवाना केंद्र के अधिकार क्षेत्र में आता है. उन्होंने कहा कि राजनीतिक मामलों की कैबिनेट समिति (सीसीपीए) ने अगली जनगणना में जाति गणना को शामिल करने का संकल्प लिया है. कई विपक्षी नेताओं ने केंद्र की घोषणा का स्वागत करते हुए कहा कि इससे अलग-अलग जाति समूहों की आरक्षण संबंधी मांगों को पूरा करने में सरकार को मदद मिलेगी.
जाति जनगणना क्या है?
जाति जनगणना एक जनसंख्या-आधारित सर्वेक्षण है जो किसी क्षेत्र या देश की जाति संरचना पर डेटा इकट्ठा करता है. इसमें जाति समूहों का विवरण, उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति, शैक्षिक स्थिति और संबंधित फैक्टर्स जैसे विवरण शामिल हैं. इसका मुख्य मकसद अलग-अलग जातियों के कितने लोग हैं, इसके स्पष्ट आंकड़े सामने रखे जाएं. साथ ही, डेमोग्राफिक और डेवलेपमेंटल रूपरेखा को समझना और पॉलिसी प्लानिंग, संसाधन आवंटन ( Resource Allocation ) और सकारात्मक कार्रवाई से संबंधित सरकारी फैसलों के लिए आंकड़े एकत्र करना है.
इस एक्सरसाइज में सामान्य नागरिक डेटा के साथ-साथ जाति संबंधी जानकारी भी इकट्ठी की जाती है. इससे सरकार को विभिन्न जाति समूहों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति और प्रतिनिधित्व का आकलन करने में मदद मिलती है, खासकर सार्वजनिक रोजगार और वेलफेयर स्कीम्स तक पहुंच जैसे क्षेत्रों में. इससे यह पता लगाने में मदद मिलती है कि किन समुदायों को सरकारी पहलों से फायदा हुआ है और कौन से समुदाय हाशिए पर हैं.
आजादी के बाद भारत सरकार ने सामाजिक और शैक्षिक मानदंडों के आधार पर नागरिकों को चार समूहों में बांटा है, जिनमें अनुसूचित जनजाति (एसटी), अनुसूचित जाति (एससी), अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी), और जनरल कैटेगरी के लोग हैं.
आखिरी जाति-जनगणना कब हुई थी?
आजादी के बाद से 1951 से 2011 तक भारत में हर जनगणना में अनुसूचित जातियों (SC) और अनुसूचित जनजातियों (ST) पर डेटा इकट्ठा जानकारी दी गई है. लेकिन अन्य जाति समूहों की नहीं. जबकि इसके उलट, ब्रिटिश शासन के तहत 1931 से पहले आयोजित हर जनगणना में जाति-आधारित डेटा बाकायदा सार्वजनिक की जाती थी.
पहली बार कब हुई थी जाति-जनगणना?
भारत में पहली बार जाति जनगणना 1931 में हुई थी. इसके बाद स्वतंत्र भारत ने दशकीय जनगणना से व्यापक जाति गणना को बाहर रखा. इसकी वजह से सभी जातियों के डेटा कलेक्शन केवल एससी और एसटी श्रेणियों तक सीमित हो गया. नतीजतन, अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) जैसे समूहों को हाल की राष्ट्रीय जनगणनाओं (National Censuses ) में आधिकारिक तौर पर नहीं गिना गया है.
हालांकि, 2011 में यूपीए सरकार ने सामाजिक-आर्थिक और जाति जनगणना (SECC) आयोजित की, जिसका मकसद व्यापक जाति डेटा इकट्टा करना था.लेकिन, डेटा की सटीकता को लेकर उठे सवालों के कारण परिणाम कभी औपचारिक रूप से जारी नहीं किए गए.
हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, अंग्रेजों ने 1881 से 1931 तक दशकीय जनगणना में जाति गणना करवाई थी. लेकिन 1931 के बाद यह बंद कर दी गई. रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि 1971 की जनगणना में एससी-एसटी आबादी का अनुपात 21.54% था और 2011 की जनगणना में बढ़कर 25.26% हो गया.