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नई दिल्ली: मानव जीवन में कई समस्याएं मूलभूत आध्यात्मिक कारणों की वजह से होती हैं। उन कारणों में से एक है मृत पूर्वजों की अतृप्ति के कारण वंशजों को होने वाली तकलीफ जिसे जिसे पितृदोष कहते हैं। पूर्वजों के कारण वंशजों को किसी प्रकार का कष्ट ही पितृदोष है।
ज्योतिष में पितृदोष का बहुत महत्व माना जाता है। इससे पीड़ित व्यक्ति का जीवन कष्टमय हो जाता है और वह तकलीफों से घिर जाता है। जिस जातक (जन्मे) की कुंडली में यह दोष होता है उसे धन अभाव से लेकर मानसिक क्लेश तक का सामना करना पड़ता है। पितृदोष से पीड़ित जातक की उन्नति के अलावा हर चीज में बाधा रहती है। इसलिए ज्योतिष के जानकारों के मुताबिक अगर किसी की जन्म कुंडली में पितृदोष है तो उसे समय रहते दूर कर लेना चाहिए अन्यथा व्यक्ति के जीवन में शारीरिक, मानसिक, आर्थिक आदि कष्टों का सामना करना पड़ सकता है।
पितृ दोष से पीड़ित जातक की कुंडली का अध्ययन कर ग्रह उपचार के द्वारा पितृदोष का निवारण किया जा सकता है। ज्योतिष में सूर्य को पिता का कारक व मंगल को रक्त का कारक माना गया है। अतः जब जन्मकुंडली में सूर्य या मंगल, पाप प्रभाव में होते हैं तो पितृदोष का निर्माण होता है। इस प्रकार कुंडली से समझा जाता है कि जातक पितृदोष से युक्त है। यदि समय रहते, इस दोष का निवारण कर लिया जाए तो पितृ दोष से मुक्ति मिल सकती है।
पितृ दोष, मातृ दोष की भयावह सिथति तब बनती है, जब पितरों के सम्मान में कमी आ जाती है। दोष होने पर परिवार में सन्तान न होना, धन में निरन्तर हानि होना, घर में झगडा, मानसिक अशांति, दरिद्रता या लम्बी बीमारी हमेशा बनी रहती है। परिवार इस प्रभाव को समझ नही पाता तथा इसके कारण नित्य घटने वाली घटनाओं को सहन नहीं कर पाता है तथा ना चाहकर भी दिन प्रतिदिन तनाव, चिन्ता, रोग, बाध में उलझता चला जाता हैं। पितृदोष से मुक्ति के लिए सबसे उत्तम समय श्राद्ध का होता है। श्राद्ध के समय पित्तरों के तर्पण और उनका सम्मान करने की परंपरा है। हर पितृदोष के उपायों में थोड़ा बहुत अंतर हो सकता है और इसके लिए किसी जानकार ज्योतिषी का सहयोग लेना चाहिए।