पाकिस्तान की नाक के नीचे जब ‘बुद्ध’ मुस्कुराए! 51 साल पहले की वो ‘गूंज’, जिससे आज भी दहलता है PAK
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पाकिस्तान की नाक के नीचे जब ‘बुद्ध’ मुस्कुराए! 51 साल पहले की वो ‘गूंज’, जिससे आज भी दहलता है PAK

Why Buddha Smiled Against Pakistan: भारत और पाकिस्तान एक बार फिर इतिहास के सबसे बुरे दौर में खड़े हैं, जहां कभी भी दोनों में फुल वॉर छिड़ सकती है. लेकिन क्या आपको बुद्ध की वो मुस्कराहट याद है, जिसके बारे में सोचकर पाकिस्तान आज भी सिहर उठता है.

पाकिस्तान की नाक के नीचे जब ‘बुद्ध’ मुस्कुराए! 51 साल पहले की वो ‘गूंज’, जिससे आज भी दहलता है PAK

What is Story of India First Nuclear Test: एक कहावत है, जिसकी लाठी उसकी भैंस. यानी जिसके पास ताकत है, वो सुरक्षित है. ये कहावत दुनिया के शक्ति संतुलन में बहुत मायने रखता है. उदाहरण के लिए अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, फ्रांस, और आज का चीन. ये दुनिया के सबसे ताकतवर देश माने जाते हैं. क्यों? इसकी वजहें तमाम हो सकती है. लेकिन एक वजह जो इन पांच महाशक्तियों में आम है, वो है परमाणु बम. ये दुनिया जानती है- परमाणु बम बनाने की होड़ इन्हीं पांच देशों की वजह से लगी. इस कतार में जो छठा नंबर आया. वो देश था भारत. 

51 साल पहले, आज ही के दिन, यानी 18 मई को भारत ने जब परमाणु परीक्षण किया. उससे दुनिया हिल गई थी. अमेरिका से लेकर पड़ोस में पाकिस्तानी हुक्मरानों की नींदे उड़ गई थी. वो परीक्षण को भारत के वैज्ञानिकों ने अंजाम दिया, इसके पीछे कितनी बड़ी राजनैतिक इच्छाशक्ति थी, ये जानना बेहद दिलचस्प है. 

जब भारत ने राजस्थान में बदला था इतिहास

51 साल पहले की ये तस्वीरें तब के हिंदुस्तान के बारे में बहुत कुछ याद दिलाती है. 1974 के साल जब राजस्थान के रेगिस्तान में भारत कुछ ऐसी तैयारी कर रहा था, जिसकी भनक दुनिया को लग जाती, तो आज हमारा इतिहास और भूगोल ही कुछ और होता.

एक देश के तौर पर हम मूल रूप से शांति और अहिंसा के पुजारी रहे, ये भी मानते रहे, कि परमाणु शक्ति का इस्तेमाल सिर्फ उर्जा की जरूरतों के लिए होनी चाहिए. लेकिन दुनिया के बदलते  समीकरणों और हमारी संप्रभुता पर बढ़ते खतरों ने हमारी ये राय बदल दी थी. उसी बदली राय की बदौलत हिंदुस्तान के वैज्ञानिक इतिहास में एक नई तारीख दर्ज हुई.
 
18 मई 1974, बुद्ध पूर्णिमा का वो दिन

उस दिन राजस्थान के रेगिस्तानी इलाके पोकरण में जब सूरज की पहली किरण निकली, तब सबकुछ तैयार था. बिलकुल प्लान के मुताबिक. इसमें बाधाएं तमाम आईं, आखिरी वक्त तक खामियां बहुत सारी आईं, लेकिन स्माइलिंग बुद्धा नाम के इस सीक्रेट ऑपरेशन की भनक आखिरी वक्त तक किसी को नहीं लगी.

ना अमेरिकी खुफिया एजेंसियों को, ना ही पाकिस्तान की टोही इजेसियों को. जबकि पोकरण की वो टेस्टिंग साइट पाकिस्तान से लगी सीमा से 200 किलोमीटर से कम की दूरी पर थी. परमाणु परीक्षण के लिए अनुमति तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 1972 में ही दे दी थी. खासतौर पर 1971 के युद्ध में जिस तरह पाकिस्तान ने हमला किया, उसके पक्ष में खड़ा होकर अमेरिका ने धौंस दिखाई. उसके बाद भारत के पास परमाणु शक्ति बनने के सिवाय और कोई चारा नहीं था.

भारत ने लिया परमाणु बम बनाने का फैसला

1970 के दशक में भारत के सामने ठीक यही स्थिति थी. 1962 में चीन ने जिस तरह धोखे से भारत पर हमला किया, उसके बाद पाकिस्तान ने 1965 में कमजोर समझकर जंग छेड़ दी. सबसे बड़ी बात, अमेरिका ने जिस तरह 1965 और 1971 दोनों ही युद्ध में पाकिस्तान के साथ एकतरफा खड़ा हुआ, उसने परमाणु शक्ति पर भारत की राय बदल दी.

1972 के उस साल तक ये साफ हो चुका था कि चीन परमाणु शक्ति बन चुका है. वहीं अमेरिका पहले से ही एटोमिक सुपरपावर था. जबकि पाकिस्तान इन दोनों ही शक्तियों के बल पर बार बार हमले कर रहा था. इस हालात को देखते हुए इंदिरा गांधी ने 1972 में ही परमाणु परीक्षण का मौखिक आदेश दे दिया था.

परमाणु टेस्ट के लिए इंदिरा का वो आदेश

अमेरिका और चीन से खतरा लगातार बढ़ रहा था. आदेश मिलने के बाद वैज्ञानिकों ने 18 महीने का समय मांगा. तब परमाणु टेस्ट के लिए 20 किलो प्लूटोनियम की जरूरत थी. भारत को प्लुटोनियम कनाटा से पूर्णिमा रियेक्टर के लए मिलता था. पोकरण में टेस्ट के लिए जनवरी 1974 से शुरू हो गई खुदाई. 

परमाणु टेस्ट पर इंदिरा की कोर टीम

उधर पोखरण में परमाणु टेस्ट के लिए शॉफ्ट यानी गहरे कुएं की खुदाई चल रही थी और इधर दिल्ली में इंदिरा गांधी की कोर टीम के साथ मीटिंग. इंदिरा गांधी के साथ इस मीटिंग में सिर्फ 4 लोग ही शामिल होते थे. 

पहले, उनके सेक्रेट्री पी.एन. हक्सर

दूसरे, पूर्व प्रधान सचिव- पी.एन नाग चौधरी

तीसरे, वैज्ञानिक सलाहकार ए.एन सेठना

चौथे, भाभा परमाणु अनुसंधान केन्द्र यानी BAARC के डाइरेक्टर राजा रमन्ना

चौंधिया गईं दुनिया की नजरें

इस मीटिंग में एक बात तो पहले से ही तय थी कि परमाणु परीक्षण के सिवा कोई चारा नहीं, लेकिन इसके खतरे तमाम थे. खासतौर से अमेरिका, ब्रिटेन चीन से, जो नहीं चाहते थे, भारत किसी भी तरह परमाणु शक्ति बने. जबकि परमाणु बम बनाने की होड़ इन्हीं की शुरू की गई थी.
 
18 मई 1974 को भारतीय वैज्ञानिकों ने वो कर दिखाया, जिसे देख दुनिया की आंखें चौंधिया गई. सब हैरान, कि भारत ने परमाणु परीक्षण कैसे कर लिया? पाकिस्तान में तो ये हाल था, कि तब के प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो ने यहां तक कह दिया, कि हम पाकिस्तानी भूखे रह लेंगे, लेकिन परमाणु बम जरूर बनाएंगे. 

भारत के सामने ऐसी कोई मजबूरी नहीं थी बल्कि एक ऐसी जरूरत थी, जिसने भारत में परमाणु उर्जा के जनक डॉ. होमी जहांगीर भाभा जैसे वैज्ञानिक की भी राय बदल दी. डॉ. भाभा पूरी दुनिया में परमाणु उर्जा के शांतिपूर्ण इस्तेमाल के पैरोकार थे. लेकिन 1960 के दशक में कुछ ऐसा हुआ, जिसने डॉ. भाभा का ड्रीम प्रोजेक्ट बदल दिया.

भाभा ने भारत को बनाया महाशक्ति

आज भी जब हम कहते हैं- डॉ. होमी जहांगीर भाभा तो दुनिया को ये बता देते हैं- ये हमारी धरती का लाल, जिसके आगे दुनिया के सुपरपावर्स की एक धौंस चली. वो डरा नहीं, डिगा नहीं...गुलामी के दौर में ही आजाद होने वाले मुल्क को सुप्रीम पावर से लैस करने का सपना देख डाला. इसलिए, जब हम भाभा कहते हैं, तो हिंदुस्तान की परमाणु ताकत का परचम लहराते हैं.

मेरी कामयाबी इस बात पर निर्भर नहीं, कि दुनिया मेरे बारे में क्या राय रखती है. मैं अपने काम से क्या मुकाम तय करता हूं, मेरी पूरी कामयाबी इस बात में है. -डॉ.होमी जहांगीर भाभा

डॉ. भाभा का वो बेखौफ अंदाज हिंदुस्तान के भूगोल में भौतिकी का ऐसा परचम लहरा गया, जिसने दूसरे विश्वयुद्ध के बाद कोल्ड वॉर के पूरे शक्ति संतुलन को एक नये समीकरण पर ला खड़ा किया. 

नेहरू ने दिया भाभा को पूरा समर्थन

दशहरे दीवाली के त्योहारी सीजन में देश 5 महीने लंबी जंग में पाकिस्तान को धूल चटाने का जश्न मना रहा था, तभी डॉक्टर भाभा ने ऑल इंडिया रेडियो के इंटरव्यू में बड़ा ऐलान कर दिया कि सिर्फ 10 करोड़ रु. की लागत और 18 महीने में भारत परमाणु बम बना सकता है.

जिस संस्था की बदौलत डॉ. भाभा भारत का परमाणु सपना साकार करने वाले थे, वो आज भी भाभा एटोमिक रिसर्च सेंटर के नाम से जाना जाता है. इसकी बुनियाद डॉ. भाभा ने साल 1954 में रखी थी. तब इसका नाम हुआ करता था AEET, यानी एटोमिक एनर्जी इस्टैबलिशनमेंट ट्रॉम्बे...

डॉ. भाभा के इस ड्रीम प्रोजेक्ट को तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू का पूरा समर्थन था. नेहरू का सपना था डॉक्टर भाभा परमाणु और कॉस्मिक एनर्जी से कोई ऐसा तंत्र विकसित करें, जिससे भारत की ऊर्जा जरूरते पूरी हो जाएं.

2 घटनाओं से बदला भाभा का नजरिया
 
देश के कृषि और औद्योगिक विकास के लिए सस्ती उर्जा बेहद जरूरी थी. 1950 से लेकर 60 के दशक तक डॉ. भाभा ने न्यूक्लियर एनर्जी के प्रोजेक्ट ऐसे तैयार किए, कि भारत अब कभी भी परमाणु रियेक्टर बना सकता था. लेकिन इस दौरान बस एक फर्क आया था डॉ. भाभा में.

1962 में चीन के हमले से पहले डॉ. भाभा का लक्ष्य परमाणु उर्जा का इस्तेमाल बिजली जैसी बुनियादी जरूरतों और दूससे शांतिपूर्ण मकसद के लिए था. लेकिन 1962 की जंग में हार और 1965 में पाकिस्तान से मिली चुनौती के बाद उनका इरादा बदल गया. अब मकसद था अमेरिका, रूस और चीन की तरह भारत को भी परमाणु ताकत बनाना.

लेकिन जब तक डॉ. भाभा इस प्रोजेक्ट को साकार करते, तब तक उनके लिए राजनैतिक इच्छा शक्ति रखने वाले जवाहर लाल नेहरू का निधन हो चुका था. लाल बहादुर शास्त्री जब प्रधानमंत्री बने, तब उन्होंने भी वही इच्छा शक्ति दिखाई. डॉ, भाभा अपने प्रोजेक्ट पर आगे बढ़ते रहे. लेकिन 1966 में लाल बहादुर शास्त्री की भी रहस्यमयी परिस्थियों में मौत हो गई.

रहस्यमयी प्लेन क्रैश में हो गई मौत

जनवरी 1966 में इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री चुनी गईं, तब वो इतने बड़े राजनैतिक फैसले लेने में सक्षम नहीं थी. लेकिन डॉ. भाभा के प्रोजेक्ट के बारे में उन्हें पहले से ही पता था. लिहाजा प्रधानमंत्री बनते ही 20 जनवरी 1966 को इंदिरा ने डॉ. भाभा को दिल्ली बुला लिया.

परमाणु प्रोजेक्ट की जिम्मेदारी के साथ इंदिरा गांधी उन्हें देश का साइंस और टेक्नोलॉनजी मंत्री बनाना चाहती थी, ताकि डॉ. भाभा अपने परमाणु प्रोजेक्ट को बिना रोक टोक जारी रखें. लेकिन दुर्भाग्य देखिए, इंदिरा से मुलाकात के 4 दिन बाद वियना जाते हुए डॉ. भाभा का प्लेन क्रैश हो गया. 

उस रहस्ययमी प्लेन हादसे में देश के परमाणु जनक डॉ. भाभा की मौत हो गई. तब लगा था, अपना देश परमाणु शक्ति बनने का सपना अब कभी पूरा नहीं कर पाएगा. 

जनवरी 1966 में एक साथ दो रहस्ययमी मौतें हुईं. 11 जनवरी को लाल बहादुर शास्त्री और 24 जनवरी को डॉ. भाभा का प्लेन क्रैश. ये दोनों वो शख्सियतें थीं, जो तब के अमेरिकी राष्ट्रपति की धमकियों को नजरअंदाज करते हुए देश का परमाणु कार्यक्रम आगे बढ़ा रही थीं. लेकिन एक ही महीने में दोनों की मौत. 

15 मई- परमाणु टेस्ट पर आखिरी मुहर

तब की कई खुफिया रिपोर्ट्स में दोनों की मौत को किसी बाहरी साजिश का हिस्सा बताया गया. इसके बाद पूरी तैयारी के साथ पोकरण में परमाणु टेस्ट का वो फाइनल काउंट डाउन शुरू हुआ. 15 मई 1974 को भारत के पहले परमाणु टेस्ट के लिए पीएम इंदिरा गांधी की आखिरी मंजूरी मिली. 

इस दिन पोकरण में तैयारियों का पूरा ब्योरा लेकर वैज्ञानिक सलाहकार ए.न. सेठना इंदिरा गाधी से मिलने पहुंचे. उस दिन सेठना ने जो ब्योरा दिया, उसके मुताबिक, हमने परमाणु डिवाइस को शॉफ्ट में डाल दिया है. शॉफ्ट में बिजली केबल डाल कर रेत से भर दिया है. अब परमाणु डिवाइस को बाहर नहीं निकाल सकते.

तब इंदिरा गांधी ने पूछा- तो अब क्या दिक्कत है? सेठना ने कहा- बताना था, कि हम यू टर्न नहीं ले सकते. इंदिरा गांधी ने पूछा- तो क्या आपको डर लग रहा है? सेठना ने कहा- बिलकुल नहीं, हम तैयार हैं. 

प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से अंतिम मंजूरी के बाद जब ए.एन सेठना पोकरण टेस्ट साइट पर पहुंचे, तब तक सबकुछ तैयार हो चुका था. कंट्रोल रूम से 5 किलोमीटर दूर एक ऑब्जर्बेटरी स्टेज बना दिया गा था. यहां परमाणु टेस्ट की कोर टीम धमाके का आकलन करने वाली थी.

कांपी धरती, हवा में उड़ा रेत का गुब्बार

18 मई की सुबह साढ़े सात बजे फाइनल काउंट डाउन की तैयारी शुरु हुई. लेकिन गिनती पांच तक पहुंचते पहुंचते कुछ ऐसा हुआ, कि पूरी टीम चौंक गई. दरअसल न्यूक्लियर डिवाइस तक बिजली का वोल्टेज सिर्फ 10 फीसदी ही पहुंच रहा था. इससे ब्लास्ट मुमकिन नहीं था. ऐसा लगा था कि अब परमाणु टेस्ट सफल नहीं हो पाएगा. लेकिन एक चमत्कार होना अभी बाकी था.

वैज्ञानिक राजा रमन्ना अपनी किताब में लिखते हैं, बटन दबाने के पहले से ही डॉ. नागपट्टिनम संबाशिव वेंकटेशन ने विष्णु सहस्रनाम का जाप शुरू कर दिया. वेंकटेशन भले ही मिसाइल बनाने वाले वैज्ञानिक थे, लेकिन उनकी ईश्वर में गहरी आस्था थी. यही कारण था कि पृथ्वी के गर्भ में विनाश वाले बम के सफलतापूर्वक फटने के लिए पृथ्वी के पालनकर्ता विष्णु से प्रार्थना कर रहे थे. ईश्वर का नाम लेकर वेंकटेशन ने लाल ट्रिगर तो दबा दिया लेकिन तीस सेकेंड तक विस्फोट नहीं हुआ. पूरी टीम निराश हो चली थी. इसी बीच सामने रेत का पहाड़ हवा में उछलता दिखाई पड़ा.

राजा रमन्ना के मुताबिक विस्फोट की आवाज उतनी ज्यादा नहीं थी, लेकिन सामने जो रेत का पहाड़ आसमान में खड़ा होता दिखाई दिया और उस विस्फोट से जो धरती कांपी, उससे 5 किलोमीटर दूर बना ऑब्जरबेटरी स्टेज भी कांप उठा. भारत अपने पहले परमाणु टेस्ट में सफल रहा. इस खबर ने पूरी दुनिया को हिला दिया था.

चीन बौखलाया, पाकिस्तान के पसीने छूट गए

भारत के उस टेस्ट के बाद पाकिस्तान ने कहा था, कि हम भूखे रह लेंगे, लेकिन परमाणु बम बनाएंगे. पाकिस्तान ने वो परमाणु बम कैसे बनाया ये आज तक रहस्य है क्योंकि 1970 के दशक तक पाकिस्तान तो अपनी बंदूके भी नहीं बना पाता था. 

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