DNA Analysis: पाकिस्तान से बदला लेने की तैयारियों के बीच कल 7 लोक कल्याण मार्ग यानि प्रधानमंत्री निवास पर एक बैठक हुई. ये बैठक देश में चल रही तमाम दूसरी बैठकों से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण थी. ये बैठक देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और संघ प्रमुख मोहन भागवत के बीच हुई.
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DNA Analysis: बैसाखियों पर चलने वाले मुल्क ना जंग लड़ सकते हैं. ना जंग जीत सकते हैं. कभी चीन के सामने तो कभी तुर्किए के सामने हाथ फैला रहे पाकिस्तान को ये बात समझ लेनी चाहिए. क्योंकि भारत को बदला लेने के लिए किसी की बैसाखी की जरूरत नहीं है. अगर युद्ध हुआ तो ये युद्ध हिंदुस्तान अपने हथियार, अपनी सेना और 140 करोड़ लोगों के सहयोग से लड़ेगा. ये तय है कि भारत बदला लेगा. और बड़ी बात ये है कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की तरफ से भी पाकिस्तान को सबक सिखाने का सिग्नल मिल गया.
पाकिस्तान से बदला लेने की तैयारियों के बीच कल 7 लोक कल्याण मार्ग यानि प्रधानमंत्री निवास पर एक बैठक हुई. ये बैठक देश में चल रही तमाम दूसरी बैठकों से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण थी. ये बैठक देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और संघ प्रमुख मोहन भागवत के बीच हुई. ऐसा पहली बार हुआ जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर संघचालक खुद प्रधानमंत्री से मुलाकात करने उनके आवास पर गए. आज़ादी के बाद से ऐसा कोई मौका नहीं आया जब आरएसएस चीफ ने किसी भी प्रधानमंत्री के घर जाकर उससे मुलाकात की हो. यही वजह है आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत की प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से कल हुई मुलाकात को सामान्य नहीं माना जा रहा.
#BadleKaCountdown | मोदी-भागवत की बैठक की इनसाइड स्टोरी 'शॉकिंग' है, जब युद्ध छिड़ता है तो RSS क्या करता है? #DNA #DNAWithRahulSinha #PMModi #RSS #MohanBhagwat @RahulSinhaTV pic.twitter.com/UcoNliu6tE
— Zee News (@ZeeNews) April 30, 2025
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की एनएसए, सीडीएस और तीनों सेनाओं के प्रमुख से मीटिंग के बाद आरएसएस चीफ उनसे मिलने पहुंचे. संघ प्रमुख को लेने प्रधानमंत्री ने रेलमंत्री अश्विनी वैष्णव को भेजा. मोहन भागवत 7 बजकर 35 मिनट पर पीएम आवास पहुंचे और रात 9 बजकर 13 मिनट पर पीएम आवास से रवाना हुए. लगभग डेढ़ घंटे तक ये मुलाकात चली. राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की तरफ से सरकार को बताया गया. मौजूदा संकट में संघ पूरी तरह सरकार के साथ है. दुनिया की सबसे बड़ी स्वयंसेवी संस्था का समर्थन संकट काल में कितना जरूरी है. सरकार के लिए ये किस तरह मददगार साबित होगा. संकट में संघ क्या क्या भूमिका निभा सकता है. आज हम इसका विश्लेषण करेंगे.
मोहन भागवत और प्रधानमंत्री मोदी में क्या हुई चर्चा?
संघ प्रमुख मोहन भागवत और प्रधानमंत्री मोदी के बीच देश के हिंदुओं की भावनाओं पर चर्चा हुई. देश के 100 करोड़ हिंदुओं पर पहलगाम हमले का क्या असर पड़ा. उनके दिल और दिमाग में क्या चल रहा है. संघ प्रमुख और प्रधानमंत्री मोदी ने हर एक बात पर विमर्श किया. संघ प्रमुख पहले भी साफ कर चुके हैं. धर्म पूछकर गोली मारने से हिंदू आहत है. संघ प्रमुख इसे धर्मों के बीच का युद्ध नहीं बल्कि धर्म और अधर्म के बीच युद्ध मान रहे हैं.
चलिए अब आप समझिए प्रधानमंत्री मोदी और संघ प्रमुख की मुलाकात में क्या क्या बातें तय हो गई हैं. मोहन भागवत ने आतंकवादी हमले के बाद साफ साफ कहा था कि ये युद्ध धर्म और अधर्म के बीच है. रावण नहीं सुधरा तो राम ने उसका वध कर दिया. प्रधानमंत्री ने बदले के लिए सेना को फ्री हैंड दिया । इसका मतलब इस बार अधर्मी पाकिस्तान से धर्मयुद्ध तय हो चुका है.
संघ प्रमुख किसी प्रधानमंत्री से मिलने गए हों ऐसा पहले कभी नहीं हुआ. 2016 में उरी अटैक और 2019 में पुलवामा में सीआरपीएफ जवानों पर हमले पर भी संघ क्रोधित था. कड़ी कार्रवाई की मांग भी की थी. लेकिन उस वक्त संघ प्रमुख ने प्रधानमंत्री से घर जाकर मुलाकात नहीं की. पहलगाम हमले के बाद पहली बार संघ प्रमुख खुद प्रधानमंत्री से मिलने गए. इस अभूतपूर्व घटना का मतलब है. बदला भी अभूतपूर्व होगा. यानि 2016 और 2019 से काफी बड़ा होगा.
आरएसएस चीफ और प्रधानमंत्री के बीच हिंदुओ के गुस्से और उनके अंदर बढ़ी असुरक्षा की भावना पर चर्चा हुई. इसका मतलब संघ चाहता है सरकार का एक्शन ऐसा हो. जिससे हिंदुस्तान का गुस्सा और असुरक्षा की भावना दोनों खत्म हो जाएं. सरकार ने भी इसके लिए सेना को फ्री हैंड दे दिया है.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ क्या भूमिका निभाएगा?
आपको यहां पर ये भी समझना चाहिए भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध छिड़ता है. तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ क्या भूमिका निभाएगा. इसके लिए सबसे पहले आपको संघ की ताकत और प्रभाव के बारे में जानना होगा. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की लगभग 83,129 शाखाएं देश भर में लगती हैं. यानि देश के हर कोने में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की उपस्थिति है. लगभग 1 करोड़ स्वयं सेवकों वाला संघ दुनिया का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संगठन है.भारत के अलावा 39 से अधिक देशों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की मौजूदगी है. इसका मतलब देश के साथ साथ विदेशों में भी संघ अभियान चला सकता है.
संघ की स्थापना
संघ की स्थापना 1925 में हुई. अपनी स्थापना के 100 साल पूरा करने वाला संघ आजादी के बाद कई युद्ध देख चुका है. इसलिए आज इस युद्धों में संघ की भूमिका की चर्चा भी होनी चाहिए. देश में जो लोग राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ को सिर्फ मुसलमान विरोधी संगठन मानते हैं. उन तक ये जानकारी जरूर पहुंचनी चाहिए. युद्धकाल में संघ ने किस तरह सरकार और सेना की बढ़ चढ़कर मदद की. ये सिलसिला 1947 से शुरू हुआ. संघ के स्वयंसेवकों ने अक्टूबर 1947 से ही कश्मीर सीमा पर पाकिस्तानी सेना की गतिविधियों पर बगैर किसी प्रशिक्षण के लगातार नज़र रखी युद्ध में सेना की मदद की. इसके अलावा पाकिस्तान से जान बचाकर आए शरणार्थियों के लिए 3000 से ज्यादा राहत शिविर लगाए थे.
- 1962 के भारत-चीन युद्ध में सेना की मदद के लिए देश भर से स्वयंसेवक सीमा तक पहुंच गए.
- सैनिकों के आने जाने के मार्ग की चौकसी में प्रशासन की मदद की.
- इन स्वयंसेवकों ने रसद की आपूर्ति में सरकार की मदद की.
- 1962 की जंग में संघ के योगदान को इस तरह समझा जा सकता है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने संघ के कार्यकर्ताओँ को 26 जनवरी 1963 की परेड में शामिल होने का निमंत्रण दिया.
- जब पाकिस्तान के खिलाफ 1965 में युद्ध शुरू हुआ..उस वक्त तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने दिल्ली की कानून व्यवस्था संभालने के लिए संघ को याद किया.
- शास्त्री जी ने संघ कार्यकर्ताओं से दिल्ली का यातायात नियंत्रण संभालने का आग्रह किया ताकि पुलिसकर्मियों को सेना की मदद में लगाया जा सके । संघ के स्वयंसेवकों ने इस काम को बखूबी संभाला.
- इस युद्ध में घायलों के लिए रक्तदान का काम भी सबसे पहले संघ कार्यकर्ताओं ने शुरू किया.
- युद्ध के दौरान कश्मीर की हवाईपट्टियों से बर्फ़ हटाने का काम भी स्वयंसेवकों ने अपने हाथ में ले लिया.
1971 के युद्ध में भी संघ के कार्यकर्ताओं ने इसी तरह मोर्चा संभाला था. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मुलाकात करने गए संघ प्रमुख ने अगर पूरी तरह सरकार की मदद के लिए खड़े रहने का आश्वासन दिया. तो इसका मतलब यही है. अगर युद्ध जैसी परिस्थितियां बनीं तो संघ का अनुशासित कैडर किसी भी काम को संभालने के लिए तैयार हो जाएगा.