वैभव परमार, नई दिल्ली: 28 फरवरी की तारीख 'वर्ल्ड रेयर डिसीज डे' ( World Rare Disease Day) के तौर पर मनाई जाती है. दुर्लभ बीमारी के पीड़ितों और उनके परिजनों को बीमारी के दर्द के अलावा आर्थिक मोर्चे की चुनौतियों से भी जूझना पड़ता है. अब ऐसी ही बीमारी से जूझ रहे एक 10 महीने के बच्चे रेहांश सूरी के बारे में आपको बताते हैं जो Spinal Muscular Atrophy (SMA) Type-1 से पीड़ित है. रेहांश की मुस्कान देख किसी का भी दिल इसे गोद में उठाने को करेगा. लेकिन इसे बचाने के लिए जो कुछ करने की जरूरत है उसके बारे में जानकर आप भी हैरान हो जाएगें.  


तीरा के बाद रेहांश को आपकी जरूरत


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

रेहांश सूरी की जान बचाने के लिए उसी 16 करोड़ रुपए के टीके की है जरूरत है. जिसका इंतजाम मुंबई की बच्ची तीरा कामत के लिए हाल ही में हुआ था. फरवरी महीने में ज़ी न्यूज (Zee News) ने आपको तीरा कामत की तकलीफ और उसके परिवार की मुश्किलों की कहानी बताई थी जो इसी दुर्लभ बीमारी से पीड़ित है. सोशल मीडिया (Social Media) के जरिए तीरा कामत को तो मदद मिल गई और अब रेहांश के परिवार को भी आपसे मदद की उम्मीद है. अब बड़ा सवाल ये है कि क्या इस मासूम की मदद के लिए भी कोई आगे आएगा? 


ये भी पढ़ें- स्‍पाइनल मस्‍कुलर एट्रोफी से पीड़ित Teera Kamat को लगेगा 16 करोड़ का इंजेक्शन, जानें इतनी ज्यादा क्यों है कीमत?


रेहांश की दुखभरी कहानी 


आम तौर पर नवजात बच्चे 6 से 7 महीने में खुद से बैठना सीख जाते हैं. लेकिन रेहांश 10 महिने का होकर भी ऐसा नहीं कर पाता है. रेहांश Spinal Muscular Atrophy की जिस बीमारी से पीड़ित है वो देश में 6 हजार में से किसी एक बच्चे को होती है. जब उसके माता पिता को पता चला कि उनका बेटा उस बीमारी से पीड़ित है जिसका टीका 16 करोड़ का है और उसके ना लगने पर उसकी जान भी जा सकती है ये सुनकर वो अंदर से टूट गए. 


लॉकडाउन में हुआ था जन्म 


रेहांश की मां रूद्राक्षी सूरी ने बताया कि उसका जन्म लॉकडाउन (Lockdown) के समय हुआ था. उन्होंने कहा, ' उस वक्त बहुत सी दिक्कतें थीं लेकिन हमें भरोसा था कि हम रेहांश को कोरोना से बचा लेंगे. लेकिन हमें नहीं पता था कि हमारे लिए इससे भी कुछ बड़ा होने वाला है. पहले हमे फिजियो थेरेपी और जीन टेस्ट कराने को कहा गया. तब पता चला कि रेहांश SMA टाइप - 1 पीड़ित है. फिर बैंगलोर के एक डॉक्टर ने कहा कि उसके पास सिर्फ 13 महीने का वक्त बचा है. हम इतने हेल्पलेस हो चुके हैं कि अपने बच्चे को अपने सामने मरते हुए देखेंगे, यही सोच के डर जाते हैं'


अमेरिका में बन चुका है टीका


इस बीमारी से पीड़ित बच्चों को अक्सर सांस लेने में दिक्कत होती है. लेकिन रेहांश को 6 महीने तक ऐसे कोई लक्षण नहीं थे. उसे तो बस बैठने में और घुटने के बल चलने में दिक्कत थी. SMA जैसी दुर्लभ बीमारी का इलाज Zolgensma नामक टीका है जो अमेरिका में बन चुका है. इस टीके से पहला इलाज अमेरिका में ही साल 2019 में हुआ था. लेकिन इस प्यारी सी मुस्कान को नहीं पता कि अगर उसे Zolgensma का टीका नहीं मिला तो इसकी जान जा सकती है. टीके की कीमत 16 करोड़ रुपये है. इसके भारत आने में करोड़ों की इम्पोर्ट ड्यूटी भी लगती है. 


परिजनों ने की मदद की अपील


रेहांश के पिता मनीष सूरी ने कहा कि एक मध्यमवर्गीय परिवार के लिए इतनी बड़ी रकम का इंतजाम करना नामुमकिन है लेकिन उन्होंने अपने बेटे को जिंदा रखने की उम्मीद नहीं छोड़ी है. मनीष सूरी ने भी क्राउड फंडिंग और एनजीओ की मदद से पैसा इकठ्ठा करने की एक कोशिश की है. बीते एक हफ्ते में रेहांश के माता पिता को सोशल मीडिया और एनजीओ की मदद से 21 लाख की मदद मिल चुकी है लेकिन अभी ये 16 करोड़ का 1 प्रतिशत भी नहीं है.


ये भी पढ़ें- अमेरिका में एफडीए ने Johnson & Johnson की वैक्सीन को दी इस्तेमाल की मंजूरी, Coronavirus से बचाएगी सिर्फ 1 डोज


रेहांश के पिता मनीष ने कहा हम सरकार और सभी लोगों से रिक्वेस्ट करते हैं कि जिस तरह वो तीरा कामत और अयांश की मदद कर रहे हैं, ठीक वैसे ही हमारी भी मदद करें. वहीं रेहांश के दादा नरेंद्र कुमार सूरी ने कहा, 'मेरा पोता 2 मई को जन्मा था जिसके 6 महिने बाद हमें पता चला कि इसे ऐसी दुर्लभ बीमारी है तो हम उसी दिन हताश हो गए. मेरी मोदी जी से, राज्य सरकार से और आम जनता से भी अपील है कि आप सब कृपया हमारी मदद करें'.


गौरतलब है कि तीरा कामत के मामले में तो केंद्र सरकार ने 6 करोड़ की इम्पोर्ट ड्यूटी भी हटा ली थी. अब रेहांश के माता पिता को भी उम्मीद है कि उनके बच्चे के लिए भी देश के लोग और सरकार भी आगे आएगी. 


LIVE TV