Who is Vishnu Shankar Jain: उत्तर प्रदेश के संभल में जब से शाही जामा मस्जिद के सर्वे का आदेश कोर्ट ने दिया है, तब से हंगामा मचा हुआ है. 24 नवंबर को सर्वे के बाद पथराव, आगजनी और एसपी के पैर में गोली की वजह से माहौल और भी गरमा गया. हिंसा की चपेट में संभल धूं-धूंकर जला. 19 नवंबर को हिंदू पक्ष के वकील विष्णु शंकर जैन ने संभल की जिला अदालत में दावा किया था कि इस मस्जिद को पहले हरिहर मंदिर के नाम से जाना जाता था. 1529 में मुगल बादशाह बाबर ने इस मंदिर को तोड़ दिया था. उन्होंने यह भी दावा किया कि कल्कि अवतार संभल में ही होगा. 


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अदालत की दुनिया में विष्णु शंकर जैन और उनके पिता हरिशंकर जैन किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं. चाहे ज्ञानवापी मस्जिद केस हो या फिर शाही जामा मस्जिद...पिता और पुत्र की ये जोड़ी अदालतों में हिंदू पक्ष का प्रतिनिधित्व करती है. इन दोनों ने पूरे देश में मंदिर-मस्जिद विवाद से जुड़े करीब 102 से ज्यादा केस लड़े हैं. 


चलिए पहले आपको बताते हैं कि विष्णु शंकर जैन कौन हैं?


विष्णु शंकर जैन का जन्म 9 अक्टूबर 1986 को हुआ था. उन्होंने साल 2010 में बालाजी लॉ कॉलेज से लॉ की डिग्री हासिल की और राम जन्मभूमि मामले से अपने लॉ करियर का आगाज किया. वह अयोध्या, कुतुब मीनार, ज्ञानवापी और ताजमहल आदि मामलों में भी अहम योगदान देते रहे हैं. वह अपने पिता के साथ हिंदू महासभा, हिंदू फ्रंट फॉर जस्टिस, गोवा की सनातनी संस्था, हिंद साम्राज्य पार्टी, भगवा रक्षा वाहिनी जैसी संस्थाओं से भी जुड़े हुए हैं. 


उन्होंने बचपन से ही अपने पिता हरिशंकर जैन की हिंदू धर्म से जुड़े मामलों की कानूनी लड़ाई देखी. साल 2016 में उनको सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस करने का लाइसेंस मिला था. कानून की पढ़ाई पूरी होने के बाद उन्होंने अपने पिता के साथ वकालत के गुर सीखे. 


विष्णु शंकर जैन का कद उस वक्त ज्यादा बढ़ा जब साल 2013 में उनके पिता बीमार पड़ गए और उन्होंने हिंदुओं की कानूनी लड़ाई की कमान संभाल ली. तब से अपने पिता के साथ हिंदू धर्म से जुड़े मामलों की वह कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं.


कौन हैं हरिशंकर जैन?


27 मई 1954 को जन्मे हरिशंकर जैन एक सुप्रीम कोर्ट के नामी वकील हैं और साल 1976 से प्रैक्टिस कर रहे हैं. राम जन्मभूमि मामले में कई वकीलों का हाथ रहा, जिनमें हरिशंकर जैन भी शामिल हैं. हिंदू महासभा की ओर से उन्होंने दो से ज्यादा दशक तक केस लड़ा. 6 दिसंबर 1992 को जब बाबरी मस्जिद का विध्वंस हुआ था.


उसी दिन हरिशंकर जैन की माता का भी देहांत हुआ था. 13 दिन बाद 20 दिसंबर 1992 को हरिशंकर जैन ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में एक याचिका दाखिल की. इसमें उन्होंने कहा कि यह हर हिंदू का जन्माधिकार है कि वह रामलला के दर्शन कर सके.  1 जनवरी 1993 को कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला आया, जिसमें कहा गया कि रामलला के दर्शन करने से किसी को रोका नहीं जा सकता. 


फिलहाल दोनों बाप-बेटे मथुरा कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह केस, शृंगार गौरी-ज्ञानवापी मस्जिद केस, कुतुब मीनार परिसर विवाद और ताजमहल विवाद से जुड़े मामलों की पैरवी कर रहे हैं.