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नई दिल्ली: पिछले 8 साल में कांग्रेस (Congress) ने 45 में से 40 चुनाव हारे हैं. इस बार उत्तर प्रदेश के चुनाव में भी उसके 97 प्रतिशत उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई. इसके बावजूद कांग्रेस की सबसे बड़ी निर्णायक समिति ना तो गांधी परिवार (Gandhi Family) की ज़िम्मेदारी तय करना चाहती है और ना ही इस हार के लिए उनसे कोई सवाल जवाब करना चाहती है.
पांच राज्यों में कांग्रेस की शर्मनाक हार के बावजूद कांग्रेस (Congress) के नेता यही चाहते हैं कि गांधी परिवार ही कांग्रेस पार्टी को चलाता रहे. ये कितना बड़ा मजाक है, इसे आप उत्तर प्रदेश के चुनावों में कांग्रेस के प्रदर्शन से समझ सकते हैं.
कांग्रेस ने इस बार उत्तर प्रदेश की 403 में से 399 सीटों पर चुनाव लड़ा था. लेकिन वो केवल दो ही सीटों पर चुनाव जीत पाई. इस हिसाब से कांग्रेस का Success Rate 0.5 प्रतिशत रहा. यानी कांग्रेस उत्तर प्रदेश में शून्य के बेहद क़रीब पहुंच गई. फिर भी पार्टी के नेता चाहते हैं कि गांधी परिवार (Gandhi Family) पार्टी की लीडरशीप में बना रहे.
दूसरी बात, कांग्रेस (Congress) शायद देश की पहली ऐसी राष्ट्रीय पार्टी होगी, जिसका मुकाबला अब NOTA से है. NOTA का मतलब है None of the Above. जब कोई व्यक्ति अपने क्षेत्र के किसी उम्मीदवार को वोट नहीं देना चाहता, तब वो NOTA का बटन दबाता है.
#DNA : देश खतरे में नहीं, कांग्रेस ख़तरे में है@sudhirchaudhary
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— Zee News (@ZeeNews) March 14, 2022
NOTA का विकल्प अब कांग्रेस (Congress) को कड़ी टक्कर दे रहा है. इस बार उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को 21 लाख 51 हज़ार 234 वोट मिले हैं. उसका वोट शेयर 2.33 प्रतिशत रहा. जबकि NOTA को 6 लाख 37 हज़ार 304 वोट मिले हैं.
अब पिछले 8 वर्षों में जिस तरह NOTA के वोट बढ़े हैं और कांग्रेस के वोट घटे हैं, उस हिसाब से अनुमान लगाएं तो 10 वर्षों के बाद उत्तर प्रदेश में NOTA, कांग्रेस से भी मज़बूत स्थिति में होगा. यानी नोटा को कांग्रेस से ज़्यादा वोट मिलने लगेंगे.
उत्तर प्रदेश में कांग्रेस (Congress) की केवल हार नहीं हुई. बल्कि इन नतीजों ने कांग्रेस को जमीन के नीचे उस जगह पहुंचा दिया है, जहां से पाताललोक दूर नहीं है.
कांग्रेस को इस बार केवल 21 लाख वोट मिले हैं. उत्तर प्रदेश में कुल 403 विधान सभा सीटें हैं. इसका मतलब ये हुआ कि औसतन एक विधान सभा क्षेत्र में उसे लगभग 5 हज़ार वोट ही मिले. यानी गांधी परिवार समझ ही नहीं पाया कि ख़तरे में देश नहीं है. बल्कि ख़तरे में कांग्रेस पार्टी खुद है. कांग्रेस की हालत आज क्षेत्रीय पार्टियों से भी ज्यादा ख़राब है.
उत्तर प्रदेश में कांग्रेस (Congress) ने 399 सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन उसका वोट शेयर 2.33 प्रतिशत रहा. जबकि जयंत चौधरी की राष्ट्रीय लोक दल केवल 33 सीटों पर चुनाव लड़ी, लेकिन RLD को कांग्रेस से ज्यादा 2.9 प्रतिशत वोट मिले.
कांग्रेस के 399 में 387 उम्मीदवारों की ज़मानत हो गई. सोचिए, कांग्रेस के 97 प्रतिशत उम्मीदवार अपनी जमानत तक नहीं बचा सके. इसका मतलब ये है कि उन्हें उनके क्षेत्र में डाल गए कुल वोट का छठा हिस्सा भी नहीं मिला.
ये बात इसलिए भी ज़्यादा चिंताजनक है क्योंकि उत्तर प्रदेश में प्रियंका गांधी वाड्रा ने सबसे ज़्यादा 209 रैलियां और रोड शो किए थे. जबकि योगी आदित्यनाथ इस मामले में दूसरे स्थान पर हैं, उन्होंने 203 रैलियां और रोड शो किए थे.
यहां बड़ा सवाल ये है कि क्या इस हार के लिए प्रियंका गांधी वाड्रा की जिम्मेदारी तय नहीं होनी चाहिए. आप भी जब अपनी नौकरी या अपने व्यवसाय में अच्छा प्रदर्शन नहीं करते होंगे तो आपसे सवाल पूछे जाते होंगे. लेकिन राजनीति ही एक ऐसा क्षेत्र है, जिसमें नेता चुनावों में पानी की तरह पैसा बहा कर भी जब फेल हो जाते हैं तो उनकी कोई जिम्मेदारी तय नहीं होती.
वर्ष 2014 के बाद से अब तक कांग्रेस (Congress) ने गांधी परिवार (Gandhi Family) के नेतृत्व में 45 चुनाव लड़े हैं. जिनमें से वो 40 चुनाव हार चुकी है. इसके अलावा 2014 तक देश के 9 राज्यों में कांग्रेस की पूर्ण बहुमत की सरकार थी. अब सिर्फ़ राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की पूर्ण बहुमत की सरकार बची है. लेकिन क्या आपने पिछले 8 वर्षों में कभी सुना कि इसके लिए गांधी परिवार की ज़िम्मेदारी तय की गई हो?
वर्ष 2014 के बाद से अब तक सोनिया गांधी और राहुल गांधी कुल 24 बार कांग्रेस पार्टी में अपने पदों से इस्तीफा देने की पेशकश कर चुके हैं लेकिन हर बार कुछ नेता इसका विरोध करते हैं और इस्तीफा कभी हो ही नहीं पाता. यानी ये सब उस फिल्म की तरह है, जिसकी स्क्रिप्ट और Dialogues पहले से सबको पता है.
अगर ऐसा नहीं होता तो कांग्रेस (Congress) में गांधी परिवार के नेतृत्व से नाराज ग्रुप-23 के नेताओं ने कल मुकुल वासनिक को पार्टी अध्यक्ष बनाने का सुझाव दिया. लेकिन हमें पता चला है कि इस प्रस्ताव से सोनिया गांधी असहज हो गईं. राजस्थान के मुख्यमंत्री और गांधी परिवार के वफादार अशोक गहलोत ने राहुल गांधी को एक बार फिर से कांग्रेस का अध्यक्ष बनाने की मांग कर दी. कांग्रेस के ग्रुप 23 में गुलाम नबी आजाद, कपिल सिब्बल और आनंद शर्मा जैसे नेता हैं.
उत्तर प्रदेश में इस बार कांग्रेस (Congress) ने 148 महिला उम्मीदवारों को टिकट दिया था. इनमें से से ज्यादातर महिलाएं वो थीं, जिन्होंने नागरिकता संशोधन कानून, कोविड और दूसरे मुद्दों पर बड़े बड़े आन्दोलन में हिस्सा लिया था. ये महिलाएं Postergirl बन गई थीं. लेकिन चुनावों में लोगों ने इन्हें बुरी तरह एक्सपोज कर दिया और ये बता दिया कि जनता इस नकली माहौल का असली सच अच्छी तरह जानती है.
प्रियंका गांधी वाड्रा ने लखनऊ सेंट्रल से सदफ जफर को टिकट दिया था, जिन पर नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ हुए विरोध प्रदर्शनों में हिंसा भड़काने के आरोप हैं. सदफ जफर को चुनाव में सिर्फ 2 हज़ार 927 वोट मिले और उनकी जमानत जब्त हो गई.
इसी तरह उन्नाव सदर सीट से कांग्रेस ने आशा देवी को प्रत्याशी बनाया था, जो उन्नाव की रेप पीड़िता की मां हैं. लेकिन आशा देवी को मात्र 1 हजार 555 वोट मिले है और उनकी भी जमानत जब्त हो गई.
इसी तरह कानपुर की कल्याणपुर सीट से कांग्रेस ने नेहा तिवारी को उम्मीदवार बनाया था, जो गैंगस्टर विकास दुबे की रिश्तेदार है. लेकिन उन्हें भी चुनाव में 2 हजार 419 वोट मिले और उनकी भी जमानत जब्त हो गई.
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जबकि 2014 में Miss UP रह चुकी अर्चना गौतम को कांग्रेस (Congress) ने हस्तिनापुर से ये सोच कर टिकट दिया कि वो दलित हैं और सोशल मीडिया पर उनके लाखों Followers हैं. इसलिए अगर वो चुनाव लड़ेंगी तो उन्हें जीत भी मिल जाएगी. लेकिन जिस अर्चना गौतम के Instagram पर साढ़े सात लाख Followers हैं, उन्हें चुनाव में 1 हजार 519 वोट मिले और उनकी भी जमानत ज़ब्त हो गई.
यानी जिन्होंने कोविड पर सरकार की नीतियों को गलत बताया, अपने देश की वैक्सीन पर सवाल उठाए, नागरिकता संशोधन कानून पर गुमराह किया. किसान आन्दोलन के दौरान लोगों को भड़काया और जिन्होंने यूक्रेन से आए छात्रों के मन में जहर भरा, लोगों ने चुनावों में उनकी पोल खोल दी.