लखनऊः चरखा दांव के माहिर सपा संरक्षक मुलायम से राजनीति के दांव-पेंच सीखने वाले केंद्रीय मंत्री एसपी सिंह बघेल सपा प्रमुख अखिलेश के सामने मैदान में उतर कर चुनौती दे रहे हैं. वह मैनपुरी के करहल से चुनाव लड़ रहे हैं. सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव के सुरक्षा अधिकारी रहे केंद्रीय राज्यमंत्री एसपी सिंह बघेल करहल विधान सभा क्षेत्र से सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के सामने चुनाव लड़ेंगे. 


भाजपा ने बघेल को अखिलेश के सामने क्यों उतारा?


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भाजपा ने क्षेत्र के पाल, धनगर और बघेल समाज के वोट बैंक को साधने के साथ सपा अध्यक्ष के सामने मुकाबले को रोचक बनाने के लिए एसपी सिंह बघेल को मैदान में उतारा है.


मुलायम के पूर्व सुरक्षा अधिकारी रहे हैं एसपी सिंह बघेल


भाजपा के रणनीतिकारों ने अखिलेश यादव के सामने किसी कमजोर उम्मीदवार को चुनाव लड़ाकर औपचारिक लड़ाई का संदेश देने की जगह मजबूत नेता को चुनाव लड़ाने की रणनीति रची है. एक ओर जहां मुलायम सिंह यादव की पुत्रवधू अपर्णा यादव भाजपा में शामिल हो गई है. वहीं पार्टी ने रणनीति के तहत ही मुलायम के पूर्व सुरक्षा अधिकारी रहे एसपी सिंह बघेल को अखिलेश के सामने चुनाव लड़ाने का निर्णय किया.


अखिलेश को घेरने की भाजपा की रणनीति


अखिलेश यादव के नामांकन करते ही भाजपा के रणनीतिकारों ने एसपी सिंह बघेल का भी नामांकन दाखिल करवा दिया. हालांकि भाजपा के सूत्रों की मानें तो ये निर्णय अचानक से नहीं लिया गया है. यह तैयारी भाजपा ने पहले से ही कर ली थी. बस उचित अवसर की प्रतीक्षा थी. जिसे सोमवार को अमली जामा पहनाया गया. बघेल के नामांकन करते ही भाजपा भी बड़ी ही आक्रामक तरीके से प्रचार अभियान में लग गई. उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य भी मैनपुरी में प्रचार के लिए पहुंचे थे. उन्होंने भी अखिलेश पर जोरदार हमला किया. भाजपा की रणनीति अखिलेश यादव को उन्हीं के गढ़ में घेरने की है.


'इंदिरा गांधी भी चुनाव हार गईं थीं'


करहल सीट से अखिलेश यादव के खिलाफ नामांकन दाखिल करने वाले केंद्रीय मंत्री और बीजेपी नेता एसपी सिंह बघेल ने भरोसा जताया है कि वह सपा के गढ़ में इसके अध्यक्ष के खिलाफ जीत हासिल करने में कामयाब रहेंगे. केंद्रीय कानून राज्य मंत्री बघेल ने पर्चा दाखिल करने के बाद कहा कि अमेठी और कन्नौज का किला भी ढहते हुए देखा है और पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भी चुनाव हार गईं थीं.



करहल में करीब 27 फीसदी यादव मतदाता


करहल में करीब 27 फीसदी यादव मतदाता हैं, जबकि ठाकुर समुदाय की हिस्सेदारी 12 फीसदी से अधिक है. शाक्य, मौर्य, कुशवाहा समुदाय की हिस्सेदारी 12 फीसदी से अधिक है. पाल, गडेरिया, धनगर समाज करीब 9 फीसदी है, जबकि मुस्लिम वर्ग और ब्राहमण समुदाय की हिस्सेदारी 5-5 फीसदी है. इसके साथ ही दलित समुदाय की हिस्सेदारी 12 से 14 फीसदी तक है. ऐसे में जातिगत गणित को देखते हुए भी करहल का मुकाबला बेहद रोचक माना जा रहा है.


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