पंजाब में बेअदबी का चुनावी कनेक्शन, 8 फोन कॉल्स से कैसे बदल गया सच?
इस मामले में धार्मिक भावनाओं को आहत करने की बात तो हो रही है लेकिन लिंचिंग की बात कोई नहीं कर रहा. दुर्भाग्य ये है कि पंजाब की किसी भी सियासी दल या नेता ने मॉब लिंचिंग की आलोचना नहीं की है.
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नई दिल्ली: पंजाब में सिखों के पवित्र ग्रंथ, गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी के पिछले दो दिन में दो मामले सामने आए. पहला मामला अमृतसर के स्वर्ण मन्दिर से आया और दूसरा कपूरथला के एक गुरुद्वारे से आया. दोनों ही जगहों पर उग्र भीड़ ने दोनों आरोपियों को पीट-पीट कर मार डाला. अंग्रेजी में इसे Mob Lynching कहते हैं.
लिंचिंग पर नेताओं ने साधी चुप्पी
इस मामले में धार्मिक भावनाओं को आहत करने की बात तो हो रही है लेकिन लिंचिंग की बात कोई नहीं कर रहा. दुर्भाग्य ये है कि पंजाब की किसी भी सियासी दल या नेता ने मॉब लिंचिंग की आलोचना नहीं की है. नवजोत सिंह सिद्धू ने तो यहां तक कहा है कि बेअदबी करने वालों को तालिबान स्टाइल में खुलेआम फांसी पर लटका देना चाहिए.
आज हम आपको पंजाब पुलिस की एक अनोखी प्रेस कॉन्फ्रेंस भी दिखाएंगे, जिसमें वो शुरुआत में कह रही है कपूरथला गुरुद्वारे का मामला बेअदबी का नहीं बल्कि हत्या का मामला है. लेकिन फिर अचानक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान पुलिस अधिकारियों के पास कुछ फोन कॉल्स आतीं हैं और इसके तुरंत बाद पुलिस अपने पूरे बयान को बदल देती है. अब आप अन्दाजा लगा सकते हैं कि पंजाब में कुछ महीनों के बाद चुनाव होने हैं और किसी नेता में दम नहीं है कि वो सच को सच और झूठ को झूठ कहने की हिम्मत दिखा सके.
बेअदबी का आखिर क्या मतलब?
बे-अदबी का मतलब होता है अपमान यानी तिरस्कार करना. सिख धर्म में मान्यता है कि गुरु ग्रंथ साहिब सिर्फ एक पवित्र ग्रंथ नहीं है बल्कि सिखों के लिए इसे एक जीवित गुरु माना गया है. इसलिए गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी का कोई भी मामला एक जीवित गुरु पर हमला करने के बराबर है. गुरु ग्रंथ साहिब के अलावा, ‘गुरुद्वारा’, जिसका शाब्दिक अर्थ, गुरु का निवास होता है और गुरु की सेवा में उपयोग की जाने वाली सभी वस्तुएं पवित्र मानी जाती हैं. अगर इनमें से किसी भी वस्तु और प्रतीक चिन्ह का अपमान होता है तो सिख धर्म में इसे बेअदबी माना जाता है.
अगर मामला धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने का हो तो दोषी को 3 साल की सजा होती है और अगर गुरुद्वारे और वहां की किसी वस्तु और प्रतीक चिन्ह की बेअदबी होती है तो ऐसे मामलों में 2 साल की सजा होती है. लेकिन पंजाब में यहां तक नौबत आई ही नहीं. बल्कि उग्र भीड़ ने दोनों आरोपियों की पीट-पीट कर हत्या कर दी. इनमें स्वर्ण मन्दिर की घटना में आरोपी को मन्दिर दरबार में पकड़ा गया था.
भीड़ ने बनाया आरोपी का वीडियो
आरोप है कि उस दिन ये व्यक्ति नंगे पांव गुरु ग्रंथ साहिब दरबार में चढ़ गया और उसने तलवार से सिखों के पवित्र ग्रंथ का अपमान किया. इसके बाद इस आरोपी को पकड़ लिया गया और भीड़ ने उसकी पीट-पीट कर हत्या कर दी. घटना के समय का एक वीडियो भी हमें मिला है, जिसमें भीड़ नारे लगाते हुए दिख रही है और जिस व्यक्ति पर बेअदबी का आरोप है, वो उनके पैरों में जमीन पर पड़ा हुआ है. हालांकि हमें अभी ये नहीं पता कि जब ये वीडियो बनाया जा रहा था, उस वक्त ये आरोपी मर चुका था या नहीं.
इस मामले में पुलिस ने अब तक आरोपी की पहचान सार्वजनिक नहीं की है. जिससे अभी ना तो किसी को इसका नाम पता है और ना ही ये पता है कि ये कहां से आया था और इस पर लगे आरोप कितने सच हैं? लेकिन हमें ये जरूर पता चला है कि भीड़ ने कड़े से आरोपी के सिर पर कई बार हमला किया था. इसके अलावा जब उसके शव को पोस्टमॉर्टम के लिए ले जाया गया, तब उसके शरीर पर काफी चोट के निशान थे.
क्या पुलिस के सामने हुई हत्या?
अब आपको दूसरी घटना के बारे में बताते हैं, जो स्वर्ण मन्दिर से लगभग 60 किलोमीर दूर पंजाब के कपूरथला में हुई. आरोप है कि 19 दिसंबर को कपूरथला के निजामपुर में स्थित एक गुरुद्वारे में निशान साहिब को कथित तौर पर अपवित्र करने की कोशिश की गई, जिसके बाद गुरुद्वारे के जत्थेदारों ने आरोपी को पकड़ लिया और बाद में उसकी भी कुछ लोगों ने पीट पीट कर हत्या कर दी.
इस घटना के दौरान हत्या करने वाले लोगों ने फेसबुक पर एक लाइव भी किया था, जिसमें वो उसे बेरहमी से पीटते हुए दिख रहे हैं. वीडियो में ये लोग कह रहे हैं कि उन्होंने जिस व्यक्ति को पकड़ा है, वो निशान साहिब को अपवित्र करने के लिए गुरुद्वारे में आया था और जब उसे ऐसा करते हुए पकड़ा गया तो उसकी हत्या कर दी गई. अब इस मामले में सवाल इसलिए उठ रहे हैं क्योंकि जब घटना के समय पुलिस इस इलाके में पहुंची थी, तब ये व्यक्ति जिंदा था. आरोप है कि उसे पुलिस की मौजूदगी में भीड़ ने मार डाला.
पुलिस ने किसके दबाव में बदला बयान?
अब जो बात नोट करने वाली है, वो ये कि घटना के दौरान पुलिस ने अपने शुरुआती बयान में खुद कहा था कि आरोपी एक चोर है, जो चोरी के मकसद से गुरुद्वारे में आया था. इस मामले में पवित्र ग्रंथ और प्रतीक चिन्ह की बेअदबी जैसा कुछ नहीं हुआ है. लेकिन बाद में पुलिस ने बयान बदल दिया और इसके पीछे राजनीतिक दबाव को वजह माना जा रहा है.
कपूरथला की इस घटना के बाद जालंधर रेंज के IG जीएस ढिल्लों की एक प्रेस कॉन्फ्रेंस हुई, जिसने इस मामले को लेकर और शक पैदा कर दिया. दरअसल, इस प्रेस कॉन्फ्रेंस की शुरुआत में IG ये बता रहे थे कि पुलिस ने हत्या का मामला दर्ज किया है, जिसमें 4 व्यक्तियों की पहचान हो चुकी है और बाकी 100 अज्ञात लोगों के बारे में जांच की जा रही है. लेकिन इसी दौरान उनके मोबाइल फोन पर किसी की कॉल आया और वो वहां से उठ कर चले गए.
प्रेस कॉन्फ्रेंस में आए 8 फोन कॉल्स
ऐसा उन्होंने एक बार नहीं बल्कि कई बार किया और इस दौरान उनके मोबाइल फोन पर कुल 8 कॉल्स आए. इनमें से पांच कॉल्स खुद IG ने रिसीव किए, जबकि 3 कॉल्स SSP ने उठाए. इन फोन कॉल्स से पहले IG मीडिया को इस मामले में जो बातें बता रहे थे, वो उनसे पूरी तरह पलट गए. पहले वो हत्या का मामला दर्ज करने की बात कह रहे थे और फोन कॉल्स आने के बाद उन्होंने ये कहा कि पुलिस ने अभी किसी आरोपी की पहचान नहीं की है और कोई मामला दर्ज नहीं हुआ. हमें ये भी पता चला है कि ये कॉल्स पुलिस के बड़े अधिकारियों और सरकार से जुड़े नेताओं और मंत्रियों द्वारा किए गए थे, जिससे इस मामले में राजनीतिक दबाव होने की भी बात सामने आ रही है.
इस मामले में सरकार और विपक्षी दलों की तरफ से अब तक जितने भी बयान आए हैं, उनमें बेअदबी का तो जिक्र है. लेकिन किसी भी पार्टी ने मॉब लिंचिंग पर कुछ नहीं कहा है. क्योंकि सभी पार्टियां इस पर बोलने से बच रही हैं. इसके पीछे पंजाब विधान सभा के चुनाव हैं.
सिखों को नाराज नहीं करना चाहते नेता
साल 2011 की जनगणना के मुताबिक पंजाब में सिखों की कुल आबादी 57 प्रतिशत है. यानी सिख धर्म के लोगों को नाराज करके कोई भी पार्टी चुनाव नहीं जीत सकती और इसी वजह से बेअदबी पर तो पार्टियां बोल रही हैं लेकिन मॉब लिंचिंग पर वो चुप हैं. इसे आप नवजोत सिंह सिद्धू के बयान से समझ सकते हैं. उन्होंने धार्मिक बेअदबी के मामलों में आरोपियों की हत्या को सही ठहराया है और कहा है कि ऐसे लोगों को खुलेआम फांसी पर लटका देना चाहिए.
इस खबर पर आज हम आपसे यही कहना चाहते हैं कि किसी भी धर्म के पवित्र ग्रंथ और उसके प्रतीक चिन्ह के अपमान को स्वीकार नहीं किया जा सकता. ये बात हम सभी धर्मों के लिए समान रूप से मानते हैं और हमारा संविधान भी यही कहता है. लेकिन हमें लगता है कि एक लोकतांत्रिक देश में जहां सरकार है, पुलिस है और पूरी न्यायिक व्यवस्था है. वहां भीड़ द्वारा लोगों की पीट-पीट कर हत्या कर देना भी स्वीकार्य नहीं हो सकता. ये भारतीय संविधान के खिलाफ तो है ही, बल्कि ये भारत की न्यायसंगत प्रक्रिया पर भी सवाल उठाता है.
इस हिसाब से तो वर्ष 2015 में मोहम्मद पैगम्बर के कार्नूट के लिए फ्रांस की मैगजीन Charlie Hebdo के 12 लोगों को मार दिया गया था, वो भी सही है. इस तरह से तो तालिबान भी सही है.