पंडित नेहरू के 75 साल पुराने भाषण में कांग्रेस नेताओं को कुछ खास मिला है. हिंदी में बोलते हुए नेहरू ने कहा था कि इस आजादी पर सबकी बराबर की हिस्सेदारी है. आगे कोई ज्यादती करेगा तो हम उसे रोकेंगे. और क्या कहा था जो कांग्रेस ने आज 'खोजा' है.
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कांग्रेस के कुछ वरिष्ठ नेता अचानक 75 साल पुराना पंडित नेहरू का एक भाषण शेयर कर रहे हैं. नेहरू हिंदी में भाषण दे रहे हैं और मेज थपथपाए जाने से साफ है कि यह संसद परिसर में दिया गया होगा. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने यह जानकारी शेयर करते हुए लिखा है कि संविधान सभा की बैठक 14 अगस्त 1947 की रात 11 बजे शुरू हुई थी. यह वही ऐतिहासिक सत्र था जो जवाहरलाल नेहरू के प्रसिद्ध भाषण Tryst with Destiny (नियति से साक्षात्कार) की वजह से अमर हो गया. यह सभी जानते हैं कि जवाहरलाल नेहरू ने यह भाषण संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ. राजेंद्र प्रसाद के संबोधन के बाद दिया था. हालांकि अभिलेखों से पता चलता है कि इसके अलावा भी कुछ ऐसा हुआ था, जिसे उस ऐतिहासिक भाषण के प्रभाव के कारण पर्याप्त ध्यान और मान्यता नहीं मिल पाई.
डॉ. राजेंद्र प्रसाद के बोलने के बाद, जवाहरलाल नेहरू ने पहले लगभग छह मिनट तक हिंदुस्तानी में भाषण दिया था. इसके बाद ही उन्होंने लगभग आठ मिनट का Tryst with Destiny वाला अंग्रेजी भाषण दिया, जो इतिहास बन गया. नेहरू का वह हिंदुस्तानी भाषण बेहद काव्यात्मक था और उसमें Tryst with Destiny के सार को अत्यंत सुंदर ढंग से व्यक्त किया गया था. अपने आप में, यह 20वीं सदी के सबसे उत्कृष्ट हिंदुस्तानी भाषणों में से एक है. सौभाग्य से, इस भाषण का पाठ (टेक्स्ट) और उसका ऑडियो रिकॉर्ड -दोनों ही आज उपलब्ध हैं.
काफी समय बाद संविधान सभा की बहसों को दोबारा पढ़ने पर एक लगभग अज्ञात तथ्य सामने आया है।
संविधान सभा की बैठक 14 अगस्त 1947 की रात 11 बजे शुरू हुई थी। यह वही ऐतिहासिक सत्र था, जो जवाहरलाल नेहरू के प्रसिद्ध भाषण Tryst with Destiny (नियति से साक्षात्कार) की वजह से अमर हो गया। यह… pic.twitter.com/ya321V4wCb
— Jairam Ramesh (@Jairam_Ramesh) October 15, 2025
अध्यक्षः अब पण्डित जवाहरलाल नेहरू अपना प्रस्ताव रखेंगे.
माननीय पं. जवाहरलाल नेहरू (संयुक्त प्रांतः जनरल): साहब सदर, कई वर्ष हुए कि हमने किस्मत से एक बाजी लगाई थी, एक इकरार किया था. प्रतिज्ञा की थी. अब वक्त आया कि हम इसे पूरा करें बल्कि वह पूरा तो शायद अभी भी नहीं हुआ, लेकिन फिर भी एक बड़ी मंजिल पूरी हुई. हम वहां पहुंचे हैं. मुनासिब है कि ऐसे वक्त में पहला काम हमारा यह हो कि हम एक प्रण और एक नई प्रतिज्ञा फिर से करें. इकरार करें, आइन्दा हिन्दुस्तान और हिन्दुस्तान के लोगों की खिदमत करने का. चंद मिनटों में यह असेम्बली एक पूरी तौर से आजाद खुदमुख्तार असेम्बली हो जायेगी और यह असेम्बली नुमाइन्दगी करेगी एक आज़ाद खुदमुख्तार मुल्क की. चुनाचे, इसके ऊपर जबरदस्त जिम्मेदारियां आती हैं और अगर हम इन जिम्मेदारियों को पूरी तौर से महसूस न करें तब शायद हम अपना काम पूरी तौर से न कर सकेंगे इसलिये यह जरूरी हो जाता है कि इस मौके पर पूरी तौर से सोच-समझ कर इसका इकरार करें.
हमारे दिल में खुशी और गुरूर है...
जो रिजोल्यूशन (प्रस्ताव) मैं आपके सामने पेश कर रहा हूं वह इसी इकरार, इसी प्रतिज्ञा का है. हमने एक मंजिल पूरी की और आज उसकी खुशियां मनाई जा रही हैं. हमारे दिल में भी खुशी है और किस कदर गुरूर है और इत्मीनान है लेकिन यह भी हम जानते हैं कि हिन्दुस्तान भर में खुशी नहीं है. हमारे दिल में रंज के टुकड़े काफी हैं और दिल्ली से बहुत दूर नहीं-बड़े बड़े शहर जल रहे हैं. वहां की गर्मी यहां आ रही है. खुशी पूरे तौर से नहीं हो सकती; लेकिन फिर भी हमें इस मौके पर हिम्मत से इन सब बातों का सामना करना है.
न हाय-हाय करना है न परेशान होना है. जब हमारे हाथ में बागडोर आई तो फिर ठीक तरह से गाड़ी को चलाना है. आमतौर से अगर मुल्क आजाद होते हैं, काफी परेशानियां मुसीबतों और खूरेजी के बाद होते हैं. काफी ऐसी खूरेजी हमारे मुल्क में भी हुई है और ऐसे ढंग से हुई जो बहुत ही तकलीफदेह हुई है. फिर भी हम आजाद हुए, बाअमन तरीकों से, शांतिमय तरीकों से और एक अजीब मिसाल हमने दुनिया के सामने रखी. हम आजाद हुए लेकिन आजादी के साथ मुसीबतें और बोझ आते हैं. उनका हमें सामना करना है. उनको ओढ़ना है और जो स्वप्न हमने देखा था उसे असल बनाना है.
वह काम पूरा हुआ लेकिन...
हमें मुल्क को आजाद करना था, मुल्क से गैर हकूमत को अलग करना था. वह काम पूरा हुआ लेकिन, गैर हकूमत को अलग करके काम पूरा नहीं होता. जब तक एक एक इन्सान हिन्दुस्तान का आजादी की हवा में न रहे सके और जो मुसीबतें हैं वह हटाई न जाएं और जो उसकी तकलीफें हैं, दूर न हो सकें इसलिए बहुत बड़ा हिस्सा हमारे काम का बाकी है और जब तक वह बातें पूरी न हों उस वक्त तक हमारा काम जारी रहेगा.
बड़े-बड़े सवाल हमारे सामने हैं और उनकी तरफ देखकर कुछ दिल दहल जाता है, लेकिन फिर हिम्मत यह सोच कर आती है कि कितने बड़े सवाल हमने पुराने जमाने में हल किए तो क्या हम इन सवालों से दब जाएंगे? ताकत और गुरूर तो हमारा ... व्यक्तिगत नहीं है लेकिन कुछ गुरूर है अपने मुल्क पर, और कुछ इतमीनान है अपने कौम की ताकत पर और उन पर जिन लोगों ने इतनी बड़ी मुसीबतें झेलीं इसलिये यह भी इतमीनान होता है कि जो इस वक्त कुछ परेशानियों का बोझ है उनको भी हम ओढ़ेंगे और उन सवालों को भी हम हल करेंगे.
हर हिंदुस्तानी का बराबर हक
आखिर हिन्दुस्तान एक आज़ाद मुल्क है, अच्छा है. जब हम आजादी के दरवाजे पर खड़े हैं, हम इसको खासतौर से याद रखें कि हिन्दुस्तान किसी एक फिरके का मुल्क नहीं है, एक मजहब वालों का नहीं है, बल्कि बहुत सारे और बहुत किस्म के लोगों का है. बहुत धर्म और मजहबों का है. किस तरह की आजादी हम चाहते हैं? हमारी तरफ से पहले भी यह कहा गया है. जो पहला रिजोल्यूशन मैंने पहले यहां पेश किया था उसमें भी यह कहा गया था कि यह जो आजादी हमारी है, वह हरेक हिन्दुस्तानी के लिए है, हरेक हिन्दुस्तानी का बराबर-बराबर का हक है. हर हिन्दुस्तानी को इस आजादी का बराबर-बराबर का हिस्सेदारी करना है. इस ढंग से हम आगे बढ़ेंगे और कोई ज्यादती करेगा तो उसे हम रोकेंगे, चाहे वह कोई हो; किसी पर अगर ज्यादती होगी तो उसकी मदद करेंगे, चाहे वह कोई भी हो. अगर हम इस तरह से चलेंगे तो हम बड़े मसले हल कर लेंगे लेकिन अगर हम तंग ख्याली में पड़ जायेंगे तो वह मसले हल नहीं होंगे.
मैं इस रिजोल्यूशन को आपके सामने पेश करता हूं और अंग्रेजी जबान में भी इसको पढ़कर अभी आपको सुनाऊंगा.
(इसके बाद पं. जवाहरलाल नेहरू ने प्रस्ताव को अंग्रेजी जबान में सभा को पढ़कर सुनाया)