आखिर ये मिटती क्यों नहीं! जानें कहां बनती है 'चुनावी स्याही' और कब से इस्तेमाल में आई?
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आखिर ये मिटती क्यों नहीं! जानें कहां बनती है 'चुनावी स्याही' और कब से इस्तेमाल में आई?

वोटर्स के मन मे यह उत्सुकता रहती है कि क्या इस निशान को मिटाया जा सकता है. कब तक यह निशान रहेगा और कब से ऐसा शुरू हुआ. चुनावी स्याही का सफर कहां से शुरू हुआ और यह कहां बनती है. इन सभी सवालों के जवाब हमने ढूंढ लिए हैं.

सांकेतिक तस्वीर

नई दिल्ली: देश में चुनावी माहौल है, ऐसे में हर वोटर काफी उत्साहित रहता है. आपने भी वोटिंग के दौरान नोटिस किया होगा कि अंगुली पर निशान लगाते हैं ताकि कोई दोबारा वोट न डाल सके. नए वोटर्स में स्याही (Indelible Ink) वाली अंगुली का फोटो सोशल मीडिया पर डालने का काफी एक्साइटमेंट रहता है. साथ ही चुनाव आयोग तक खुद इस चीज को प्रमोट करता है कि वोटर्स अंगुली का फोटो सोशल मीडिया पर डालें. इससे और लोग भी वोट डालने के लिए प्रेरित होते हैं.

  1. स्याही को 72 घंटे तक त्वचा से हटाया नहीं जा सकता
  2. पूरे भारत में सिर्फ एक ही जगह बनती है ये स्याही 
  3. मतदाता के बाएं हाथ की तर्जनी पर स्याही लगाई जाती है

वोटर्स के मन में तमाम सवाल

ऐसे में वोटर्स के मन मे यह उत्सुकता रहती है कि क्या इस निशान को मिटाया जा सकता है. कब तक यह निशान रहेगा और कब से ऐसा शुरू हुआ. चुनावी स्याही का सफर कहां से शुरू हुआ और यह कहां बनती है. इन सभी सवालों के जवाब हमने ढूंढ लिए हैं.

सबसे अमीर राजघराने से जुड़ा है स्याही का इतिहास

कर्नाटक में एक जगह है मैसूर. इस जगह पर पहले वाडियार राजवंश का राज चलता था. आजादी से पहले इसके शासक महाराजा कृष्णराज वाडियार थे. वाडियार राजवंश विश्व के सबसे अमीर राजघरानों में से एक था. इस राजघराने के पास खुद की सोने की खान (गोल्ड माइन) थी. 1937 में कृष्णराज वाडियार ने मैसूर लैक एंड पेंट्स नाम की एक फैक्ट्री लगाई. इस फैक्ट्री में पेंट और वार्निश बनाने का काम होता था. अभी इस फैक्ट्री में 91 प्रतिशत हिस्सेदारी कर्नाटक सरकार की है. 1989 में इस फैक्ट्री का नाम बदल मैसूर पेंट एंड वार्निश लिमिटेड (MPVL) कर दिया गया. 

इसलिए इस्तेमाल होती है स्याही 

चुनावी स्याही के जरिए यह सुनिश्चित किया जाता है कि कोई भी मतदाता इलेक्शन में दो बार वोट न करे और इसलिए धोखाधड़ी और कई बार वोटिंग से बचने में इस स्याही की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है. चुनाव आयोग ने केंद्रीय कानून मंत्रालय, राष्ट्रीय भौतिक प्रयोगशाला और राष्ट्रीय अनुसंधान विकास निगम (एनआरडीसी) के सहयोग से चुनावों के लिए इस स्याही की आपूर्ति के लिए इस कंपनी के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हुए हैं.

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इतने सेकंड में स्याही कर देती है अपना काम

शुरुआत में केवल संसदीय और विधान सभा चुनावों के लिए स्याही की आपूर्ति की लेकिन बाद के वर्षों में नगर निकायों और सहकारी समितियों को भी चुनावों के लिए स्याही प्रदान करना शुरू कर दिया. MPVL के अनुसार उच्च गुणवत्ता वाली यह स्याही 40 सेकंड से भी कम समय में पूरी तरह से सूख जाती है. हालांकि, अगर स्याही एक सेकंड के लिए भी त्वचा पर रही है, तो यह अपना प्रभाव छोड़ देगी.

उंगली से क्यों नहीं मिटती वोट वाली स्याही

गौरतलब है कि इस स्याही को बनाने में सिल्वर नाइट्रेट केमिकल का इस्तेमाल किया जाता है. इसी वजह से एक बार त्वचा के किसी भी हिस्से पर लगने के बाद इसे कम से कम 72 घंटे तक त्वचा से हटाया नहीं जा सकता. सिल्वर नाइट्रेट रसायन का प्रयोग किया जाता है और पानी के संपर्क में आने पर यह काला हो जाता है और लंबे समय तक रहता है. जब आप वोट करने जाते हैं, तो इसे आपकी उंगली पर डाल दिया जाता है. सिल्वर नाइट्रेट हमारे शरीर में मौजूद नमक के साथ मिलकर सिल्वर क्लोराइड बनाता है. सिल्वर क्लोराइड पानी में नहीं घुलता और त्वचा से जुड़ा रहता है. इसे साबुन से नहीं धोया जा सकता. एक बार लगाने के बाद यह तब निकलकर आता है जब स्कीन की कोशिकाएं पुरानी हो जाती हैं और वे निकलने लगती हैं.

किस अंगुली में लगेगी स्याही?

इलेक्शन कमीशन की गाइडलाइंस के अनुसार वोटिंग से पहले मतदाता के लेफ्ट हैंड यानी बाएं हाथ की तर्जनी (फोरफिंगर) पर स्याही लगाई जाती है. ब्रश के जरिए नाखून के ऊपर से पहली गांठ तक अमिट स्याही लगाई जाती है. यदि किसी के बाएं हाथ में तर्जनी अंगुली नहीं है तो फिर क्या होगा. ऐसे हालात में उस व्यक्ति के बाएं हाथ की किसी भी अंगुली पर स्याही लगाई जा सकती है. यदि बाएं हाथ पर कोई भी अंगुली नहीं है तो फिर दाएं हाथ की तर्जनी पर यह स्याही लगाई जाती है. यदि उसके दाएं हाथ में भी फोरफिंगर नहीं हो तो दाएं हाथ के किसी भी अंगुली में स्याही लगाई जा सकती है. यदि उसके दोनों हाथों में कोई अंगुलियां नहीं हैं तो दोनों हाथ के किसी हिस्से पर भी स्याही का प्रयोग किया जा सकता है. यदि दोनों ही हाथ नहीं है तो पैर के अंगूठे पर स्याही लगाई जाती है.

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एक बूंद की कीमत कितनी

इस स्याही के खर्च की अगर बात करें तो हर एक बोतल में 10ML स्याही होती है और हर एक बोतल की कीमत 127 रुपये के करीब है. एक लीटर की कीमत 12 हजार 700 रुपये के करीब, वहीं ML के हिसाब से देखा जाए तो 1ml 12 रुपये 70 पैसे के आस पास होगा.

इन्हें जाता है स्याही का श्रेय

इस स्याही का प्रयोग 1962 के चुनाव के साथ ही किया जा रहा है. इस स्याही को भारतीय चुनाव में शामिल कराने का श्रेय देश के पहले मुख्य चुनाव आयुक्त सुकुमार सेन को जाता है. तमाम तकनीकि सीढ़िंया चढ़ने वाला चुनाव आयोग अभी तक इसके दूसरे विकल्प को नहीं तलाश पाया है. 60 साल से अधिक समय से चुनावों में इस स्याही का बखूबी इस्तेमाल हो रहा है.

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