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नई दिल्लीः सिंघु बॉर्डर पर जो हाल किसानों के ट्रैक्टर ने किया था, आज कल वही हाल कनाडा की राजधानी ऑटवा का है, जहां 20 हज़ार ट्रकों ने इस शहर को घेर लिया है. कनाडा में ये विरोध प्रदर्शन ट्रक ड्राइवरों के लिए कोविड वैक्सीन को अनिवार्य किए जाने के ख़िलाफ़ हो रहा है. ये प्रदर्शनकारी कनाडा के प्रधानमंत्री Justin Trudeau के आधिकारिक निवास तक पहुंच गए और हालात इतने बिगड़े गए कि ट्रूडो को वहां से अपना घर छोड़ कर किसी अज्ञात जगह पर जाकर छिपना पड़ा.
ये वही Justin Trudeau हैं, जिन्होंने भारत के किसान आन्दोलन के दौरान प्रदर्शनकारियों को अपना समर्थन दिया था और दिल्ली में हज़ारों ट्रैक्टर के प्रवेश को लोकतांत्रिक बताया था. लेकिन आज वही ट्रूडो, अपने देश में ट्रक ड्राइवरों के प्रदर्शन को अलोकतांत्रिक बता रहे हैं और ये भी कह रहे हैं कि कुछ विदेशी ताकतें इन ट्रक ड्राइवरों के प्रदर्शन को Sponsor कर रही हैं. यहां ये जान लेना जरूरी है कि कैसे कनाडा के 50 हज़ार ट्रक ड्राइवरों ने वहां के प्रधानमंत्री को छिपने के लिए मजबूर कर दिया. और प्रधानमंत्री ट्रूडो को इन ट्रक में भारत के ट्रैक्टर वाले प्रदर्शन का मज़ा आ रहा होगा.
इस समय कनाडा की राजधानी ऑटवा को 50 हज़ार ट्रक ड्राइवरों ने हाइजैक कर लिया है. और इस प्रदर्शन में लगभग 20 हज़ार ट्रक ऑटवा की सड़कों पर खड़े हुए हैं. ये पूरी दुनिया में ट्रकों का अब तक का सबसे लम्बा काफिला है, जिसने कनाडा की संसदीय कार्यप्रणाली, सरकारी कार्यालय और प्रधानमंत्री के दफ्तर और आवास का कामकाज पूरी तरह ठप कर दिया है. और कनाडा के 3 करोड़ 80 लाख लोग ये तक नहीं जानते कि उनके प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो इस समय कहां पर मौजूद हैं?
29 जनवरी को जब, 50 हज़ार प्रदर्शनकारियों ने ट्रकों के साथ Vancouver से राजधानी ऑटवा में प्रवेश किया था, उस समय जस्टिन ट्रूडो को सुरक्षा कारणों से अपने परिवार के साथ प्रधानमंत्री आवास छोड़ना पड़ा था. और इस समय वो कनाडा में हैं भी या नहीं, इसका जवाब किसी के पास नहीं है. ये दुनिया के इतिहास में शायद पहली ऐसी घटना है, जब एक देश के प्रधानमंत्री को, अपने ही देश के प्रदर्शनकारियों से छिपने के लिए अपना सरकारी आवास छोड़ना पड़ा. और ये घटना इसलिए भी ऐतिहासिक है, क्योंकि ऐसा करने वाले नेता कोई और नहीं, वही जस्टिन ट्रूडो हैं, जिन्होंने भारत के किसान आन्दोलन के दौरान, लोकतंत्र में प्रदर्शन के अधिकार पर शानदार लेक्चर दिया था.
तब जस्टिन ट्रूडो ने कहा था कि वो भारत में प्रदर्शन कर रहे किसानों के लिए चिंतित हैं. और चाहते हैं कि शांतिपूर्वक प्रदर्शन करने वाले किसानों को किसी तरह का कोई नुकसान ना पहुंचाया जाए. लेकिन अब जब भारत के ही किसानों की तरह, कनाडा के ट्रक ड्राइवर्स ने भी अपने ही देश की राजधानी को बन्धक बना लिया है तो जस्टिन ट्रूडो गायब हैं. वो शायद भूल गए हैं कि, जब इसी तरह भारत में ट्रैक्टर पर आए किसानों ने दिल्ली की सीमाओं को बन्द कर दिया था, तब वो लोकतंत्र की बात कर रहे थे.
कनाडा के ट्रक ड्राइवर्स, वैक्सीनेशन को अनिवार्य करने और कोविड प्रतिबंधों में सख्ती का विरोध कर रहे हैं. कुछ दिन पहले जस्टिन ट्रूडो ने ये ऐलान किया था कि जिन ट्रक ड्राइवर्स ने अब तक वैक्सीन नहीं लगवाई है, उन्हें अमेरिका से कनाडा में प्रवेश करते समय 14 दिन के लिए Quarantine होना होगा. इसके अलावा ऐसे ड्राइवर्स की नियमित तौर पर कोविड जांच होगी. और ज़रूरत पड़ने पर उनके ख़िलाफ़ जुर्माना भी लगाया जाएगा.
इस समय कनाडा में लगभग साढ़े तीन लाख ट्रक ड्राइवर्स हैं. और समझने वाली बात ये है कि, इन साढ़े तीन लाख ट्रक ड्राइवर्स में से, लगभग 85 प्रतिशत वैक्सीन की दोनों डोज़ लगवा चुके हैं. यानी Fully Vaccinated हैं. केवल 15 प्रतिशत ड्राइवर ही ऐसे हैं, जो वैक्सीन का विरोध कर रहे हैं. यानी आप कह सकते हैं कि केवल मुट्ठीभर लोगों ने कनाडा की संवैधानिक व्यवस्था के सामने एक बड़ा संकट खड़ा कर दिया है. किसी भी लोकतंत्र में प्रदर्शन के अधिकार को, उसका बुनियादी अधिकार माना जाता है. लेकिन कई बार यही बुनियादी अधिकार, लोकतंत्र के लिए उसकी सबसे बड़ी कमज़ोरी या सबसे बड़ी चुनौती साबित होता है.
उदाहरण के लिए....कनाडा के लगभग 80 प्रतिशत लोग वैक्सीन की दोनों डोज़ लगवा चुके हैं. इसके अलावा 85 प्रतिशत ट्रक ड्राइवर्स भी Fully Vaccinated हैं. यानी ऐसे लोग बहुमत में हैं, जो वैक्सीनेशन चाहते हैं. लेकिन इसके बावजूद वैक्सीन का विरोध करने वाले कुछ लोगों ने कनाडा में बहुमत से चुनी गई सरकार और प्रधानमंत्री को छिपने के लिए मजबूर कर दिया है.
भारत में भी जो किसान आन्दोलन हुआ था, उसमें देशभर के किसानों की सहमति नहीं थी. ये आन्दोलन, पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के कुछ इलाक़ों तक सीमित था. लेकिन इसके बावजूद, असहमति रखने वाले कुछ किसानों की वजह से, बाकी किसानों की आवाज़ दब कर रह गयी. और आज कनाडा में भी लगभग ऐसा ही हो रहा है.
कनाडा के साढ़े तीन लाख ट्रक ड्राइवर्स में से डेढ़ लाख ड्राइवर्स ऐसे हैं, जो रोज़ाना अमेरिका की सीमा में प्रवेश करते हैं. और ये ट्रक ड्राइवर्स, इसलिए भी अहम हैं, क्योंकि कनाडा का मौसम काफ़ी ठंडा है. वहां Supermarkets में बिकने वाला ज्यादातर सामान अमेरिका से आता है. और ये ट्रक ड्राइवर्स ही इस सामान को इन Supermarkets तक पहुंचाते हैं. इसलिए आज हम जस्टिन ट्रूडो से कहना चाहते हैं कि, हमें इन हज़ारों ड्राइवर्स की चिंता है और हम चाहते हैं कि शांतिपूर्वक प्रदर्शन करने वाले इन लोगों को किसी तरह का कोई नुकसान ना पहुंचाया जाए. यानी हम जस्टिन ट्रूडो को वही सलाह देना चाहते हैं, जो उन्होंने भारत के किसान आन्दोलन के दौरान दी थीं.
कनाडा में जस्टिन ट्रूडो की सरकार, इन प्रदर्शनकारियों को मिलने वाले फंड्स पर भी सवाल खड़े कर रही है. और उसे शक है कि अमेरिका और दूसरे देशों में मौजूद कुछ ताकतों ने इस आन्दोलन को हाइजैक कर लिया है. Freedom Convoy नाम के इस आन्दोलन को फेसबुक पर 2 लाख 75 हज़ार लोगों ने अपना समर्थन दिया है. इसके अलावा इस आन्दोलन को अलग-अलग माध्यमों से 70 हज़ार Donations मिल चुकी हैं. और कहा जा रहा है कि लगभग साढ़े चार Million US Dollars यानी 34 करोड़ रुपये इन प्रदर्शनकारियों को आर्थिक मदद के रूप में मिले हैं, ताकि ये आन्दोलन कई दिनों तक चले.
ये संयोग की बात है कि भारत में हुए किसान आन्दोलन के दौरान भी ऐसी ही बातें सामने थीं. तब हमारे देश की सुरक्षा एजेंसियों ने किसान संगठनों को कनाडा और अमेरिका जैसे देशों से मिलने वाली आर्थिक मदद पर संदेह जताया था. और इन देशों से इसकी जांच की मांग की थी. लेकिन तब इन देशों ने इस पर कोई कदम नहीं उठाए. लेकिन अब जब यही सबकुछ कनाडा में हो रहा है तो जस्टिन ट्रूडो को इसमें साज़िश दिख रही है.
भारत का किसान आन्दोलन, हमारे देश का आंतरिक मामला था. लेकिन कनाडा और अमेरिका में मौजूद खालिस्तानी संगठनों ने इसका फायदा उठाया और जस्टिन ट्रूडो जैसे नेताओं ने इस पर अपनी चिंता जाहिर करके भारत के आंतरिक मामलों में दखल दिया. लेकिन जब अमेरिका और दूसरे देशों के नेता, कनाडा के ट्रक ड्राइवर्स के समर्थन में बयान दे रहे हैं तो कनाडा की सरकार उन्हें अपने देश के आंतरिक मामलों से दूर रहने की नसीहत दे रही है.
सोचिए कितनी अजीब बात है कि, ये देश भारत के आंतरिक मामलों में तो बिना सोचे समझे दखल देते हैं. लेकिन जब इनके यहां कोई विरोध प्रदर्शन होता है तो ये चाहते हैं कि इस पर दूसरे देशों के नेता कुछ ना बोलें. जस्टिन ट्रूडो को ये ज़रूर सोचना चाहिए कि अगर भारत के प्रधानमंत्री, वहां प्रदर्शन कर रहे ट्रक ड्राइवर्स को सैद्धांतिक तौर पर अपना समर्थन देते हैं तो उनका क्या रुख़ होगा? क्या वो भारत के प्रधानमंत्री के ऐसे किसी भी कदम का स्वागत करेंगे? अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रम्प और Tesla के CEO Elon Musk ने इस आन्दोलन को अपना समर्थन दिया है. उन्होंने ट्विटर पर लिखा है..Canadian truckers rule.. यानी कनाडा के ट्रक चालकों का शासन. इस ट्वीट के लिए कनाडा की सरकार ने Elon Musk और डॉनल्ड ट्रम्प की आलोचना की है. और उन्हें ऐसा करने से बचने के लिए कहा है.
आपको याद होगा, भारत में जब किसान आन्दोलन चल रहा था, उस समय Barbados की मशहूर सिंगर, Rihanna, स्वीडन की पर्यावरण कार्यकर्ता Greta Thunberg और मिया खलीफा ने किसानों से समर्थन में ट्वीट किए थे. और जब भारत सरकार ने भी ऐसा ही रुख़ अपनाया था तो हमारे देश की विपक्षी पार्टियां और पश्चिमी देशों के मीडिया ने भारत सरकार को असहनशील बताया था. लेकिन अब पश्चिमी मीडिया पर चुप हैं. हम रिहाना, ग्रेटा थनबर्ग और मिया खलीफा से पूछना चाहते हैं कि वो कनाडा के इन प्रदर्शनकारियों के समर्थन में कब ट्वीट करेंगी. क्योंकि ये वो ट्रक ड्राइवर्स हैं, जो अगर कामकाज छोड़ कर अपने घर पर बैठ जाएं तो कनाडा में खाने का संकट पैदा हो जाएगा. क्या अब ये इन लोगों के अधिकारों की बात करेंगे?
वैसे भारत के किसान आन्दोलन और कनाडा के ट्रक ड्राइवरों के आन्दोलन में एक और समानता है. 29 जनवरी को जब ऑटवा में ये प्रदर्शनकारी वहां की संसद और War Memorial के पास इकट्ठा हुए तो इस दौरान हिटलर की नाजी विचारधारा वाले झंडे लहराए गए थे, जिन्हें फांसीवाद का प्रतीक माना जाता है. वर्ष 1933 में जब Adolf Hitler को जर्मनी के चांसलर के रूप में नियुक्त किया गया था, तब इस झंडे को जर्मनी के राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाया गया था. और इसी वजह से कनाडा की सरकार, ट्रक ड्राइवर्स के विरोध प्रदर्शन को देशविरोधी बता रही है.
लेकिन, जब भारत में किसान आन्दोलन के दौरान खालिस्तान के झंडे लहराए गए थे, तब यही कनाडा ना सिर्फ़ इसका समर्थन कर रहा था. बल्कि वहां के सांसद, इसे लोकतांत्रिक मान रहे थे. यही नहीं जस्टिन ट्रूडो ने 26 जनवरी 2021 को लाल किले पर भड़की हिंसा पर भी कुछ नहीं कहा था, जिसमें कुछ प्रदर्शनकारियों ने लाल किले पर एक विशेष धर्म का झंडा फहराया था. हम जस्टिन ट्रूडो से यही कहना चाहते हैं कि समय का चक्र कभी बेईमानी नहीं करता. ये पूरी ईमानदारी के साथ सच को सामने रखता है. और कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो आज इसी कड़वे सच का सामना कर रहे हैं.