Shiv Sena 2005 Split: उद्धव और राज ठाकरे को लेकर महाराष्ट्र की सियासत एक बार फिर गरमा गई है. कयास लगाए जा रहे हैं कि दोनों भाई पुरानी तल्खियों को भुलाकर सुलह की तरफ आगे बढ़ रहे हैं. लेकिन राजनीति के जानकारों की मानें तो ठाकरे बंधुओं में अगर यह सुलह होती भी है तो इसमें कई शर्तें हो सकती हैं.
Trending Photos
Shiv Sena 2005 Split: उद्धव और राज ठाकरे को लेकर महाराष्ट्र की सियासत एक बार फिर गरमा गई है. कयास लगाए जा रहे हैं कि दोनों भाई पुरानी तल्खियों को भुलाकर सुलह की तरफ आगे बढ़ रहे हैं. लेकिन राजनीति के जानकारों की मानें तो ठाकरे बंधुओं में अगर यह सुलह होती भी है तो इसमें कई शर्तें हो सकती हैं. साथ आने वाला चुनाव भी इस सुलह की वजह हो सकता है. आइये आपको बताते हैं 2 दशक पहले बाला साहेब ठाकरे की शिवसेना में ऐसा क्या हुआ था.. जिसकी वजह से राज ठाकरे ने अलग होने का रास्ता चुन लिया था. और तब दोनों भाइयों राज और उद्धव ठाकरे ने क्या कहा था?
शिवसेना से क्यों दूर हुए राज ठाकरे?
वो दिन था 18 दिसंबर 2005. दूसरे पहर में मुंबई के शिवाजी पार्क स्थित जिमखाना में राज ठाकरे ने प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई. वे बेहद भावुक थे. उन्होंने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि ऐसा दिन मेरे दुश्मनों को भी न देखना पड़े.. मैं ऐसी दुआ करूंगा. मुझे सिर्फ सम्मान चाहिए था.. लेकिन बार-बार अपमान मिला. उस दिन 36 वर्षीय राज ठाकरे ने शिवसेना से इस्तीफा देने का ऐलान किया. शिवसेना वही पार्टी थी.. जिसे उनके चाचा बाला साहेब ठाकरे ने खड़ा किया था. शिवसेना से इस्तीफा देने के तीन महीने बाद राज ठाकरे ने अपनी नई पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) बनाई.
तब क्या कहा था उद्धव ठाकरे ने?
जिस दिन राज ठाकरे ने शिवसेना से इस्तीफा देने के लिए ऐलान किया.. उसी दिन उद्धव ठाकरे ने भी मातोश्री (ठाकरे परिवार का निवास) से प्रेस को संबोधित किया था. उन्होंने कहा था कि राज के इस फैसले की वजह एक गलतफहमी है. 27 नवंबर को उन्होंने विरोध जताया और हम तीन हफ्ते तक यही उम्मीद करते रहे कि सुलह हो जाएगी. लेकिन 15 दिसंबर को बालासाहेब से मुलाकात के बाद भी वे अपने फैसले पर अड़े रहे. उस समय उद्धव 44 साल के थे और शिवसेना के कार्यकारी प्रमुख थे. बालासाहेब ठाकरे ने इस पर मीडिया से कुछ नहीं कहा.. लेकिन बताया गया कि वे राज ठाकरे के फैसले से बेहद आहत थे.
20 साल बाद फिर करीब आते दिखे ठाकरे बंधु
अब 20 साल बाद एक बार फिर वही दो चचेरे भाई एक बार फिर साथ आने के संकेत दे रहे हैं. यह संकेत महाराष्ट्र ही नहीं बल्कि पूरे देश की राजनीतिक गलियारों में हलचल पैदा कर रहा है. MNS शुरुआती दौर में 'मराठी मानूस' के मुद्दे पर लोकप्रिय हुई थी. लेकिन आज MNS राजनीतिक रूप से लगभग अप्रासंगिक हो चुकी है. दूसरी तरफ उद्धव ठाकरे की अगुवाई वाली शिवसेना 2022 में एकनाथ शिंदे की बगावत के कारण टूट गई थी.
महाराष्ट्र का हित ज्यादा बड़ा है..
राज ठाकरे ने हाल ही में एक पॉडकास्ट में कहा कि मेरे और उद्धव के बीच के मतभेद छोटे हैं. महाराष्ट्र इन सब से बड़ा है. ये आपसी झगड़े महाराष्ट्र और मराठी जनता को भारी पड़ रहे हैं. साथ आना कोई मुश्किल काम नहीं है.. बस इच्छा होनी चाहिए. वहीं, उद्धव ठाकरे ने सार्वजनिक मंच से कहा कि वे साथ आने को तैयार हैं लेकिन एक शर्त के साथ.. मैं निजी झगड़े भुला सकता हूं, लेकिन हम रोज पाला नहीं बदल सकते. एक दिन समर्थन अगले दिन विरोध और फिर समझौता! जो महाराष्ट्र विरोधी काम करेगा, उसे मैं न घर बुलाऊंगा ना उसके साथ बैठूंगा. उद्धव का यह बयान राज ठाकरे द्वारा प्रधानमंत्री मोदी का समर्थन करने को लेकर था.
क्या कहा संजय राउत ने?
शिवसेना (UBT) नेता संजय राउत ने कहा कि फिलहाल कोई गठबंधन नहीं हुआ है. केवल भावनात्मक बातचीत चल रही है. राज और उद्धव भाई हैं, रिश्ते टूटे नहीं हैं. आगे क्या होगा.. दोनों भाई तय करेंगे. मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने इस मुद्दे पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि अगर दोनों साथ आते हैं तो खुशी की बात है. लोग आपस में मतभेद सुलझाएं.. ये अच्छा है. वहीं, डिप्टी सीएम एकनाथ शिंदे से जब इस पर सवाल किया गया तो उन्होंने झल्लाकर कहा.. काम की बात कीजिए. एनसीपी (SP) नेता सुप्रिया सुले ने इस संभावना का स्वागत करते हुए कहा कि राज ठाकरे ने सही कहा कि महाराष्ट्र का हित उनके आपसी झगड़ों से बड़ा है. अगर बाला साहेब होते तो उन्हें आज बहुत खुशी होती.
राजनीतिक मजबूरी या दिल से बदलाव?
राज ठाकरे कई बार कह चुके हैं कि उनके मतभेद व्यक्तिगत नहीं.. राजनीतिक हैं. लेकिन उनका यह प्रस्ताव मौजूदा राजनीतिक स्थिति से भी जुड़ा हुआ है. 2006 में बनी MNS ने 2009 में 13 सीटें जीतकर अच्छा प्रदर्शन किया था. लेकिन 2014, 2019 और 2024 के चुनावों में पार्टी बुरी तरह पिछड़ी. दूसरी तरफ, उद्धव ठाकरे को अपनी सरकार और पार्टी दोनों गंवानी पड़ीं. शिवसेना (UBT) ने लोकसभा चुनाव में अच्छा प्रदर्शन किया लेकिन विधानसभा में सिर्फ 20 सीटें ही जीत सकी.
क्या फिर से साथ आएंगे ठाकरे बंधु?
इन हालातों में दोनों भाइयों के लिए साथ आना भावनात्मक ही नहीं बल्कि राजनीतिक रूप से भी फायदेमंद हो सकता है. क्या वे पुराने गिले-शिकवे भुलाकर एकजुट होंगे? क्या बालासाहेब ठाकरे की विरासत एक बार फिर साथ आएगी? यह आने वाले महाराष्ट्र चुनावों में देखने वाली सबसे दिलचस्प कहानी होगी.