किसान बिल पर इतनी हाय-तौबा क्यों? जानें नए विधेयकों में शामिल प्रावधान से फायदा या नुकसान
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किसान बिल पर इतनी हाय-तौबा क्यों? जानें नए विधेयकों में शामिल प्रावधान से फायदा या नुकसान

सड़क पर किसान और संसद में नेता तीन विधेयकों को लेकर हाय-तौबा कर रहे हैं. दरअसल सोमवार को लोकसभा में तीन बिल पेश किए गए. मंगलवार को उनमें से एक बिल पास हो गया और बाकी दो विधेयक कल यानी गुरुवार को पारित हुए. 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (फाइल फोटो)

नई दिल्ली: सड़क पर किसान (Farmer) और संसद में नेता तीन विधेयकों को लेकर हाय-तौबा कर रहे हैं. दरअसल सोमवार को लोक सभा (Lok Sabha) में तीन बिल पेश किए गए. मंगलवार को उनमें से एक बिल पास हो गया और बाकी दो विधेयक कल यानी गुरुवार को पारित हुए. 

ये हैं वो 3 बिल
पहला बिल है : कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) बिल
दूसरा बिल है : मूल्य आश्वासन और कृषि सेवाओं पर किसान (संरक्षण एवं सशक्तिकरण बिल)
तीसरा बिल है : आवश्यक वस्तु संशोधन बिल

विरोध इन तीनों ही विधेयकों पर है. किसान और विपक्ष तो विरोध कर ही रहे थे, NDA सरकार के घटक अकाली दल शिरोमणि से मंत्री हरसिमरत कौर बादल (Harsimrat Kaur Badal) ने तो मंत्री पद से इस्तीफा ही दे दिया. अब सवाल ये है कि क्या हरसिमरत कौर का इस्तीफा NDA में फूट का इशारा है?

सड़क से संसद तक किसान बिल पर संग्राम है. कुछ किसानों को सरकार का कृषि विधेयक नापसंद है. वो कहते हैं कि सरकार का कृषि विधेयक किसानों के हित में नहीं है. विपक्षी दलों की राय भी यही है और वो सरकार का जबरदस्त विरोध भी कर रहे हैं. 

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बावजूद इसके दो कृषि विधेयक गुरुवार यानी कल लोकसभा में पारित हो गए और एक लोकसभा में मंगलवार को पारित हुआ था. विधेयक के विरोध में चिंगारी सरकार के अंदर भी सुलग रही थी. किसान बिल के विरोध की ये चिंगारी थी शिरोमणि अकाली दल से मंत्री हरसिमरत कौर बादल. 

विरोध इतना कि हरसिमरत कौर ने मंत्री पद से इस्तीफा ही दे दिया. उन्होंने ट्वीट किया है, 'मैंने केंद्रीय मंत्री पद से किसान विरोधी अध्यादेशों और बिल के खिलाफ इस्तीफा दे दिया है. किसानों की बेटी और बहन के रूप में उनके साथ खड़े होने पर गर्व है.'

अब सवाल ये उठता है कि क्या हरसिमरत कौर का इस्तीफा किसान बिल के मुद्दे पर NDA में फूट की नींव है? अभी तक इस बारे में कुछ स्पष्ट नहीं है कि अकाली दल मोदी सरकार को समर्थन जारी रखेगी या फिर समर्थन वापस लेगी. खैर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने किसान विधेयक पर ट्वीट किया और कहा, 'लोकसभा में ऐतिहासिक कृषि सुधार विधेयकों का पारित होना देश के किसानों और कृषि क्षेत्र के लिए एक महत्वपूर्ण क्षण है. ये विधेयक सही मायने में किसानों को बिचौलियों और तमाम अवरोधों से मुक्त करेंगे.'

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि बिल किसानों को सशक्त बनाएगा. उन्होंने कहा, 'इस कृषि सुधार से किसानों को अपनी उपज बेचने के लिए नए-नए अवसर मिलेंगे, जिससे उनका मुनाफा बढ़ेगा. इससे हमारे कृषि क्षेत्र को जहां आधुनिक टेक्नोलॉजी का लाभ मिलेगा, वहीं अन्नदाता सशक्त होंगे.'

प्रधानमंत्री मोदी ने नाम तो किसी का नहीं लिया लेकिन इतना तो कहा कि किसानों को भ्रमित किया जा रहा है. उन्होंने कहा, 'किसानों को भ्रमित करने में बहुत सारी शक्तियां लगी हुई हैं. मैं अपने किसान भाइयों और बहनों को आश्वस्त करता हूं कि MSP और सरकारी खरीद की व्यवस्था बनी रहेगी. ये विधेयक वास्तव में किसानों को कई और विकल्प प्रदान कर उन्हें सही मायने में सशक्त करने वाले हैं.'

अब बारी विपक्ष की थी. लिहाजा राहुल गांधी ने किसान बिल के विरोध में ऊंचा सुर लगाया. राहुल ने कहा, 'किसान ही हैं जो खरीद खुदरा में और अपने उत्पाद की बिक्री थोक के भाव करते हैं. मोदी सरकार के तीन 'काले' अध्यादेश किसान-खेतिहर मज़दूर पर घातक प्रहार हैं ताकि न तो उन्हें MSP व हक़ मिलें और मजबूरी में किसान अपनी जमीन पूंजीपतियों को बेच दें. मोदी जी का एक और किसान-विरोधी षड्यंत्र.'

ये तो रही किसान बिल पर बात राजनीति की. अब आप ये समझिए कि किसान विरोध क्यों कर रहे हैं.

किसान क्यों कर रहे हैं विरोध
किसान वैसे तो तीनों अध्यादेशों के ख़िलाफ़ प्रदर्शन कर रहे हैं लेकिन सबसे ज्यादा आपत्ति उन्हें पहले अध्यादेश के प्रावधानों से है. उनकी समस्या मुख्य रूप से व्यापार क्षेत्र, व्यापारी, विवादों का हल और बाजार शुल्क को लेकर हैं. किसानों ने आशंका जताई है कि जैसे ही ये विधेयक पारित होंगे, इससे न्यूनतम समर्थन मूल्य प्रणाली को खत्म करने का रास्ता साफ हो जाएगा और किसानों को बड़े पूंजीपतियों की दया पर छोड़ दिया जाएगा.

नए विधेयकों में शामिल प्रावधान क्या हैं?
नए विधेयकों के मुताबिक अब व्यापारी मंडी से बाहर भी किसानों की फसल खरीद सकेंगे. पहले फसल की ख़रीद केवल मंडी में ही होती थी. केंद्र ने अब दाल, आलू, प्याज, अनाज और खाद्य तेल आदि को आवश्यक वस्तु नियम से बाहर कर इसकी स्टॉक सीमा समाप्त कर दी है. इसके अलावा केंद्र ने कॉन्ट्रैक्ट फॉर्मिंग को बढ़ावा देने पर भी काम शुरू किया है.

सान विधेयकों पर विपक्षी दलों का तर्क है कि ये विधेयक न्यूनतम समर्थन मूल्य प्रणाली को कमजोर कर देगा और बड़ी कंपनियां किसानों के शोषण के लिए स्वतंत्र हो जाएंगी, जबकि कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने इन विधेयकों को परिवर्तनकारी और किसानों के हित में बताते हुए कहा कि किसानों के लिए एमएसपी प्रणाली जारी रहेगी.

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