अटल जी के लिये एक अदद अलग समाधि स्थल क्यों नहीं?
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अटल जी के लिये एक अदद अलग समाधि स्थल क्यों नहीं?

16 मई 2013 को मनमोहन सिंह सरकार की कैबिनेट ने फैसला लिया था कि दिल्ली में वीवीआईपी लोगों के अंतिम संस्कार लिये यमुना के किनारे एक ही दाहगृह बनाया जायेगा जिसका नाम राष्ट्रीय स्मृति स्थल होगा. 

अटल बिहारी वाजपेयी की अंतिम यात्रा में पैदल चलते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (फोटोः पीटीआई)

भारतीय राजनीति में अटल बिहारी वाजपेयी का व्यक्तित्व और कृतित्व इतना प्रभावशाली रहा है कि क्या मरणोपरान्त उन्हें राष्ट्रीय स्मृति स्थल से अलग एक विशिष्ट जगह नहीं दी जानी चाहिये थी? पंडित जवाहर लाल नेहरू स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री थे तो अटल जी पहले ऐसे गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री थे जिनकी सरकार ने पांच साल का कार्यकाल पूरा किया. फिर अटल जी तो अटल जी ही ठहरे, जिनका सम्मान घोर विपक्षी भी करते नहीं थकते. कुछ तो अलग रहा अटल जी में कि उनके निधन से पूरा देश सही मायने में दिल से दुखी है. तो क्या अटल जी के नाम समाधि के लिये अलग से एक जगह दिया जाना उचित नहीं होता, बजाय इसके कि उनको राष्ट्रीय स्मृति स्थल में दूसरे स्वर्गीय नेताओं के साथ एक छोटी सी जगह मिले?

दरअसल, 16 मई 2013 को मनमोहन सिंह सरकार की कैबिनेट ने फैसला लिया था कि दिल्ली में वीवीआईपी लोगों के अंतिम संस्कार लिये यमुना के किनारे एक ही दाहगृह बनाया जायेगा जिसका नाम राष्ट्रीय स्मृति स्थल होगा. हालांकि साल 2000 में तत्कालीन वाजपेयी सरकार ने ही फैसला लिया था कि यमुना किनारे जगह की किल्लत को देखते हुए अब किसी भी वीवीआईपी की अलग से समाधि नहीं बनायी जायेगी. एक अलग से समाधि कॉम्प्लेक्स बनाने का फैसला भी वाजपेयी सरकार ने ही लिया था. ये अलग बात है कि सरकारों को यमुना किनारे स्मृति स्थल के लिये जगह तय करने में 13 साल का लंबा वक्त लग गया.

दिल्ली में वीवीआईपी समाधियां लगभग 250 एकड़ क्षेत्र में फैली हैं. राष्ट्रीय स्मृति स्थल में प्रमुख नेताओं के अंतिम संस्कार के लिये जगह दी जाती है और साथ ही उतनी जगह और दी जाती है कि लोग जमा होकर अपने दिवंगत नेता को श्रद्धांजलि दे सकें. इससे पहले महात्मा गांधी की समाधि राजघाट के आसपास कई बड़े राष्ट्रीय नेताओं की कई एकड़ क्षेत्र में अलग से समाधियां बनायी गई हैं. इनकी देखरेख पर सालाना करीब 20 करोड़ रुपये का खर्च केन्द्र उठाता है.

पंडित नेहरू की समाधि शांति वन 52 एकड़ के सबसे बड़े क्षेत्र में है जबकि महात्मा गांधी की समाधि राजघाट का एरिया 44 एकड़ है. इंदिरा गांधी की समाधि शक्ति स्थल 45 एकड़ में है जबकि पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का समाधि स्थल विजय घाट 40 एकड़ में है. दूसरे पूर्व प्रधानमंत्रियों राजीव गांधी की समाधि वीर भूमि 15 एकड़ में और चौधरी चरण सिंह की समाधि किसान घाट 19 एकड़ में है. पूर्व राष्ट्रपति ज़ैल सिंह की समाधि एकता स्थल 22 एकड़ से ज़्यादा क्षेत्र में है.

पूर्व उपप्रधानमंत्रियों जगजीवन राम और देवी लाल की समाधियां भी अलग से बनाई गई हैं. इसके अलावा पूर्व राष्ट्रपतियों शंकर दयाल शर्मा की समाधि कर्मभूमि और के आर नारायणन की समाधि उदय भूमि भी अलग से चिन्हित है. मौलाना अबुल कलाम आज़ाद की याद में एक मज़ार भी अलग से बनायी गई है. संजय गांधी की समाधि को तो शांति वन के ठीक बगल वाली जगह मिली है.

इतने प्रख्यात राष्ट्रीय नेताओं की याद में बनी समाधियों के बाद यमुना किनारे जगह की कमी तो होनी ही थी. इसिलिये भविष्य को ध्यान में रखते हुए एक समाधि कॉम्प्लेक्स बनाने का फैसला बिल्कुल उचित था जिसमें सभी को जगह दी जा सके. वैसे अटल जी अपनी याद में समाधि बनाये जाने के पक्ष में शायद कभी नहीं होते. वैसे भी अटल जी लोगों के दिलों-दिमाग में बसते है, एक नहीं कई पीढ़ियों के और फिर याद तो उन्हें किया जाता है जो भुला दिये गये हों. अटल जी की छाप और याद भारत कभी भुला नहीं पायेगा, यह सच है. लेकिन सवाल तो सिर्फ इतना है कि अटल बिहारी वाजपेयी के योगदान और भारतीय राजनीति में उनके कद को देखते हुए उनकी समाधि के लिये अलग से कुछ एकड़ ज़मीन मुहैया कराया जाना क्या उचित नहीं होता?

अटल जी के निधन पर श्रद्धांजलि देने के लिये गुरुवार को बुलाई गई कैबिनेट की बैठक में अलग से मेमोरियल बनाने पर कोई चर्चा नहीं हुई. लेकिन नाम न बताने की शर्त पर एक उच्च अधिकारी ने बताया कि राष्ट्रीय स्मृति स्थल के ही एक भाग को अलग से अटल-स्मृति बनाया जा सकता है. त्वरित फैसले लेने वाली निर्णायक मोदी सरकार से उम्मीद भी यही है अटल-स्मृति के बारे में अपना फैसला जल्द ही जनता को बताये क्योंकि जनता बेसब्र हो रही है.

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