अयोध्या पर अपने रूख से समझौता नहीं: मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड
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अयोध्या पर अपने रूख से समझौता नहीं: मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा है कि अगर नरेंद्र मोदी सरकार की ओर से रामजन्म भूमि-बाबरी मस्जिद मामले को हल करने के लिए बातचीत का प्रस्ताव आता है तो वह बातचीत के लिए तैयार है, हालांकि वह इस मुद्दे पर अपने रूख से कोई समझौता नहीं करेगा।

अयोध्या पर अपने रूख से समझौता नहीं: मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड

नई दिल्ली : ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा है कि अगर नरेंद्र मोदी सरकार की ओर से रामजन्म भूमि-बाबरी मस्जिद मामले को हल करने के लिए बातचीत का प्रस्ताव आता है तो वह बातचीत के लिए तैयार है, हालांकि वह इस मुद्दे पर अपने रूख से कोई समझौता नहीं करेगा।

पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रवक्ता अब्दुल रहीम कुरैशी ने कहा, अगर बातचीत का कोई प्रस्ताव आता है तो हम अपनी बात रखने के लिए तैयार हैं, लेकिन अगर अपने रूख से कोई समझौते की बात आती है तो हम समझौते के लिए तैयार नहीं है। उनसे सवाल किया गया था कि अगर इस मामले पर मोदी के नेतृत्व वाली मौजूदा सरकार दोनों पक्षों के बीच बातचीत का कोई प्रस्ताव लेकर आती है तो क्या पर्सनल लॉ बोर्ड बातचीत के लिए तैयार है?

उन्होंने कहा, बातचीत होने पर हम अपना पक्ष रखेंगे और उनसे (दूसरा पक्ष से) कहेंगे कि आप सच्चाई को स्वीकार करिए और झूठ की बुनियाद पर आगे नहीं बढ़ा जा सकता। उनका दावा है कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के दस्तावेजों से साबित होता है कि बाबरी मस्जिद का निर्माण किसी मंदिर को गिरा कर नहीं हुआ था।

गौरतलब है कि हिंदू पक्ष का विश्वास है कि बाबरी मस्जिद का ढांचा जिस स्थान पर था, वह भगवान राम की जन्मस्थली है और मस्जिद बनने से पहले वहां मंदिर था। कुरैशी का यह बयान इस संदर्भ में खासा अहम है कि पिछले दिनों कांची पीठ के शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती ने आयोध्या के मामले पर फिर से बातचीत का सिलसिला शुरू करने के मकसद से पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य मौलाना खालिद रशीद फिरंगी महली से मुलाकात की थी।

वैसे, यह कोई पहला मौका नहीं है कि शंकराचार्य ने इस मामले को हल करने के लिए बातचीत शुरू करने की पहल की हो। पूर्व की अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के समय साल 2002 और 2003 में भी उन्होंने हिंदू और मुस्लिम पक्षों के बीच बातचीत कराई थी, हालांकि बातचीत किसी नतीजे तक नहीं जा सकी। दोनों पक्षों ने 30 सितंबर, 2010 को आए इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को स्वीकार नहीं किया जिसके बाद इसे उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी गई।

मई, 2011 में उच्चतम न्यायालय ने उच्च न्यायालय के उस आदेश पर रोक लगा दी थी जिसमें आयोध्या की विवादास्पद 1500 वर्गमीटर भूमि को तीन हिस्सों में बांटने की बात की गई थी। गौरतलब है कि हाल के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने अपने घोषणापत्र में वादा किया था कि अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण संवैधानिक दायरे में किया जाएगा।

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