देह व्यापार को वैध किए जाने के पक्ष में नहीं हैं महिला अधिकार कार्यकर्ता
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देह व्यापार को वैध किए जाने के पक्ष में नहीं हैं महिला अधिकार कार्यकर्ता

राष्ट्रीय महिला आयोग (एनसीडब्ल्यू) जहां एक ओर सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित समिति के समक्ष वेश्यावृत्ति को वैध बनाए जाने का समर्थन करने की तैयारी कर रहा है वहीं महिला अधिकार कार्यकर्ताओं ने कहा कि वह इसके पक्ष में नहीं हैं।

देह व्यापार को वैध किए जाने के पक्ष में नहीं हैं महिला अधिकार कार्यकर्ता

नई दिल्ली : राष्ट्रीय महिला आयोग (एनसीडब्ल्यू) जहां एक ओर सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित समिति के समक्ष वेश्यावृत्ति को वैध बनाए जाने का समर्थन करने की तैयारी कर रहा है वहीं महिला अधिकार कार्यकर्ताओं ने कहा कि वह इसके पक्ष में नहीं हैं।

एनसीडब्ल्यू की अध्यक्ष ललिता कुमारमंगलम ने इससे पहले देश में यौन कर्मियों की जीवन दशा में सुधार के लिए देह व्यापार को वैध करने का समर्थन करते हुए कहा था कि वह सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित समिति के समक्ष आठ नवंबर को मामले को लेकर अपनी सिफारिशें देंगी।

लेकिन महिला अधिकार कार्यकर्ताओं का मानना है कि ‘गैरअपराधीकरण’ एवं ‘वैधीकरण’ के बीच की पतली रेखा को परिभाषित करने की जरूरत है और महिलाओं के देह व्यापार को मर्जी से करने या उनसे यह काम जबरन कराए जाने जैसी चीजों को ध्यान में रखा जाना चाहिए।

अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला संघ (एआईपीडब्ल्यूए) की सचिव कविता कृष्णन ने कहा, एनसीडब्ल्यू को इस तरह के किसी भी प्रस्ताव का मसौदा तैयार करने से पहले यौनकर्मियों के लिए काम करने वाले समूहों से सलाह लेनी चाहिए थी। उन्हें भी प्रक्रिया में शामिल करना चाहिए था।

उन्होंने कहा, मानव तस्करी एक अपराध है, लेकिन मेरा मानना है कि सामाजिक पाखंड और पुलिस के शोषण से पीड़ित यौन कर्मियों के लिए अधिकार एवं सम्मान सुनिश्चित करने के लिए देह व्यापार के ‘व्यवस्थित गैरअपराधीकरण’ की जरूरत है। सेंटर फार सोशल रिसर्च की निदेशक रंजना कुमारी ने कहा कि देह व्यापार को वैधता प्रदान करने से श्रम कानूनों का उल्लंघन होगा।

रंजना ने कहा, अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार कोई भी व्यापार जो ‘स5य’ है और जबरन किया गया नहीं हो, वैध है। देह व्यापार इनमें से किसी भी श्रेणी में नहीं आता। हम सैकड़ों मौजूदा क्षेत्रों में श्रम कानून लागू नहीं कर पाए हैं और देह व्यापार की बात कर रहे हैं।

उन्होंने कहा, क्या इसका मतलब यह है कि हम देह व्यापार से अर्जित की गयी आय को अपनी लेखा प्रणाली, प्रति व्यक्ति आय में शामिल करने की तरफ बढ़ रहे हैं। यौन कर्मियों के लिए काम करने वाले गैर सरकारी संगठन शक्ति वाहिनी के संस्थापक रविकांत ने कहा, यौन कर्मी समाज में बराबरी का दर्जा और अवसरों तक पहुंच चाहते हैं। वे चाहते हैं कि कानून उन्हें पुलिस के शोषण से बचाए लेकिन वे निश्चित तौर पर देह व्यापार के लिए कानूनी दर्जा नहीं चाहते। सुप्रीम कोर्ट ने 2010 में यौन कर्मियों के पुनर्वास को लेकर एक जनहित याचिका दायर किए जाने के बाद अगस्त, 2011 में एक समिति का गठन किया था।

समिति अनैतिक गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम, 1956 (आईटीपीए) के मौजूदा प्रावधानों, कमियों, कानून के कार्यान्वयन और यौन कर्मियों एवं उनके जीवन पर इस कार्यान्वयन के प्रभाव को लेकर विचार करेगी। आईपीटीए को महिलाओं की तस्करी और व्यवसायिक उद्देश्यों के लिए उनका यौन शोषण किए जाने पर रोक लगाने के लिए किया गया था।

 

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