Year Ender 2017: यूपी में BJP को मिला राज तो अन्य दलों का शुरू हुआ वनवास
Advertisement

Year Ender 2017: यूपी में BJP को मिला राज तो अन्य दलों का शुरू हुआ वनवास

साल 2017 उत्तर प्रदेश की राजनीति के हिसाब से काफी रोचक रहा. एक तरफ जहां भारतीय जनता पार्टी का सत्ता से दूरी यानी 'वनवास' खत्म हुआ तो पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के लिए यह साल बुरे सपनों से भरा रहा.

उत्तर प्रदेश की राजनीति में यह साल किसी के लिए स्वर्ण काल तो किसी के लिए दुस्वपन साबित हुआ

लखनऊ : उत्तर प्रदेश की राजनीति में 2017 का साल बहुत उठा-पटक वाला रहा. एक तरफ जहां बीजेपी के लिए यह साल कामयाबियों भरा रहा तो दूसरी तरफ बसपा, सपा और कांग्रेस के लिए एक बुरे सपने की तरह बीता. नए साल की शुरुआत से ठीक पहले गुजरते साल की उन यादों को सहेजना काफी जरूरी है. साल 2017 उत्तर प्रदेश की राजनीति के हिसाब से काफी रोचक रहा. एक तरफ जहां भारतीय जनता पार्टी का सत्ता से दूरी यानी 'वनवास' खत्म हुआ तो पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के लिए यह साल बुरे सपनों से भरा रहा. पार्टी में कलह का खामियाजा उन्हें विधानसभा चुनाव में उठाना पड़ा. नई सरकार के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ बने, तो उनके सामने काफी चुनौतियां हैं. 

  1. इस साल यूपी में बीजेपी का वनवास खत्म हुआ
  2. कांग्रेस और सपा का गठबंधन भी नहीं आया रास
  3. कांग्रेस के लिए यह साल भी बहुत खराब रहा है

एक तरफ जहां उनके भीतर यूपी में विकास को लेकर छटपटाहट दिखाई दे रही है, वहीं 2019 के लोकसभा चुनाव में प्रदेश में अधिक से अधिक लोकसभा सीटें जितवाने का दबाव भी रहेगा. गुजरते साल में सत्ता संभालने वाली योगी सरकार यदि शुरुआती महीनों में किसानों की कर्जमाफी को लेकर फिक्रमंद रही तो वर्ष की दूसरी छमाही में वह उत्तर प्रदेश पर लगे औद्योगिक पिछड़ेपन के दाग को धोने के लिए कृतसंकल्प दिखी. 

इस साल यूपी विधानसभा चुनाव के नतीजे आए और इस चुनाव ने यूपी की राजनीतिक को बदल दिया. भाजपा ने इस चुनाव में ऐतिहासिक जीत हासिल की. यूपी की सत्ता में सालों से काबिज सपा और बसपा का सफाया हो गया. बीजेपी ने पहली बार 325 सीटें हासिल की. समाजवादी पार्टी दूसरे नंबर पर रही. सपा ने 47 सीटों पर जीत हासिल की, वहीं मायावती की बहुजन समाज पार्टी ने 19 सीटों पर जीत का परचम लहराया. जबकि 2012 के चुनाव में सपा को 224, बसपा को 80 और भाजपा को मात्र 47 सीटें मिली थीं.

सपा में कलह : समाजवादी पार्टी के लिए साल 2017 कुछ ठीक नहीं रहा. इसी साल चुनाव के दौरान सपा परिवार में कलह और मनमुटाव की खबरों ने सुर्खियां बटोरी थी. इसका असर चुनाव नतीजों पर दिखा. अखिलेश यादव और सपा के पूर्व मुखिया-अखिलेश यादव के पिता मुलायम सिंह यादव के बीच काफी समय तक खींचतान चलती रही. मुलायम के अध्यक्ष पद को लेकर और पार्टी के चुनाव चिन्ह को लेकर भी काफी समय तक तनातनी चलती रही, आखिरकार निर्वाचन आयोग ने सपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश को माना और उन्हें ही चुनाव चिन्ह दिया.

अध्यक्ष बने अखिलेश : एक जनवरी, 2017 को जनेश्वर मिश्र पार्क में समाजवादी पार्टी का सम्मलेन हुआ, जिसमें अखिलेश यादव को सपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष घोषित किया गया. मुलायम को सपा का संरक्षक बनाए जाने का ऐलान किया गया. परिवार में चल रहे विवाद के बीच इस कार्यक्रम में शिवपाल सिंह यादव को पार्टी में कोई जगह नहीं दी गई. 

कांग्रेस-सपा की नई दोस्ती : जनवरी के दूसरे पखवाड़े और फरवरी में राज्य में विधानसभा चुनाव की गतिविधियां तेज होने के साथ सपा अध्यक्ष अखिलेश ने कांग्रेस से गठबंधन कर यूपी में चुनाव लड़ने का ऐलान किया. अखिलेश ने लखनऊ में कांग्रेस नेता राहुल गांधी के साथ रोड शो किया. सीटों के बंटवारे में कांग्रेस को 100 सीटें मिलीं, जबकि सपा ने 301 सीटों पर अपने प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतारे. योगी आदित्यनाथ 18 मार्च को भाजपा विधायक दल के नेता चुने गए. 19 मार्च को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में योगी ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. करीब डेढ़ दशक बाद भाजपा यूपी की सत्ता में लौटी है.

निवेश की चुनौतियां : सूबे के औद्योगिक विकास मंत्री सतीश महाना ने आईएएनएस से बातचीत में कहा कि उप्र ने पिछले 15 वर्षों में भ्रष्टाचार ही दिखाई दिया है. वर्ष 2017 में हुए राजनीतिक बदलाव के बाद जनता में भरोसा जगा है. नई सरकार के 9 महीने के कामकाज ने यह साबित किया है कि हम उप्र को विकास की नई ऊंचाइयों पर ले जाने के लिए प्रतिबद्ध हैं. 

दरअसल, प्रदेश में निवेश जुटाने और रोजगार बढ़ाने के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अगुआई में जो व्यूह रचना शुरू हुई, साल बीतते-बीतते उसने अगले वर्ष फरवरी में प्रस्तावित यूपी इन्वेस्टर्स समिट की परिकल्पना को जन्म दिया. इन्वेस्टर्स समिट के जरिये सरकार ने एक लाख करोड़ रुपये का निवेश जुटाने का लक्ष्य तय किया है.

सत्ता संभालते ही योगी सरकार निवेश जुटाने के लिए कारगर नीति का ताना-बाना बुनने में जुट गई थी, जो जुलाई में उप्र औद्योगिक निवेश एवं रोजगार प्रोत्साहन नीति 2017 की शक्ल में सामने आई. औद्योगिक निवेश नीति को अमली जामा पहनाने के लिए नियमावली तैयार करने में जरूर कुछ वक्त लगा, लेकिन नवंबर में यह काम भी पूरा हो गया. इसी कड़ी में विभिन्न सेक्टरों में निवेश आकर्षित करने के लिए नागरिक उड्डयन प्रोत्साहन नीति, उप्र खाद्य प्रसंस्करण नीति, उप्र आईटी एवं स्टार्टअप नीति और उप्र इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण नीति को मंजूरी दी गई. 

इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण नीति के तहत नोएडा, ग्रेटर नोएडा और यमुना एक्सप्रेसवे प्राधिकरण क्षेत्रों को इलेक्ट्रानिक्स मैन्यूफैक्चरिंग जोन घोषित किया गया है. साल बीतने से पहले सरकार छोटे व मझोले उद्योगों के साथ हथकरघा और वस्त्र उद्योग की बढ़ावा देने के लिए भी नीतियां बनाने में कामयाब हुई. उद्योगों की स्थापना के इच्छुक उद्यमियों की राह में कदम-कदम पर रोड़े अटकाने के लिए कुख्यात सरकारी विभागों का ढर्रा बदलने के लिए सरकार का फोकस उद्यमियों को कारोबार करने में सहूलियतें देने पर भी रहा. 

उद्यमियों को संबंधित विभागों से अनापत्तियां, स्वीकृतियां जारी करने के लिए एकल खिड़की (सिंगल विंडो) व्यवस्था को चाक-चौबंद करने पर भी सरकार ने जोर दिया. सिंगल विंडो का संचालन मुख्यमंत्री कार्यालय की देखरेख में करने की पहल हुई. हालांकि सिंगल विंडो की सार्थकता को लेकर उद्यमियों की शिकायतें और शंकाएं बरकरार हैं.

मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में राज्य निवेश प्रोत्साहन बोर्ड का गठन हुआ. निवेश को बढ़ावा देने और राज्य में उद्योगों की स्थापना के लिए तेजी से निर्णय लेने के मकसद से गठित इस बोर्ड में उद्योग जगत को भी प्रतिनिधित्व मिला, ताकि उद्यमियों के दृष्टिकोण को भी बेहतर तरीके से समझा जा सके. सकारात्मक संदेश देने के उद्देश्य से मुख्यमंत्री ने देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में राज्य सरकार की ओर से आयोजित रोड शो में शिरकत की. किसानों की कर्जमाफी के कारण आर्थिक तंगी का शिकार सरकार की काफी ऊर्जा पूर्वाचल एक्सप्रेसवे परियोजना के लिए भूमि अर्जित करने और उसके निर्माण के लिए संसाधन का जुगाड़ करने में खर्च हुई. पूर्वाचल एक्सप्रेसवे के साथ ही बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे के निर्माण के लिए केंद्र सरकार से भी सहयोग की पहल की गई.

(इनपुट आईएएनएस से)

Trending news