यंग इंडियन मामला: गांधी परिवार को झटका, इनकम टैक्स ट्रिब्यूनल ने नहीं मानी राहुल की दलील
यंग इंडियन मामले में गांधी परिवार को आयकर ट्रिब्यूनल ने बड़ा झटका दिया है.
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नई दिल्ली: यंग इंडियन (Young Indian) मामले में गांधी परिवार (Gandhi Family) को आयकर अपीलेट ट्रिब्यूनल (Income Tax Appellate Tribunal) ने बड़ा झटका दिया है. यंग इंडियन मामले में 100 करोड़ रुपये टैक्स का मामला फिर खुलेगा. ट्रिब्यूनल ने गांधी परिवार की याचिका ख़ारिज की. राहुल गांधी ने यंग इंडियन को चैरिटेबल ट्रस्ट बनाने की अर्जी दायर की थी लेकिन ट्रिब्यूनल ने उसे खारिज कर दिया. आयकर ट्रिब्यूनल ने अपने आदेश में यंग इंडियन को वाणिज्यिक संगठन बताया है.
इनकम टैक्स अपीलेट ट्रिब्यूनल ने सोनिया गांधी राहुल गांधी और बाकी कांग्रेस नेताओं से जुड़ी वो अपील खारिज कर दी जिसमें उन्होने यंग इंडियन को मिली चैरिटेबल इनकम टैक्स छूट को बहाल करने की मांग की थी.
यानी यंग इंडियन को टैक्स चुकाना होगा. यंग इंडियन कंपनी में सोनिया गांधी और राहुल गांधी का स्वामित्व है. ये कंपनी 2010 में बनी थी और 2011-12 में इसे चैरिटेबल गितिविधि के अंतर्गत लाकर इस पर इनकम टैक्स छूट रजिस्ट्रेशन लिया था. 2014 में यंग इंडियन के मामले में जांच शुरू हुई और 2015 में इन्वेस्गेटिगेशन विंग ने तहकीकात की तो पाया कि जिस चैरिटेबल मकसद से कंपनी को टैक्स में छूट मिल रही है वो मकसद पूरा नहीं हो रहा बल्कि कंपनी एक ऐसी कंपनी AJL की खरीद में लगी जिसका काम रियल एस्टेट बिजनेस था.
AJL न्यूज़ पेपर पब्लिशिंग का काम करती थी लेकिन 2008 में पब्लिकेशन बंद कर दिया गया और बाद में ये कंपनी कंस्ट्रक्शन के बिजनेस में लग गई. इस कंपनी AJL का स्वामित्व सोनिया गांधी और राहुल गांधी के पास आ गया. AJL को AICC से करीब 90 करोड़ का लोन मिला था, उसकी देनदारी भी यंग इंडियन के पास आ गई. यंग इंडियन ने AJL का स्वामित्व लेने के एवज में केवल 50 लाख रुपये चुकाए. उस समय AJL की प्रापर्टी करीब 400 करोड़ रुपये आंकी गई.
यंग इंडियन ने मार्च 2016 में इसका इनकम टैक्स छूट का रजिस्ट्रेशन सरेंडर कर दिया गया और कहा कि हम अपनी मर्जी से इसे छोड़ रहे हैं. इनकम टैक्स विभाग ने अपनी जांच में पाया कि कंपनी महात्मा गांधी और जवाहर लाल नेहरू के सिद्दांतों को युवाओं में लोकतंत्र और सेकुलरिजम फैलाने के मकसद से चैरिटेबल छूट ले रही थी लेकिन जब कंपनी से चैरिटी के सबूत मांगे गए को कंपनी सबूत उपलब्ध नही करा पाई और ये पाया कि यंग इंडियन कंपनी अपने मकसद के हिसाब से काम नहीं कर रही थी और चैरिटेबल के अंतर्गत अपना हिसाब किताब मेंटेन भी नही कर रही थी.
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जब विभाग ने जांच की तो इस जांच की वजह से अपनी छूट को सरेंडर कर दिया. यंग इंडियन कंपनी ने AJL को क्लेंडेस्टाइन तरीके से लिया. AJL कंपनी कमर्शियल एक्टिविटी में लिप्त थी जबकि उसने भी जो प्रॉपर्टी हासिल की थी वो अखबार खोलने के नाम पर सस्ती दर पर ली थी. और अखबार छापना 2008 में बंद कर दिया गया. बाद में 2016 में शुरू किया गया. इनकम टैक्स विभाग यंग इंडियन की सारी गतिविधी को शुरू से ही कॉमर्शियल मानकर यंग इंडियन से टैक्स देने का कह रहा था लेकिन विभाग के इस फैसले के खिलाफ यंग इंडियन इनकम टैक्स अपीलेट ट्रिब्यूनल चली गई थी. ट्रिब्यूनल ने उनकी अपनील खारिज कर दी और फैसला इनकम टैक्स विभाग के पक्ष में दिया. यानी यंग इंडियन की गतिविधि को कॉमर्शियल मानते हुए 100 करोड़ रुपये के टैक्स का मामला फिर से खुलेगा.
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