युवा शक्ति ही किसी राष्ट्र की संकल्पना को दे सकती है मूर्त रूप: स्वामी आनंद स्वरूप
शंकराचार्य ट्रस्ट के अध्यक्ष स्वामी आनंद स्वरूप के अनुसार, आज देश का परिदृश्य राष्ट्र के प्रति सचेत नागरिकों के मन को व्यथित कर रहा है. भौतिकता की चकाचौंध से भ्रमित समाज का प्रत्येक वर्ग आज आत्मकेंद्रित होता जा रहा है.
- राष्ट्र के प्रति चेतना जागृत करना अत्यंत आवश्यक
- युवा शक्ति के जरिए जागृत हो सकती है देश की चेतना
- इस उद्देश्य को पूरा करने को "राष्ट्र सेवी युवा परिषद" का गठन
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नई दिल्ली: शंकराचार्य ट्रस्ट के अध्यक्ष स्वामी आनंद स्वरूप ने कुंभ में दिए अपने व्याख्यान में कहा है कि युवा शक्ति ही किसी राष्ट्र की संकल्पना को मूर्त रूप दे सकती है. स्वामी आनंद स्वरूप ने चंद्रगुप्त और विवेकानंद का उदाहरण देते हुए बताया कि आचार्य चाणक्य के अहर्निश चिंतन एवं अथक प्रयास से युवा सेनापति चंद्रगुप्त के नेतृत्व में युवाओं ने आर्यावर्त नामक इस देश को विस्तार प्रदान किया था. इतना ही नहीं, देश की दुर्दशा को देखने के बाद स्वामी विवेकानंद ने भी युवाओं के अंदर राष्ट्र के प्रति चेतना जागृत करने का प्रयास किया था.
शंकराचार्य ट्रस्ट के अध्यक्ष स्वामी आनंद स्वरूप के अनुसार, आज देश का परिदृश्य राष्ट्र के प्रति सचेत नागरिकों के मन को व्यथित कर रहा है. भौतिकता की चकाचौंध से भ्रमित समाज का प्रत्येक वर्ग आज आत्मकेंद्रित होता जा रहा है. नतीजतन, लोगों के लिए राष्ट्रहित से अधिक, स्वहित की भावना महत्वपूर्ण हो गई है. उन्होंने कहा कि हमारे जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में मानवीय मूल्यों का ह्रास ही हमारी नियत बन चुकी है.

स्वामी आनंद स्वरूप ने अपने व्याख्यान में कहा कि ऐसे परिस्थितियों से देश को मुक्ति दिलाना अब आवश्यक हो गया है. इसके लिए लोगों के मन में राष्ट्र के प्रति चेतना जागृत करना अत्यंत आवश्यक है. इस महान कार्य को सफल बनाने में देश की युवा पीढ़ी संवाहक बन सकती है. उन्होंने बताया कि शंकराचार्य ट्रस्ट द्वारा पोषित "राष्ट्र सेवी युवा परिषद" का गठन इसी उद्देश्य के साथ किया गया है.
परिषद का उद्देश्य है कि युवाओं के अंदर राष्ट्रीय चेतना जागृत करने का प्रयास करे. जिससे आज की युवा पीढ़ी क्रांति दूत बन कर इस महान देश को उसकी सांस्कृतिक विरासत के साये में उस पथ पर अग्रसर करें, जहाँ जाति भेद, लिंग भेद, क्षेत्र वाद, आर्थिक असमानता परिलक्षित न हो. नागरिको में स्वहित नहीं, बल्कि राष्ट्र हित की भावना जागृत हो. उन्होंने बताया कि यदि ऐसा हुआ तो हमारा देश एक स्वाभिमानी, समृद्ध एवं शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में अपनी महान संतानों आचार्य चाणक्य, स्वामी विवेकानंद, चंद्रशेखर आज़ाद, रामप्रसाद बिस्मिल असफाकउल्लाह एवं नेताजी सुभाषचंद्र बोस के सपने को साकार करने में सक्षम होगा.