Exclusive : बांग्लादेश से दरगाह पर मत्था टेकने आए थे, लेकिन कैदी बनकर रह गए...
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Exclusive : बांग्लादेश से दरगाह पर मत्था टेकने आए थे, लेकिन कैदी बनकर रह गए...

बादल फराज़ी जिस वक्त भारत आए थे, उस वक्त ना तो उन्हें हिंदी और अंग्रेजी भाषा का ज्ञान नहीं था, जिसके कारण वह खुद को कोर्ट में बेकसूर साबित नहीं कर पाए.

मोहम्मद बादल फराज़ी को आजाद कराने के लिए कुछ दिनों पहले देश में कई जगहों पर प्रदर्शन भी हुआ था.

शोएब रजा, नई दिल्ली : ऐश्वर्या राय की फिल्म सरबजीत की कहानी से हर कोई वाकिफ है, कि कैसे पंजाब और पाकिस्तान की सीमा पर रहने वाला शख्स शराब के नशे में सीमा पार चला जाता है और फिर पाकिस्तान उसे जासूस करार दे देता है. कुछ ऐसी ही कहानी को बयान कर रही है बांग्लादेश और भारत के एक कैदी की कहानी को बयां कर रही है. फ़र्क़ सिर्फ इतना है कि सरबजीत के साथ पाकिस्तान ने जुल्म किया था लेकिन हिंदुस्तान इंसानियत और इंसाफ को आगे रखते हुए एक बांग्लादेशी शख्स को उसके वतन तक पहुंचाने का काम कर रहा है.

जी की एक्सक्लूसिव रिपोर्ट में 18 साल उम्र थी मोहम्मद बादल फराज़ी की, जब उन्होंने बांग्लादेश से अजमेर शरीफ़ आने के लिए हिंदुस्तान की सरज़मीं पर कदम रखा था. ख्वाजा की ज़ियारत का सपना आखों में संजोकर 2008 में कोलकाता के रास्ते आए थे, तब उन्हें बीएसएफ के जवानों ने पकड़ लिया था, क्योंकि बादल फराज़ी का नाम बादल सिंह से मिलता था जिस पर कत्ल का इल्जाम था. बादल फराज़ी को दिल्ली पुलिस ने अपने कब्जे में लिया और उस पर मुकदमा चलाया गया.

हिंदी और अंग्रेजी भाषा का नहीं था ज्ञान
बादल फराज़ी जिस वक्त भारत आए थे, उस वक्त ना तो उन्हें हिंदी और अंग्रेजी भाषा का ज्ञान नहीं था, जिसके कारण वह खुद को कोर्ट में बेकसूर साबित नहीं कर पाए.बीएसएफ की कार्रवाई के बाद कोर्ट ने उन्हें उम्रकैद की सजा सुना दी. बादल फराज़ी तिहाड़ पहुंच गया लेकिन यहां उसमें बर्ताव से लेकर तालीम में दिलचस्पी तक जबरदस्त बदलाव दिखा. बादल फराज़ी ने 10वी 12 वी यहां तक की ग्रेजुएशन तक की पढ़ाई भी जेल के अंदर ही मुकम्मल की और वो बेहतरीन अंग्रेजी बोलने लगा.

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कैदियों के काउंसलर ने सुनी फराजी की बात
बादल फराज़ी हिंदी और अंग्रेजी की अच्छी जानकारी हुई तो उसने अपनी बेगुनाही की बात भी की लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी. बादल फराज़ी की जेल से बाहर आने और अपने वतन जाने की सारी उम्मीदे दफ़न होकर रह गई थी. लेकिन बादल फराज़ी की किस्मत में कुछ और ही लिखा था. क्योंकि 2016 में राहुल कपूर नाम का एक फरिश्ता ज़िंदगी मे. दस्तक देने वाला था. राहुल कपूर, यानी वो नौजवान जिसकी कुर्बानी की बदोलत आज बादल फराज़ी अपने मुल्क वापस जा रहा है. राहुल कपूर समाजी कारकुन है और तिहाड़ जेल में कैदियों की काउंसलिंग करते है. राहुल जब बादल फराज़ी से मिले तो उसे फर्राटेदार अंग्रेजी बोलते हुए देखा. बादल फराज़ी के हाव भाव से लेकर जेल में रहने के तौर-तरीके अलग थे. राहुल ने जब बादल फराज़ीस के बात की तो उसे यकीन हो गया कि ये बादल फराज़ी हालात का मारा है. राहुल ने उसी वक़्त से बादल फराज़ी की रिहाई कराने और उसे उसके वतन वापस भेजने के लिए मुहिम की शुरुआत कर दी. 

राहुल कपूर ने बादल फराज़ी के परिवार को बांग्लादेश में ढूंढा. बादल फ़राज़ी के मां-बाप से बात की औऱ उसके बाद बांग्लादेश हाई कमीशन से लेकर विदेश मंत्रायल तक को चिट्ठी लिखी. राहुल ने बादल फराज़ी के लिए सोशल मीडिया से लेकर सड़क तक कैम्पेन चलाया और जब राहुल की कोशिशों पर विदेश मंत्रालय ने कामयाबी की मुहर लगाई तो नतीजा ये निकला कि अब 6 जुलाई को 10 साल के बाद बादल फराज़ी तिहाड़ से सीधा अपने मुल्क रवाना हो जाएंगे. राहुल एक कागज़ की कॉपी दिखाते हुए हमें बताते है कि बादल फराज़ी का बर्ताव का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वो जेल में काम के बदले मिलने वाली पैसों में से हर महीने शहीद होने वाले सैनिकों के परिवार वालों की मदद के लिए 200 रुपये देता है.

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