ZEE जानकारी: सांसों में जहर घोल रहा है वायु प्रदूषण
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ZEE जानकारी: सांसों में जहर घोल रहा है वायु प्रदूषण

आपका दिमाग, आपकी आंखें, आपका गला, आपके फेफड़े, आपका दिल, किडनी, लीवर और यहां तक कि आपकी त्वचा...सब Pollution की भेंट चढ़ रहे हैं . 

ZEE जानकारी: सांसों में जहर घोल रहा है वायु प्रदूषण

DNA में आज हम सबसे पहले सिर से लेकर पांव तक.. आपके शरीर को नुकसान पहुंचाने वाले वायु प्रदूषण का विश्लेषण करेंगे . कहते हैं सांस जिंदगी के लिए सबसे अहम हैं . इसे जीवन की डोर भी कहा जाता है. जिस क्षण कोई व्यक्ति सांस लेना बंद कर देता है, मान लिया जाता है कि उसकी मृत्यु हो गई है . लेकिन अगर हम कहें कि जो सांस आप ले रहे हैं वही आपकी जिंदगी को खत्म कर रही है.. तो आप भी चौंक जाएंगे . लेकिन ये पूरी तरह सच है . आप हर एक सांस के साथ मौत की तरफ बढ़ रहे हैं. 

आपका पूरा शरीर प्रदूषण की गिरफ्त में आ चुका है. इसलिए इस तरह के Mask अब लोगों की जिंदगी का अहम हिस्सा बनते जा रहे हैं, लेकिन ये मास्क भी आपको इस बात की गारंटी नहीं दे सकते, कि आपको Pollution की वजह से कैंसर जैसी बीमारी नहीं होगी . 

आपका दिमाग, आपकी आंखें, आपका गला, आपके फेफड़े, आपका दिल, किडनी, लीवर और यहां तक कि आपकी त्वचा...सब Pollution की भेंट चढ़ रहे हैं . आप सोच रहे होंगे कि ये सब बताकर हम आपको क्यों डरा रहे हैं ? हम आपको डरा नहीं रहे बल्कि चेतावनी दे रहे हैं .

ऐसा हम इसलिए कर रहे हैं क्योंकि हमारे देश में जानलेवा प्रदूषण के बारे में कोई बात नहीं करता, संसद में इस पर बहस नहीं होती, कोई इस को लेकर Open Letter नहीं लिखता, Television Studios की डिबेट से भी ये मुद्दा गायब रहता है . लेकिन आज के बाद ऐसा नहीं होगा, क्योंकि अगर देश का सिस्टम, सरकारें और आम लोग इस विश्लेषण को ध्यान से देखेंगे तो सबको मिलकर ये हालात बदलने ही पड़ेंगे . क्योंकि मामला बहुत गंभीर हो चुका है .

दिल्ली में एक 28 साल की लड़की Lung Cancer का शिकार हो गई . जब वो डॉक्टर के पास गई तो पता लगा कि वो सिगरेट नहीं पीती, उसके परिवार में भी कोई धूम्रपान नहीं करता, फिर भी उसे कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी हो गई है . लड़की का इलाज करने वाले डॉक्टर का कहना है कि ये वायु प्रदूषण की वजह से हुआ है . डॉक्टरों के मुताबिक हर महीने फेफड़ों के कैंसर के 2 या तीन ऐसे मामले सामने आ रहे हैं, जिनमे मरीज़ सिगरेट नहीं पीते . ये बहुत डराने वाली स्थिती हैं. क्योंकि अगर आप धूम्रपान नहीं करते हैं, तंबाकू नहीं चबाते हैं और अपनी सेहत का पूरी तरह ख्याल रखते हैं, तो भी इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि आपको कैंसर नहीं होगा .

हम ऐसा क्यों कह रहे हैं इसको साबित करने के लिए मैं आपको एक उदाहरण देना चाहता हूं . प्रदूषण पर निगाह रखने वाली एक संस्था Berkeley earth के मुताबिक अगर हवा में PM 2.5 कणों की मात्रा सिर्फ 22 भी है.. तो ऐसी हवा में सांस लेना एक सिगरेट पीने के बराबर है . पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के मुताबिक आज दिल्ली की हवा में PM 2.5 कणों की औसत मात्रा 60 है . दिल्ली के नज़रिए से देखा जाए तो आज हवा में प्रदूषण की मात्रा बहुत कम है . ऐसा इसलिए है क्योंकि इन दिनों दिल्ली और आसपास के इलाकों में बारिश हो रही है . लेकिन Berkeley-Earth के मुताबिक ये भी 3 सिगरेट पीने के बराबर है . यानी दिल्ली में हर वक्त हर कोई.. ना चाहकर भी धूम्रपान कर रहा है .

भयंकर प्रदूषण वाले दिनों में दिल्ली का एयर क्वालिटी इंडेक्स 400 तक भी पहुंच जाता है . इस हवा में सांस लेना हर रोज़ 18 से 20 सिगरेट पीने के बराबर है . यानी दिल्ली में पैदा होने वाला हर बच्चा, जन्म के साथ ही प्रतिदिन 15 से 20 सिगरेट पीना शुरू कर देता है . ये हाल सिर्फ दिल्ली का नहीं बल्कि देश के तमाम शहरों का है . इसलिए आप इसे भारत का धूम्रपान काल भी कह सकते हैं . जहां हर व्यक्ति एक पैकेट सिगरेट हर रोज़ पीने को मजबूर है .

सिगरेट के Packets पर तो वैधानिक चेतावनी के तौर पर लिखा होता है कि इससे कैंसर होता है . लेकिन हमारे शहरों की हवा को लेकर ऐसी कोई वैधानिक चेतावनी नहीं दी जाती . 

जबकि हम DNA में ये साबित कर चुके हैं कि शहरों की हवा में सांस लेने और सिगरेट पीने में कोई फर्क नहीं है . हमें लगता है कि अब शहरों में प्रदूषण से जुड़ी चेतावनी वाले बड़े बड़े Hoardings लगाने का वक्त आ गया है . दिल्ली में जब भी कोई हवाई ज़हाज़ उतरने वाला हो, उससे पहले इससे जुड़ी announcement होनी चाहिए . इस announcement में बताया जाना चाहिए कि आज दिल्ली का प्रदूषण कितने cigarettes पीने के बराबर है . और अब आपको दिल्ली की हवा में प्रवेश से पहले ही सावधान हो जाना चाहिए . 

दिल्ली में डॉक्टरों ने 2012 से 2018 के बीच Lung Cancer के मरीज़ों पर एक स्टडी की . इस स्टडी के मुताबिक 50 प्रतिशत मरीज़ Non Smoker यानी सिगरेट ना पीने वाले लोग थे . इनमें 40 प्रतिशत महिलाएं थीं, जबकि 8 प्रतिशत मरीज़ 30 साल से कम उम्र के थे . 10 साल पहले तक इन Doctors के पास ऐसा कोई मरीज़ नहीं पहुंचा था जो 30 साल से कम उम्र का हो .

ऐसी ही एक स्टडी 1988 से 1999 के बीच भी की गई . इस दौरान पाया गया कि Lung Cancer के 90 प्रतिशत मरीज़ ऐसे थे जिन्हें सिगरेट पीने की लत थी . इन मरीज़ों में से ज्यादातर की उम्र 50 से 60 साल के बीच थी .

ज़ाहिर है कि पिछले 10 वर्षों में स्थिति बद से बदतर हो गई है . हवा में फैला प्रदूषण आपको Lung Cancer दे सकता है . ज़हरीली सब्जियां आपका Liver फेल कर सकती हैं. प्रदूषित पानी आपकी किडनी को बेकार कर सकता है . यानी कुल मिलाकर ऐसे शहरों का निर्माण हो रहा है, जहां जिंदगी से सस्ती मौत है . अफसोस की बात ये है कि हमारे देश के नेता इन मुद्दों की चर्चा संसद में नहीं करते . News Channels के Prime Time पर प्रदूषण.. कभी बहस का विषय नहीं बनता, लोग मरते रहते हैं, कैंसर जैसी गंभीर बीमारियां उनको घेर लेती है, और सबकुछ ऐसे ही चलता रहता है .

अब आपको बताते हैं प्रदूषण के बारे में हमारा मीडिया, हमारे नेता कभी बात क्यों नही करते . क्योंकि प्रदूषण में कुछ अच्छे गुण हैं, जो मीडिया और राजनीति को सूट करते हैं . प्रदूषण में कोई वोट बैंक नहीं होता . प्रदूषण धर्म के आधार पर, जाति के आधार पर, क्षेत्र के आधार पर, भाषा के आधार पर भेदभाव नहीं करता . प्रदूषण मंदिर और मस्जिद में भेद नहीं करता . प्रदूषण हिंदू और मुसलमान में भी फर्क नहीं करता . यानी प्रदूषण कभी किसी को लेकर असहनशील नहीं होता . प्रदूषण के नाम पर आप समाज को बांट नहीं सकते .प्रदूषण के नाम पर वोटों का ध्रुवीकरण नहीं हो सकता . 

प्रदूषण की ही तरह मौत भी सबके साथ बराबर का न्याय करती है . मौत कभी किसी की जाति या धर्म को देखकर उसके पास नहीं आती . शायद यही वजह है कि प्रदूषण का कोई राजनीतिक फायदा नहीं होता. और प्रदूषण पर बात करना हमारे नेता जरूरी नहीं समझते . और मीडिया इसलिए प्रदूषण की खबरें नहीं दिखाता क्योंकि प्रदूषण में कोई TRP नहीं है . 

इसी साल IQ Air नामक संस्था द्वारा की गई एक स्टडी के मुताबिक दुनिया के सबसे प्रदूषित 10 शहरों में से 7 भारत के हैं. और सबसे प्रदूषित 30 शहरों में से भी 22 भारत के हैं . 

इस Research में गुरुग्राम को दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर बताया गया है . 2018 में गुरुग्राम में प्रदूषण का स्तर Safe level से 13 गुना ज्यादा था .

इस लिस्ट में दूसरे नंबर पर गाजियाबाद, तीसरे नंबर पर पाकिस्तान का शहर फैसलाबाद, चौथे नंबर पर फरीदाबाद, पांचवें नंबर पर राजस्थान का भिवाड़ी और छठे नंबर पर नोएडा था . दिल्ली इस List में 11वें नंबर पर थी .

ये रिसर्च हवा में PM 2.5 कणों की मात्रा के आधार पर की गई थी . ये कण इतने बारीक होते हैं कि सांस के साथ आपके शरीर में पहुंच जाते हैं. और फिर खून में शामिल होकर आपके शरीर के लगभग हर अंग पर हमला कर देते हैं . 

इसी रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया भर में हर साल 70 लाख लोग प्रदूषण की वजह से मारे जाते हैं. इससे लोगों की औसत उम्र भी करीब 2 वर्ष कम हो जाती है.

World Bank की एक रिपोर्ट के मुताबिक प्रदूषण की वजह से भारत की GDP को 8.5 प्रतिशत का नुकसान होता है . ये 15 लाख करोड़ रुपये के बराबर है . आपको जानकर आश्चर्य होगा कि हमारे देश का रक्षा बजट इससे 5 गुना कम यानी 3 लाख करोड़ रुपये का है . हमारे देश में नौकरियां कम हो रही है इसकी सबको चिंता है, अर्थव्यवस्था की सबको चिंता है, लेकिन इस बात की फिक्र किसी को नहीं है कि प्रदूषण लोगों को नौकरी करने के लायक छोड़ेगा ही नहीं. प्रदूषण से अर्थव्यवस्था को हो रहा इतना बड़ा नुकसान भी किसी को दिखाई नहीं देता .

State of Global Air 2019 नामक रिपोर्ट के मुताबिक 2017 में प्रदूषण से भारत में 12 लाख लोगों की मौत हो गई थी . यानी हर महीने प्रदूषण हमारे देश में 1 लाख लोगों की जान ले रहा है . हर रोज़ इससे 3 हज़ार से ज्यादा लोग मर रहे हैं.. यानी हर घंटे प्रदूषण 140 लोगों की बलि ले रहा है .

अब आप सोचिए कि प्रदूषण कैसे एक महामारी बन चुका है . इसे लेकर स्थिति आपातकाल जैसी हो गई हैं...लेकिन इसके बावजूद किसी को कोई फर्क नहीं पड़ रहा . बारिश आती है तो प्रदूषण कम हो जाता है, लोग खुश हो जाते हैं, बीमार लोगों की सेहत भी सुधरने लगती है . लेकिन फिर कुछ दिनों के बाद प्रदूषण पूरी ताकत के साथ वापस आ जाता है . लोग चेहरे पर मास्क लगाकर बाहर निकलते हैं और ये सिलसिला ऐसे ही चलता रहता है .

लेकिन दुनिया के कई देशों में ऐसा नहीं होता, यूरोपियन यूनियन के देशों में पिछले 20 वर्षों में.. वायु प्रदूषण से होने वाली 5 लाख मौतों को टाला गया है . ऐसा इसलिए संभव हुआ क्योंकि इन देशों ने प्रदूषण को लेकर कड़े नियम बनाए .

1960 तक अमेरिका का कैलिफॉर्निया शहर दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में शामिल था लेकिन आज प्रदूषण से लड़ने के मामले में कैलिफॉर्निया दुनिया का नेतृत्व कर रहा है. अमेरिका के इस राज्य में जब एक डॉलर प्रदूषण से लड़ने पर खर्च किया जाता तो वो 30 डॉलर्स के रूप में वापस आ जाता है . ऐसा इसलिए होता है क्योंकि साफ हवा से लोगों की सेहत बेहतर होती है, रोज़गार के नए अवसर पैदा होते हैं और लोगों की Productivity भी बढ़ जाती है.

ज़ाहिर है अगर नेताओं, सरकारों और प्रशासन के लोगों में इच्छाशक्ति हो, तो प्रदूषण के खिलाफ ये युद्ध जीता जा सकता है. लेकन हमारे देश में प्रदूषण कभी चुनावी मुद्दा नहीं बनता, घोषणापत्र में भी पार्टियां एक या दो पंक्तियां इस विषय पर लिखकर खानापूर्ति कर लेती हैं .

आप सोचिए कि अगर आज आपके Lungs को हर रोज़ 10-15 सिगरेट के बराबर धुआं सोखना पड़ रहा है, तो आने वाले कुछ वर्षों में क्या हाल होगा . कुछ वक्त पहले हमने आपको एक Short Film के जरिए समझाया था कि कैसे 2030 तक हमें ऑक्सीजन खरीदनी पड़ेगी. लेकिन हमे लगता है कि अब Oxygen खरीदने की ज़रूरत उससे पहले ही पड़ने वाली है . आप ये Short Film एक बार फिर देखिए, इसके बाद हम आपको प्रदूषण से जुड़ी एक हैरान करने वाली तस्वीर दिखाएंगे . 

अब आपको दिल्ली के एक अस्पताल के बाहर की तस्वीर दिखाते हैं . यहां 3 नंवबर 2018 इंसानी फेफड़ों की एक Replica लगाई गई थी . जब ये Replica लगाई थी तब इसका रंग सफेद था, लेकिन 5 दिन बाद ही दिल्ली के प्रदूषण ने इसे पूरी तरह से काला कर दिया . इसलिए हमें लगता है अब प्रदूषण से बचाने वाले Mask अब किसी को दिए जाने वाला सबसे अच्छा गिफ्ट बन गए हैं .

अब अंदाज़ा लगाइए कि असली Lungs कि क्या हालत होती होगी, फेफड़े ही नहीं..प्रदूषण की मार हमारे शरीर के सभी अंगों को बीमार कर रही है . लेकिन कोई इसके खिलाफ लड़ाई नहीं लड़ना चाहता .

प्रदूषण वाले आपातकाल में लोगों का दम घुट रहा है और हमारी सरकारें कुछ नहीं कर पा रही . भारत में आज भी धर्म और जाति के नाम पर वोट दिए जाते हैं और वोट मांगे जाते हैं. लेकिन कोई सरकार ये नहीं कहती कि हम प्रदूषण कम करेंगे इसलिए हमें वोट दीजिए. लोग भी सरकार से ये नहीं पूछते कि प्रदूषण को कम करने को लेकर आपके पास क्या योजनाएं हैं. शायद ही किसी पार्टी के चुनावी घोषणापत्र में प्रदूषण से लड़ाई का जिक्र होता होगा. क्योंकि हमारे देश के नेता जानते हैं कि लोगों से धर्म और जाति के नाम पर वोट मांगे जा सकते हैं. लेकिन प्रदूषण में किसी की कोई दिलचस्पी नहीं है.

गौर करने वाली बात ये है कि प्रदूषण भी आतंकवाद की तरह सभी धर्मों के लोगों की जान ले रहा है. लेकिन प्रदूषण से कोई भी सरकार गंभीरता से नहीं लड़ना चाहती. हमें लगता है कि ये एक तरह का अदृश्य आतंकवाद है और हमें इससे लड़ना ही होगा . इसलिए अगली बार जब कोई नेता आपसे वोट मांगने आए तो उससे आप ये ज़रूर पूछें कि प्रदूषण को कम करने को लेकर उसके पास क्या योजना है . हमें लगता कि धर्म और जाति से ऊपर उठकर प्रदूषण जैसे विषयों को मुद्दा बनाया जाना चाहिए. ताकि देश के लोगों को स्वच्छ हवा में सांस लेने का समान अधिकार मिल पाए .

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