ZEE जानकारी : सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत के बयान का एक विश्लेषण
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ZEE जानकारी : सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत के बयान का एक विश्लेषण

देश के सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत ने एक ऐसा बयान दिया है, जिसने पूरे देश में पूर्वोत्तर राज्यों की सुरक्षा को लेकर एक नई बहस छेड़ दी है. जनरल बिपिन रावत ने बांग्लादेश से असम में होने वाली घुसपैठ पर कुछ तथ्य देश के सामने रखे थे. लेकिन नेताओं ने इसका पूरा एंगल ही बदल दिया. 

ZEE जानकारी : सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत के बयान का एक विश्लेषण

भारत शायद दुनिया का अकेला ऐसा देश होगा जहां देश के नेता.. सेना की आलोचना करने में ज़रा सी भी देर नहीं लगाते.. उन्हें ऐसा करते हुए ज़रा सी भी शर्म नहीं आती. सेना के हर ऑपरेशन के बाद उस पर उंगलियां उठाई जाती हैं. सेना चाहे सर्जिकल स्ट्राइक करके आतंकवादियों को मारे, चाहे बाढ़ पीड़ितों की मदद करे या फिर कोई बयान दे. हर बार सेना पर ही सवाल उठाए जाते हैं. और ये बहुत दुर्भाग्य की बात है.

देश के सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत ने एक ऐसा बयान दिया है, जिसने पूरे देश में पूर्वोत्तर राज्यों की सुरक्षा को लेकर एक नई बहस छेड़ दी है. जनरल बिपिन रावत ने बांग्लादेश से असम में होने वाली घुसपैठ पर कुछ तथ्य देश के सामने रखे थे. लेकिन नेताओं ने इसका पूरा एंगल ही बदल दिया. अब कहा जा रहा है कि पूर्वोत्तर भारत की सुरक्षा पर दिया गया उनका बयान राजनीति से प्रेरित है. ऐसे आरोप लग रहे हैं कि सेना का राजनीतिक इस्तेमाल हो रहा है.

हमारे देश में सेना हमेशा A-political यानी अ-राजनैतिक रही है और आज भी ऐसा ही है. लेकिन नेताओं को इस बयान में राजनीति और वोटों की खुशबू आ रही है. सबसे पहले आपको जनरल बिपिन रावत का वो बयान सुनना चाहिए, फिर हम इस विश्लेषण को आगे बढ़ाएंगे.

सुबह से जनरल बिपिन रावत का ये बयान हर NEWS चैनल और NEWS PORTAL की हेडलाइन बना हुआ है. लेकिन ये, सेना प्रमुख के बयान का सिर्फ एक पक्ष है. कोई भी आपको ये नहीं बता रहा है कि सेना प्रमुख ने ये बयान किस Context में दिया. शोर शराबा इस बात पर हो रहा है कि आर्मी चीफ ने एक राजनीतिक बयान दिया है. और असम में मुसलमानों की बढ़ती जनसंख्या पर बयान दिया है. लेकिन कोई भी आपको ये नहीं बता रहा है कि आर्मी चीफ का बयान बांग्लादेश के अवैध घुसपैठियों पर था. अपने विश्लेषण में हम आपको वो बातें बताएंगे, जो आपको कहीं सुनने या देखने को नहीं मिली होंगी. 

कल दिल्ली में  Centre For Joint Warfare Studies की तरफ से एक सेमीनार का आयोजन किया गया था. इस सेमीनार में पूर्वोत्तर भारत की सुरक्षा और चुनौतियों पर चर्चा की जा रही थी. इसीलिए इस सेमीनार में आर्मी चीफ को Speaker के तौर पर बुलाया गया था. इस सेमीनार के अंत में जनरल बिपिन रावत ने 7 मिनट 44 सेकेंड का एक भाषण दिया और पूर्वोत्तर भारत की सुरक्षा को लेकर बहुत सी महत्वपूर्ण बातें कहीं. 

जनरल बिपिन रावत ने कहा कि पूर्वोत्तर भारत का हर कीमत पर विकास होना चाहिए. उन्होंने ये भी कहा कि पूर्वोत्तर भारत के लोगों के बारे में सरकारों को समग्रता के साथ सोचना होगा. और उन्हें अपने साथ मिलाकर आगे बढ़ाना होगा. लेकिन उनकी कही गई इन बातों को कोई भी रेखांकित नहीं कर रहा है. 

ये पूरा सेमीनार पूर्वोत्तर भारत की सुरक्षा पर हो रहा था. और जब देश में कहीं से भी अवैध घुसपैठ होती है, तो सुरक्षा की पूरी ज़िम्मेदारी सेना की होती है. सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत भी घुसपैठ पर ही बोल रहे थे. और ये समझा रहे थे कि कैसे अवैध घुसपैठ की वजह से देश की सुरक्षा को खतरा हो जाता है. कैसे पाकिस्तान और चीन भारत में घुसपैठ करवा रहे हैं. और इन अवैध घुसपैठियों के दम पर, कैसे कुछ राजनेता अपना वोट बैंक बढ़ा लेते हैं. 

लेकिन भारत की सुरक्षा से जुड़े इस महत्वपूर्ण बयान को कई नेताओं ने राजनीतिक बयान बता दिया. देश के नेता आर्मी चीफ पर निशाना साधकर एक महत्वपूर्ण मुद्दे से देश का ध्यान हटाना चाहते हैं. लेकिन हम ऐसा नहीं होने देंगे. हम असम के हालात को आंकड़ों की मदद से Decode करेंगे जहां 27 में से 9 ज़िले मुस्लिम Majority वाले हैं और 18 ज़िलों में हिंदू बहुसंख्यक हैं. वैसे 2011 के बाद असम में 6 नए ज़िले और बने हैं और अब असम में कुल 33 ज़िले हैं. 

2011 की जनगणना के अनुसार असम में 34% से ज्यादा मुस्लिम जनसंख्या है. असम के 16 ज़िले ऐसे हैं जहां 2001 से 2011 तक मुस्लिम जनसंख्या 15 से 24% तक बढ़ी है. असम में सबसे ज्यादा मुस्लिम जनसंख्या वाला ज़िला है धुबरी, जहां करीब 80% मुस्लिम रहते हैं. इसी तरह से बारपेटा में 70%, दरांग में 64%, हैलाकांडी में 60%, गोलपारा में 57%, करीमगंज में 56%, नागांव में 55%, मोरीगांव में 52%, और बोंगईगांव में 50% मुस्लिम रहते हैं. ये सारे वो ज़िले हैं, जिनमें बांग्लादेशियों की अवैध घुसपैठ होती है. 

बांग्लादेश से घुसपैठ करने वाले लोग धुबरी, करीमगंज और हैलाकांडी ज़िलों के रास्ते से असम में प्रवेश करते हैं. और फिर पूरे असम में फैल जाते हैं और राज्य की Demography बदल देते हैं और यही अवैध घुसपैठिये बहुत सी पार्टियों और नेताओं का वोटबैंक बन चुके हैं. जिस AIUDF पार्टी का नाम जनरल बिपिन रावत ने अपने भाषण में लिया, अब ज़रा उसके बारे में भी जान लीजिए. 

AIUDF का मतलब है All India United Democratic Front मौलाना बदरुद्दीन अजमल इस पार्टी के प्रमुख हैं. और वो असम की धुबरी लोकसभा सीट से सांसद हैं. हम आपको बता चुके हैं धुबरी वही ज़िला है, जहां सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी है और जहां बांग्लादेश से सबसे ज्यादा घुसपैठ होती है. 

ये पार्टी सिर्फ 9 साल पहले 2009 में बनी थी. 2009 के लोकसभा चुनावों में पार्टी ने 9 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ा था और 1 सीट जीती थी. और पूरे असम का 16% Vote Share हासिल किया था. इसके बाद 2011 के विधानसभा चुनावों में बदरुद्दीन अजमल की पार्टी ने 126 में से 78 सीटों पर चुनाव लड़ा और 18 सीटें जीतीं और पूरे असम के 12.57% वोट हासिल किए. 

इसके बाद हुए 2014 के लोकसभा चुनावों में AIUDF ने 10 सीटों पर चुनाव लड़ा और 3 सीटें जीतीं. इन चुनावों में AIUDF का Vote Share था.. 15% 2016 के विधानसभा चुनावों में AIUDF का वोट शेयर थोड़ा कम हुआ और उसे करीब 13% वोट मिले. जबकि 13 विधानसभा सीटों पर जीत मिली. 

देश की राजनीतिक पार्टियों के इतिहास में इतनी जल्दी इतनी बड़ी सफलता बहुत कम ही मिली है. AIUDF ने इस सफलता को अपने वोट बैंक के ज़रिये हासिल किया है. और इस वोटबैंक में सबसे बड़ा हिस्सा है, बांग्लादेश के अवैध घुसपैठियों का.  और यही बात सेना प्रमुख ने भी कही थी, लेकिन उनकी बातों को राजनीतिक मुद्दा बताकर असली मुद्दे से ध्यान भटकाने की कोशिश हो रही है. 

अब आपको एक और आंकड़ा दिखाते हैं और इसे देखने के बाद आपको पता चलेगा कि कैसे पिछले 110 वर्षों में पूरे असम में मुस्लिम जनसंख्या बढ़ती चली गई? 1901 में असम में सिर्फ 12.4% मुस्लिम जनसंख्या थी.  जो 1911 में 16.69% हो गई 1921 में 19.41% और 1931 में 23.41% हो गई.

इसके बाद असम में 1971 तक मुस्लिम जनसंख्या स्थिर रही. और फिर 1971 में बांग्लादेश बना. बांग्लादेश के गठन के बाद असम में घुसपैठ शुरू हो गई. 1991 में असम में मुसलमानों की आबादी 28.43% हो गई. वर्ष 1971 से 1991 तक असम में हिंदुओं की तुलना में मुसलमानों की आबादी करीब दोगुनी रफ्तार से बढ़ी. 

इन 20 वर्षों में असम में हिंदू आबादी करीब 42% की दर से बढ़ी, जबकि मुस्लिमों की आबादी 77% की रफ्तार से बढ़ी. 2001 में मुसलमानों की आबादी बढ़कर 30.92% और 2011 में 34.22% हो गई. 

हमारे देश में बहुत से ऐसे काम हैं, जो सेना को नहीं करने चाहिएं, लेकिन इसके बाद भी सेना वो सारे काम करती है. जब भी किसी राज्य में कोई बाढ़ आती है, भूकंप आता है, या प्राकृतिक आपदा के बाद हालात नियंत्रण से बाहर हो जाते हैं, तो सेना को ही बुलाया जाता है. अगर अचानक कहीं पर सड़क बनानी होती है या पुल बनाना होता है तो भी सेना पर ही भरोसा किया जाता है.

आपको याद होगा पिछले साल सितंबर के महीने में मुंबई में एक पुल पर भगदड़ मचने की वजह से 23 लोगों की मौत हो गई थी. ये पुल बहुत संकरा था और बहुत पुराना था. इसके बाद इसी जगह पर एक नया पुल बनाया गया, और सेना ने इस पुल को सिर्फ 3 महीने में बना दिया था. 

हमारी सेना स्कूल चलाती है, अस्पताल चलाती है.. और युवाओं को ट्रेनिंग भी देती है. क्या ये काम सेना के हैं. और जब सेना ये काम करती है.. तब कोई नेता ये क्यों नहीं कहता कि सेना को ये काम नहीं करने चाहिएं.

क्या हमारे देश में पुल बनाने का काम सेना का है? क्या हमारे देश में सड़कों को बनाने का काम सेना का है? लेकिन इसके बावजूद सेना वो काम करती है, जो उसे नहीं करने चाहिएं. सेना ये सारे काम इसलिए करती है, क्योंकि सेना के लिए देश सबसे ऊपर है. लेकिन इतनी सी बात कुछ नेताओं को समझ में नहीं आती. इसीलिए जब इन नेताओं को मौका मिलता है, तो वो सेना पर राजनीति करते हैं.

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