ZEE जानकारी: राम मंदिर केस के बार में कितना जानते हैं आप?
अब हम ये समझने की कोशिश करेंगे कि सुप्रीम कोर्ट में राम मंदिर का केस... तेज़ी से आगे क्यों नहीं बढ़ रहा.
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अब हम ये समझने की कोशिश करेंगे कि सुप्रीम कोर्ट में राम मंदिर का केस... तेज़ी से आगे क्यों नहीं बढ़ रहा.आज सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या मामले की सुनवाई एक बार फिर टल गई. राम मंदिर से देश के 107 करोड़ हिंदुओं की आस्थाएं जुड़ी हुई हैं. और सुप्रीम कोर्ट में जब भी सुनवाई होती है, तो राम मंदिर में आस्था रखने वाले लोग, आशा भरी नज़रों से, अदालत की तरफ देखते हैं. और ऐसे में जब अदालत में सुनवाई टलती है, तो देश ये सवाल पूछता है कि सुप्रीम कोर्ट में राम मंदिर का केस... आगे क्यों नहीं बढ़ रहा ?
सुप्रीम कोर्ट में तारीख पर तारीख वाली प्रक्रिया क्यों चल रही है? आखिर इस केस की सुनवाई में अब और कितना समय लगेगा? लोग ये भी पूछ रहे हैं कि जब न्याय के लिए भगवान राम को भी कतार में खड़ा कर दिया गया है, तो फिर इंसान की क्या बिसात है?
आज हम उन लोगों को थोड़ा निराश करेंगे, जो ये समझते हैं कि राम मंदिर पर जल्द फैसला आने वाला है. आपको थोड़ी निराशा तो होगी, लेकिन सच्चाई यही है कि सुप्रीम कोर्ट से राम मंदिर का फैसला आने में अभी बहुत देर है. इसमें बहुत समय लगेगा. हम ऐसा क्यों कह रहे हैं इसके लिए आपको ये समझना होगा कि आज सुप्रीम कोर्ट में क्या हुआ?
सुप्रीम कोर्ट में आज राम मंदिर की सुनवाई 29 जनवरी तक टल गई. क्योंकि 5 जजों की जिस संविधान पीठ को आज सुनवाई करनी थी, उनमें से एक जज जस्टिस UU ललित ने खुद को सुनवाई से अलग कर लिया.
आज अदालत में मुस्लिम पक्षकार के वकील राजीव धवन ने ये सवाल उठाए कि जस्टिस UU ललित अयोध्या केस से जुड़े एक मामले में, एक वकील के रूप में, एक पक्ष की तरफ़ से पेश हो चुके हैं.
इसके बाद जस्टिस UU ललित ने खुद को इस संविधान पीठ से अलग कर लिया. अब 29 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट की नई संविधान पीठ, इस मामले की सुनवाई करेगी.
जिस मामले का ज़िक्र आज वकील राजीव धवन ने किया, वो 20 नवंबर 1997 का है. जब जस्टिस UU ललित वकालत किया करते थे और तब वो उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए थे.
सुप्रीम कोर्ट में असलम भूरे नाम के एक व्यक्ति ने याचिका दी थी कि कल्याण सिंह के ख़िलाफ़ मानहानि का केस चलना चाहिए. क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में विवादित ढांचा गिराया गया था. और उस दौरान कल्याण सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे.
ये भी इत्तेफाक ही है कि 1997 में याचिकाकर्ता असलम भूरे के वकील राजीव धवन थे और कल्याण सिंह के वकील UU ललित, जो बाद में सुप्रीम कोर्ट के जज बने.
लेकिन अयोध्या मामले की सुनवाई में पेंच सिर्फ इतना ही नहीं है. बल्कि असली सवाल उन हज़ारों दस्तावेज़ों का भी है, जिनका अंग्रेज़ी में पूरा अनुवाद होना अभी बाकी है.
आज सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में लिखा है कि उनके पास 15 सीलबंद बक्सों में अयोध्या मामले से जुड़े बहुत से दस्तावेज़ एक कमरे में, ताले में बंद हैं. इनमें बहुत से दस्तावेज़ पारसी, संस्कृत, अरबी, गुरूमुखी, उर्दू और हिंदी में लिखे हुए हैं. सुप्रीम कोर्ट ने लिखा है कि ये साफ नहीं है कि इन दस्तावेज़ों का अनुवाद अंग्रेज़ी में हुआ है या नहीं?
2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट का जो फैसला आया था, उसमें 88 गवाहों के बयान थे, जो 13 हज़ार 886 पन्नों में दर्ज थे.
इसके अलावा हाईकोर्ट का फैसला 4 हज़ार 304 पन्नों में था. और इन सभी दस्तावेज़ों का भी अनुवाद होना था.
अदालत ने अपने आज के ऑर्डर में लिखा है कि 2015 में इस मामले में अलग अलग पक्षों के वकीलों ने बहुत से सबूतों के अनुवादित अंश अदालत में जमा किए थे. लेकिन ये विवाद का विषय है कि जो अनुवाद किया गया, वो सही है या नहीं?
इसीलिए आज सुप्रीम कोर्ट ने अपने Registry ऑफिस को ये आदेश दिया है कि वो खुद इन दस्तावेज़ों की जांच करे, कि सभी दस्तावेज़ों का अंग्रेज़ी में अनुवाद हो चुका है या नहीं ? और अनुवाद पूरी तरह से सही है या नहीं?
सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा है कि अदालत को ये बताया जाए कि ये मामला, किस वक्त तक सुनवाई के लिए तैयार होगा. और अगर ज़रूरत पड़े तो आधिकारिक अनुवादकों की मदद भी ली जाए.
इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने रजिस्ट्री ऑफिस से 29 जनवरी तक अपनी रिपोर्ट देने को कहा.
राम मंदिर के मामले में पहला केस वर्ष 1885 में महंत रघुबीर दास ने दाखिल किया था. तब भारत आज़ाद नहीं था.
आज़ाद भारत में राम मंदिर से जुड़ा पहला केस वर्ष 1950 में फैज़ाबाद के ज़िला न्यायालय में दाखिल किया गया था?
इसके बाद 1993 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस केस पर सुनवाई शुरू की. इसके 17 साल बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2010 में अपना फैसला सुनाया.
इस फैसले के खिलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में 14 अलग अलग याचिकाएं दाखिल की गई और अक्टूबर 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई के लिए तारीख तय करने की बात कही. लेकिन अब जनवरी 2019 में भी सुनवाई की तारीख तय नहीं हो पाई है.
यानी आज़ाद भारत में करीब 69 वर्षों से अयोध्या विवाद पर कानूनी लड़ाई चल रही है और भगवान राम न्याय के इंतज़ार में खड़े हुए हैं.
अब आप समझ गए होंगे कि हमने आपसे ये क्यों कहा था कि राम मंदिर पर फैसला आने में अभी बहुत देर लगेगी.