ZEE जानकारी: अंतरिक्ष में अपना खुद का स्पेस स्टेशन स्थापित करेगा भारत
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ZEE जानकारी: अंतरिक्ष में अपना खुद का स्पेस स्टेशन स्थापित करेगा भारत

गुरुवार को ISRO ने ऐलान किया है कि Space Station वाले Club में अब भारत भी Entry करेगा. यानी भारत अपना अलग Space स्टेशन बनाएगा.

ZEE जानकारी: अंतरिक्ष में अपना खुद का स्पेस स्टेशन स्थापित करेगा भारत

अब हम देश को मिले आज के सबसे शुभ समाचार का विश्लेषण करेंगे. 

अब तक अंतरिक्ष की दुनिया में अमेरिका की Space एजेंसी.. NASA का एकछत्र राज माना जाता था लेकिन पिछले कुछ वर्षों से ये बाज़ी पलट गई है. भारत की Space एजेंसी...ISRO यानी Indian Space Research Organisation ने अपने आक्रामक तेवर पूरी दुनिया को दिखा दिए हैं.

अब तक NASA, भविष्य के अंतरिक्ष अभियानों के बारे में बहुत बड़े स्तर पर प्रचार करता था, जिसकी वजह से पूरी दुनिया उसे अंतरिक्ष का सबसे बड़ा खिलाड़ी मानने लगी. जबकि ISRO की सफलता की चर्चा उसके मिशन के Launch हो जाने के बाद शुरू होती थी. लेकिन अब भारत इस तस्वीर को बदलना चाहता है.
आज भारत ने बड़ा ऐलान किया है...जो हर भारतीय को गर्व से भर देगा...आज का ये विश्लेषण देखकर आपका सीना चौड़ा हो जाएगा.

आज ISRO ने ऐलान किया है कि Space Station वाले Club में अब भारत भी Entry करेगा. यानी भारत अपना अलग Space स्टेशन बनाएगा.
ये चंद्रयान और गगनयान से भी बड़ा प्रोजेक्ट है. भारत का अपना Space Station राष्ट्रीय गौरव वाला मिशन है. 

सबसे बड़ी बात ये है कि भारत का Space Station पूरी तरह स्वदेशी तकनीक की मदद से तैयार किया जाएगा. ये NASA के गठबंधन वाले International Space Station को देखते हुए बहुत बड़ी चुनौती है. लेकिन ISRO ने इस चुनौती को स्वीकार किया है. 

International Space Station प्रोजेक्ट में अमेरिका, Russia, Japan और Canada के अलावा European Space Agency के तहत यूरोप के 13 देश शामिल हैं. इसे नवंबर 1998 में अंतरिक्ष में भेजा गया था. आप इसे सामान्य भाषा में अंतरिक्ष में एक Lab भी कह सकते हैं...जो 400 किलोमीटर की ऊंचाई पर पृथ्वी का चक्कर लगाती है. इसमें हमेशा 6 से 8 अंतरिक्ष यात्री मौजूद रहते हैं. 

इसके अलावा चीन भी दो Space Station लॉन्च कर चुका है. वर्ष 2011 में चीन ने अपना पहला Space Station तियांगोंग-One लॉन्च किया था. इसे दो साल के लिए तैयार किया गया था.  बाद में चीन ने वर्ष 2016 में तियांगोंग-Two लॉन्च किया. हालांकि, पश्चिमी देश इसे Space Station कम और Space Lab ज़्यादा मानते हैं. इसमें कोई अंतरिक्ष यात्री स्थायी रूप से नहीं रहता है. 

अब चीन 2022 तक तियांगोंग-Three को लॉन्च करने की भी योजना बना रहा है. दुनिया का सबसे पहला स्पेस स्टेशन सोवियत संघ ने 1971 में बनाया था. इसका नाम सल्युत था...जबकि दो साल बाद अमेरिका ने 1973 में SkyLab नाम से Space Station लॉन्च किया था. इसके बाद 11 Space Station लॉन्च किये जा चुके हैं. लेकिन आज की तारीख़ में सिर्फ़ दो Space Station काम कर रहे हैं.  इसलिये ये प्रोजेक्ट कामयाब होने के बाद भारत...अमेरिका, रूस और चीन के बाद चौथा देश माना जाएगा...जिसने स्वतंत्र रूप से अंतरिक्ष में अपना एक ठिकाना बनाया है. 

प्रोजेक्ट गगनयान के तहत भारत.. वर्ष 2022 से पहले अंतरिक्ष में इंसान को भेजने की तैयारी कर रहा है. और इसकी सफलता के बाद भारत के Space Station को लॉन्च करने की तैयारी शुरू हो जाएगी.
International Space Station का आकार एक फुटबॉल के मैदान जितना है. लेकिन भारत का Space Station छोटा होगा. इसका वज़न क़रीब 20 टन होगा...और इसका इस्तेमाल Zero Gravity Experiment के लिये किया जाएगा. इसका मतलब है कि ये परीक्षण शून्य गुरूत्व वाले माहौल में किये जाएंगे. इस पूरे प्रोजेक्ट पर अभी 5 से 7 साल का वक़्त लगेगा.

पिछले ढाई महीनों में ये दूसरी बार है...जब भारत ने दुनिया को अपनी Space वाली ताक़त और अंतरिक्ष वाले ख़्वाबों से चौंका दिया है. 27 मार्च को भारत ने मिशन शक्ति यानी Anti Satellite Weapon को कामयाबी के साथ टेस्ट किया था. तब प्रधानमंत्री मोदी ने बताया था कि अंतरिक्ष में भारत कितनी बड़ी ताक़त बनने जा रहा है.

आप के मन में सवाल उठ रहा होगा कि Space Station का फ़ायदा क्या है. 

Space Station इसलिए बनाए जाते हैं ताकि इंसान ज़्यादा देर तक अंतरिक्ष में रहकर रिसर्च कर पाये. ये एक तरह की प्रयोगशाला हैं जो पृथ्वी की कक्षा में घूमती रहती हैं. 
वर्ष 1923 में रोमानिया के रॉकेटमैन कहे जाने वाले Hermann Oberth (हर्मन ऑबर्थ) ने Space Station की कल्पना की थी. उनका मानना था कि अंतरिक्ष में एक ऐसा ठिकाना बनाया जा सकता है...जहां से चंद्रमा और मंगल ग्रह के लिये मिशन की शुरुआत की जा सकती है. यानी उन्होंने Space Station की कल्पना दूसरों ग्रहों के लिये बेस कैंप के रूप में की थी. 1973 में लॉन्च किये गये अमेरिका के Space Station Skylab पर अंतरिक्ष यात्रियों ने 270 experiment किये थे. 

1998 में लॉन्च होने के बाद से International Space Station पर 1800 से ज़्यादा प्रयोग कर चुके हैं. ये प्रयोग Zero Gravity यानी शून्य गुरुत्व में दवाओं से लेकर मानव शरीर पर पड़ने वाले असर को देख कर किये जाते हैं. यहां से अंतरिक्ष और पृथ्वी...दोनों की अलग तरह से निगरानी की जा सकती है. यानी ये Medical Science से लेकर खगोलीय दुनिया की research में काफ़ी मदद करता है.
यहां होने वाले प्रयोग Mars Mission जैसे अभियान में मदद करते हैं.

International Space Station 28 हज़ार 800 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ़्तार से पृथ्वी का चक्कर लगाता है और उसे पृथ्वी का एक चक्कर लगाने में क़रीब 90 मिनट का समय लगता है.
इस Space Station को तैयार करने में करीब 7 लाख करोड़ रुपये की लागत आई है और इसे चलाने का साल भर का खर्च 20 से 30 हज़ार करोड़ रुपये है .

((भारत के Space Station वाले प्रोजेक्ट पर कितना ख़र्च आएगा...अभी इसकी जानकारी तो नहीं दी गई है.))
लेकिन ISRO बहुत ही किफ़ायती है, चाहे एक रॉकेट से 104 उपग्रह लॉन्च करने हों या फिर मंगलयान मिशन, भारत ने अपने सस्ती और सटीक लॉन्चिंग वाले रिकॉर्ड से दुनिया को हैरान कर दिया है.

वर्ष 2013 में लॉन्च किये गये भारत के MARS MISSION की लागत क़रीब 500 करोड़ रुपये थी.
जबकि 2013 में ही रिलीज़ हुई Hollywood की फिल्म "GRAVITY" का बजट क़रीब 700 करोड़ रुपये था.
यानी जितना ख़र्च अमेरिका एक फ़िल्म बनाने में करता है, उससे कम में भारत सैटेलाइट लॉन्च कर देता है, वो भी एक बार में 104.
क्या आपको मालूम है कि ISRO का बजट NASA के मुक़ाबले 15 गुना कम है. 
NASA का बजट वर्ष 2019 के लिये बजट 1 लाख 50 हज़ार करोड़ है जबकि ISRO का सालाना ख़र्च 10 हज़ार 250 करोड़ रुपये ही है.((
ISRO ने इस वर्ष 32 space missions का लक्ष्य रखा है . इनमें 14 launch vehicles, 17 Satellites और एक Demo mission है . 

भारत के बहुत से छात्र अंतरिक्ष वैज्ञानिक बनने के लिए अमेरिका जाकर NASA में काम करना पसंद करते हैं . ऐसे छात्रों को रोकने के लिए ISRO देश में 6 बड़े रिसर्च सेंटर खोलने की तैयारी कर रहा है . इन संस्थानों मे पढ़ने वाले छात्रों को अंतरिक्ष विज्ञान की शिक्षा देकर ISRO में काम करने का मौका दिया जाएगा. ))

आज अमेरिका के मीडिया को भी एक बार फिर आईना दिखाने की ज़रूरत है. ख़ास तौर से The New York Times को जो हमेशा से भारत की एक ग़लत अंतरराष्ट्रीय छवि पेश करता है.

वर्ष 2014 में The New York Times ने एक कार्टून से भारत की अंतरिक्ष एजेंसी ISRO पर व्यंग्य किया था. कार्टून में दिखाया गया था कि एक Elite Space Club में एक भारतीय ग्रामीण अपनी गाय के साथ प्रवेश करना चाहता है. आज ISRO ने इसका जवाब दे दिया है.

((सच्चाई ये है कि अमेरिका और यूरोप के विद्वान, भारत के विकास से ईर्ष्या करते हैं. वो भारत को आज भी 1947 से पहले वाले चश्मे से देखते हैं. क्योंकि इनकी मानसिकता में भारत का विरोध भरा हुआ है . ये लोग अब इस बात से हैरान हैं कि 200 वर्षों तक ब्रिटेन की गुलामी करने वाला देश, महाशक्ति कैसे बन सकता है ? यही इस पश्चिमी मीडिया की सबसे बड़ी मुसीबत है. 

आज ISRO अंतरिक्ष की दुनिया का सबसे बड़ा खिलाड़ी बन चुका है. उसके पास काबिलियत की कोई कमी नहीं है. लेकिन उसकी क्षमताओं के बारे में पूरी दुनिया पास जानकारी होनी चाहिए. हमें लगता है कि देश के हर नागरिक को ISRO की काबिलियत की मार्केटिंग करनी चाहिए क्योंकि विज्ञान ही वो क़लम है जिससे भविष्य लिखा जाता है और भारत के वैज्ञानिक किसी से कम नहीं हैं.))

अंतरिक्ष में उड़ते स्पेस स्टेशन को दुनिया की सबसे महंगी मशीन भी कहा जा सकता है...इसको बनाने में सैकड़ों अरब डॉलर का खर्च आता है. इसके अलग-अलग टुकड़ों को अंतरिक्ष की कक्षा में पहुंचाने में भी काफी पैसे खर्च होते हैं...और इनकी मरम्मत और रख रखाव के लिए भी बड़ा बजट होता है. पृथ्वी की कक्षा में मौजूद International Space Station की कीमत क़रीब 7 लाख करोड़ रुपये है...Guiness Book of World Records के मुताबिक़ ये दुनिया की सबसे महंगी मशीन है. 

((अंतरिक्ष में ज़ीरो Gravity होने के कारण ये अंतरिक्ष यात्री स्पेस स्टेशन में तैरते हुए नज़र आते हैं . ये द्श्य दिखने में जितना रोमांचक है वो असल ज़िंदगी में उतना ही बहुत मुश्किल होता है. अपने आपको स्वस्थ रखने के लिए स्पेस स्टेशन में exercise करना ज़रूरी है . मुंह का स्वाद कम होने की वजह से अंतरिक्ष यात्रियों को अपने खाने में कई तरह के बदलाव करने होते हैं. इसके अलावा सोने के लिए भी इन्हे नींद से संघर्ष करना होता है क्योंकि इस दौरान अंतरिक्ष यात्रियों को एक दिन में 16 बार दिन और रात का अनुभव होता है. लेकिन Space Station में ख़तरे भी बहुत हैं. इसमें मौजूद अंतरिक्ष यात्री अपनी मदद सिर्फ़ ख़ुद ही कर सकते हैं, क्योंकि वो पृथ्वी से 400 किलोमीटर की ऊंचाई पर होते हैं.))

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