ZEE जानकारी: बैंकों और निवेशकों के बीच भरोसा बनाए रखना जरूरी
Advertisement

ZEE जानकारी: बैंकों और निवेशकों के बीच भरोसा बनाए रखना जरूरी

बैंकों के Problem Areas तो आपने देख लिए लेकिन आपको उनकी मजबूरियां भी समझनी होंगी और उनके दबाव को महसूस करना होगा. 

ZEE जानकारी: बैंकों और निवेशकों के बीच भरोसा बनाए रखना जरूरी

आज हम बैंकों और निवेशकों के बीच के उस भरोसे का DNA टेस्ट करेंगे, जिसमें पिछले कुछ समय में कमी आई है. और इसके नतीजे बहुत गंभीर हो सकते हैं. पंजाब नेशनल बैंक में 11 हज़ार 400 करोड़ रुपये के घोटाले के बाद सरकार अचानक Action Mode में आ गई है. सरकार की Agencies Overtime कर रही हैं, हर दूसरे दिन कोई नया खुलासा हो रहा है. और किसी नए बैंक और किसी नये उद्योगपति का नाम सामने आ रहा है. सरकारी Agencies गिरफ्तारियां कर रही हैं. आरोपियों की Property Sieze हो रही हैं और हज़ारों करोड़ रुपये की संपत्ति ज़ब्त हो रही है. जो कि बहुत अच्छी बात है, ऐसा होना ही चाहिए. लेकिन इसका एक Side Effect भी है और वो ये कि कार्रवाइयों के इस शोर में व्यवसाय का माहौल खराब हो गया है. और अब सभी बैंकों और उनके कर्मचारियों को शक की नज़र से देखा जा रहा है. अचानक बैंक कर्मचारियों को विलेन समझा जाने लगा है. यानी एक तरफ निवेशकों पर दबाव है और दूसरी तरफ बैंक के कर्मचारियों पर भी दबाव है. अगर आप गौर से देखेंगे तो ये दोनों ऐसे पहिए हैं, जिनसे अर्थव्यवस्था की गाड़ी आगे बढ़ती है. और इन दोनों का एक दूसरे के भरोसे के साथ काम करना, बहुत ज़रूरी है. 

हम जिस समस्या की तरफ आपका ध्यान खींचना चाहते हैं, उसे समझने के लिए हमें बैंकों और निवेशकों, दोनों का आर्थिक Check-up करना होगा . सबसे पहले ये समझिए कि पंजाब नेशनल बैंक के घोटाले के बाद.. सरकार किस तरह सिस्टम को दुरुस्त करने की कोशिश कर रही है. यानी सिस्टम के किन Loopholes को Fix किया जा रहा है.

पंजाब नेशनल बैंक जैसे घोटाले दोबारा न हों, इसके लिए वित्त मंत्रालय ने सभी सरकारी बैंकों को एक फरमान जारी किया है. वित्त मंत्रालय ने सभी सरकारी बैंकों को 50 करोड़ या इससे ऊपर के सभी NPAs की जांच करने को कहा है. वित्त मंत्रालय का कहना है कि Banks इस बात की जांच करें कि कहीं ये NPA किसी Fraud का हिस्सा तो नहीं हैं. इसके अलावा सरकार ने सभी सरकारी बैंकों को एक Special Agency का गठन करने का आदेश भी दिया है. ये Agency 250 करोड़ रुपये से ज्यादा के लोन की निगरानी करेगी. 

इसके अलावा वित्त मंत्रालय ने भारतीय बैंकों की विदेशी शाखाओं पर भी सख़्ती बढ़ा दी है. वित्त मंत्रालय ने चार भारतीय बैंकों की Hong-kong की शाखाओं को निर्देश जारी किया है कि वो सभी खातों की दोबारा जांच करें. इन बैंकों में SBI, Bank of India, Allahabad बैंक और Axis Bank की विदेशी शाखाएं शामिल हैं. इन्हीं बैंकों की शाखाओं से पंजाब नेशनल बैंक के Letter of Undertaking जारी किए गए थे और इसके बाद ही नीरव मोदी का घोटाला सामने आया था.

बैंकों के Problem Areas तो आपने देख लिए लेकिन आपको उनकी मजबूरियां भी समझनी होंगी और उनके दबाव को महसूस करना होगा. सरकार की बहुत सी योजनाओं को लागू करवाने का काम बैंक ही करते हैं. केन्द्र सरकार की बड़ी योजनाओं में से एक प्रधानमंत्री जन धन योजना बैंकों ने ही लागू करवाई थी. देशभर के 6 लाख गांवों को 1 लाख 59 हज़ार छोटे क्षेत्रों में बांटा गया था. हर एक क्षेत्र में 1 हज़ार से 15 सौ परिवार रखे गए थे. और इस हिसाब से 1 लाख 26 हज़ार ऐसे क्षेत्रों में कोई भी बैंक नहीं था. ऐसे इलाकों में बैंक मित्र रखे गए ताकि हर व्यक्ति का बैंक खाता खोला जा सके. इन्हीं जनधन खातों की वजह से सरकार की सामाजिक सुरक्षा की तमाम योजनाएं लागू हो पाईं. जैसे प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना, जीवन ज्योति बीमा योजना और अटल पेंशन योजना जैसी योजनाएं इन्हीं जनधन खातों की वजह से सफल रहीं. 

21 फरवरी 2018 तक पूरे देश में 31 करोड़ 14 लाख जनधन खाते खोले जा चुके हैं और इनमें 74 हज़ार 758 करोड़ रुपये से ज्यादा की रकम जमा है. प्रधानमंत्री मुद्रा योजना को लागू करवाने की ज़िम्मेदारी भी बैंकों की ही है. इस योजना के अंतर्गत युवाओं को रोज़गार के लिए 50 हज़ार से 10 लाख रुपये तक का लोन दिया जा रहा है. इस योजना में अब तक 1 लाख 80 हज़ार करोड़ रुपये से ज्यादा का लोन दिया जा चुका है. इसके अलावा सरकार की Stand Up India scheme को लागू करवाने की ज़िम्मेदारी भी बैंकों की है. इस योजना के तहत 10 लाख से 1 करोड़ रुपये का बैंक लोन दिया जाता है. 

सरकार की Direct Benefit Transfers Schemes यानी सरकार द्वारा दी जाने वाली सब्सिडी भी बैंकों के द्वारा ही लागू होती हैं. 56 मंत्रालयों की 412 योजनाओं का पैसा अब सीधे लोगों के बैंक खातों में आता है. और ये सारे काम अपने आप नहीं होते. इसके लिए बैंक कर्मचारी, दिन रात ज़बरदस्त मेहनत करते हैं.

अब आप ये समझ गए होंगे कि आपके और हमारे पैसों का हिसाब रखने के अलावा बैंक, सरकार के ये सभी Extra काम भी करते हैं. अगर आप किसी बैंक कर्मचारी से उसके कामकाज का ब्यौरा पूछेंगे.. तो वो भावुक हो जाएगा और आपको बताएगा कि उसकी ज़िम्मेदारियां कितनी ज़्यादा हैं और उसकी तनख्वाह कितनी कम है.

जो कुछ भी बैंकों के साथ हो रहा है उससे निवेशकों की मानसिकता और उनके फैसलों पर गहरा असर पड़ता है. कई बार सिस्टम की सख्ती की वजह से निवेशकों का उत्साह भी ठंडा हो जाता है. आपको जानकर हैरानी होगी कि पिछले 60 वर्षों में बैंकों की Credit Growth अपने न्यूनतम स्तर पर है. यहां आपको ये भी समझना होगा कि Credit Growth क्या होती है? बैंकों द्वारा दिए गए कुल कर्ज़ में होने वाली वृद्धि को Credit Growth कहते हैं. 

किसी भी अर्थव्यवस्था के लिए Credit Growth का बढ़ना अच्छा माना जाता है. क्योंकि इससे ये पता चलता है कि कारोबारी लोन लेकर अपना कारोबार बढ़ा रहे हैं. या फिर नए कारोबारी लोन लेकर नए कारोबार शुरू कर रहे हैं. Credit Growth बढ़ने का सीधा असर रोज़गार पर भी पड़ता है, क्योंकि देश में Business बढ़ने की वजह से रोज़गार भी बढ़ते हैं. लेकिन भारत में पिछले 60 वर्षों में पिछले साल Credit Growth Rate सबसे कम रही. 2014 में जहां बैंकों के लोन 13.7% की दर से बढ़ रहे थे, वहीं 2017 में वो घटकर 5.1% हो गए हैं. 

इसका मतलब ये हुआ कि निवेशक Loan लेना नहीं चाहते और बैंक Loan देना नहीं चाहते. और ये बात अर्थव्यवस्था के खिलाफ जाती है. लेकिन सरकार भी क्या करे, क्योंकि बैंकों का NPA बहुत ज्यादा है. आपको जानकार हैरानी होगी कि हमारे देश के बैंकों का NPA यानी Non-Performing Asset.. 8 लाख 50 हज़ार करोड़ रुपये का हो चुका है. इनमें सबसे बड़ा Share, State Bank of India का है, जिसकी 1 लाख 88 हज़ार करोड़ रुपये से ज्यादा की रकम.. NPA बन चुकी है. 

SBI, PNB, BANK OF INDIA, IDBI और बैंक ऑफ बड़ौदा का NPA, कुल मिलाकर करीब 4 लाख करोड़ रुपये का है. ASSOCHAM और Crisil की एक Report के मुताबिक मार्च 2018 तक भारत के बैंकों का NPA 9.5 लाख करोड़ रुपये हो जाएगा. यानी अर्थव्यवस्था को जो संतुलन चाहिए वो मिल नहीं रहा. कभी ईमानदार निवेशकों को भी ज़रूरत से ज़्य़ादा सख्ती झेलनी पड़ती है. तो कभी सिस्टम इतना ढीला हो जाता है कि नीरव मोदी जैसे लोग हज़ारों करोड़ रुपये लेकर भाग जाते हैं. 

इसीलिए ऐसे लोगों के खिलाफ कार्रवाई तो ज़रूरी है, लेकिन ये भी ध्यान रखना होगा कि इससे Banking System और निवेशक के अंदर Panic न हो जाए. 
जो लोग बैंकों का पैसा लेकर भागे हैं, उनके खिलाफ छापे भी पड़ने चाहिएं, कार्रवाई भी होनी चाहिए, लेकिन ये ख्याल रखना होगा कहीं इससे ईमानदार लोगों के भरोसे की हत्या न हो जाए. कल को कहीं ऐसा न हो कि लोन देने वाला बैंक.. किसी को भी लोन देने से पहले हज़ार बार सोचे. 

पुराने ज़माने में जब बैंक नहीं होते थे, तब साहूकार हुआ करते थे. और वो आते-जाते अपने कर्ज़दारों से मिलते रहते थे और उनका हालचाल पूछते रहते थे. इसके पीछे एक खास मकसद होता था और वो मकसद था - ये सुनिश्चित करना कि उनका कर्ज़दार जीवित है और ठीक-ठाक है. ऐसा करना साहूकार के लिए बहुत ज़रूरी था, क्योंकि जब कर्ज़ लेने वाला जीवित रहेगा, तभी तो कर्ज़ भी जीवित रहेगा. जब कर्ज़दार मर जाता है या भाग जाता है..तो फिर उसके कर्ज़ की भी मौत हो जाती है. ऐसे ही कर्ज़ को हम NPA यानी Non Performing Asset कहते हैं.

ये बात आज हमारे बैंकिंग सिस्टम को और उसे चलाने वाली सरकार को समझनी चाहिए. बैंक भी आज के ज़माने के साहूकार हैं. उन्हें ये देखना होगा कि कर्ज़ लेने वाला कहीं इतने दबाव में न आ जाए कि वो अपने निवेश की योजना को ही ठंडे बस्ते में डाल दे. बैंक और निवेशक के बीच के भरोसे का खून नहीं होना चाहिए. ऐसा हुआ तो अर्थव्यवस्था की रफ़्तार कम हो जाएगी. और इस बात को सुनिश्चित करने की ज़िम्मेदारी सरकार पर है. सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती ये है कि नीरव मोदी जैसे धोखाबाज़ों की गिरफ़्तारियां भी होती रहें.. लेकिन साथ ही देश की अर्थव्यवस्था की रफ़्तार भी बढ़ती रहे.

Trending news