ZEE जानकारी: कैसे बीता था बापू का आखिरी दिन, जानें 30 जनवरी 1948 की पूरी कहानी
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ZEE जानकारी: कैसे बीता था बापू का आखिरी दिन, जानें 30 जनवरी 1948 की पूरी कहानी

आज पूरे भारत को ये जानना चाहिए, कि महात्मा गांधी ने अपना आखिरी दिन किस तरह व्यतीत किया था ? 

ZEE जानकारी: कैसे बीता था बापू का आखिरी दिन, जानें 30 जनवरी 1948 की पूरी कहानी

अब हम राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की ज़िंदगी के आखिरी दिन का DNA टेस्ट करेंगे. आज महात्मा गांधी की 71वीं पुण्यतिथि है. 71 साल पहले आज ही के दिन यानी 30 जनवरी 1948 को महात्मा गांधी की हत्या कर दी गई थी. ऐतिहासिक घटनाओं से जुड़े तथ्यों पर अक्सर वक़्त की धूल पड़ जाती है. आज उस धूल को हटाने का दिन है. आज पूरे भारत को ये जानना चाहिए, कि महात्मा गांधी ने अपना आखिरी दिन किस तरह व्यतीत किया था ? लेकिन उससे पहले कुछ तस्वीरें देखिए.

जिस दिन महात्मा गांधी की हत्या हुई थी, उस दिन पूरे देश में शोक की लहर थी. जब उनकी अंतिम यात्रा निकली तो सड़कों पर लाखों लोगों का जन-सैलाब उतर आया था. हर किसी की आंखों में आंसू थे और सब, बापू को आखिरी बार देखना चाहते थे. कहा जाता है कि उनकी शव यात्रा में समाज के हर वर्ग के करीब दस लाख लोगों ने भाग लिया था. इस वक्त आप बापू की अंतिम यात्रा की वही तस्वीरें देख रहे हैं. वैसे ये भी एक विडंबना है, कि 30 जनवरी और 2 अक्टूबर... हर वर्ष ये दो दिन ऐसे होते हैं.. जब भारत में महात्मा गांधी को याद किया जाता है. 

देश भर में बहुत सारे सेमीनार, सभाएं और गोष्ठियां आयोजित की जाती हैं. बड़े-बड़े भाषण दिए जाते हैं. बहुत सारे नेता और बुद्धिजीवी अपने भाषणों और वक्तव्यों की तैयारियां करने के लिए गांधी जी के उपदेशों के Notes बनाते हैं. लेकिन कार्यक्रम खत्म होने के बाद महात्मा गांधी के विचारों और उनके व्यक्तित्व को किसी Freezer में रख दिया जाता है.. जिसे हिंदी में ठंडा बस्ता कहते हैं. 

गांधी जी से जुड़ी हुई कुछ जानकारियां ऐसी हैं जिन्हें ठंडे बस्ते में डाल दिया गया. और वो बातें कभी आपके सामने नहीं आईं. ऐसे तथ्य इतिहास की किताबों में खोकर रह गये. आज उनकी पुण्यतिथि पर आपको ये जानना चाहिए कि अपने जीवन के आखिरी दिन... सुबह नींद से उठने से लेकर, हमेशा के लिए मृत्यु की गहरी नींद में सोने से पहले तक, महात्मा गांधी ने क्या किया था ? 30 जनवरी 1948 को गांधी जी की हत्या किन परिस्थितियों में हुई थी? आज इन सभी सवालों के जवाब हम आपको देंगे.

महात्मा गांधी की ज़िंदगी के आखिरी दिन बारे में जानने के लिए हमने एक पुस्तक का अध्ययन किया जिसका नाम है - Gandhi : The years that Changed the world. इसके लेखक हैं मशहूर इतिहासकार रामचंद्र गुहा.
इस पुस्तक से हमें जो जानकारियां मिलीं हम उन्हें क्रमबद्ध तरीके से आपके सामने रख रहे हैं.

1948 के दौर में गांधीजी का दिन.. दिल्ली के बिड़ला भवन में चिट्ठियां लिखते हुए, लोगों से बातचीत करते हुए और चरखा कातते हुए बीतता था. 

30 जनवरी 1948 को शुक्रवार का दिन था. बापू के लिए उस दिन की शुरुआत किसी आम दिन की तरह ही हुई.

हमेशा की तरह महात्मा गांधी सुबह साढ़े तीन बजे उठे. और उसके बाद उनकी रोज़ की गतिविधियां शुरू हो गईं.

गांधीजी ने अपनी पोती आभा को जगाया और इसके बाद स्नान करके वो प्रार्थना के लिए बैठ गए.

उनकी प्रार्थनाओं में सभी धर्मों की पवित्र पुस्तकों की बातें शामिल होती थीं. खासकर हिंदू धर्म और इस्लाम की. वो इस बात पर ज़ोर देते थे, कि सभी धर्म एक हैं.

उस दिन किसी बाहरी व्यक्ति से उनकी पहली मुलाक़ात शाम 7 बजे की थी. उन्हें एक सामाजिक कार्यकर्ता से मुलाकात करनी थी. ज़ाहिर है इस मुलाकात से पहले उनके पास काफी समय बचा हुआ था. इसलिए, सुबह की प्रार्थना सभा के बाद उन्होंने उस दिन का अखबार पढ़ा और हर रोज़ की तरह नाश्ता किया. और नाश्ते के बाद वो एक बार फिर सोने चले गए.

उठने के बाद सबसे पहले उनकी मुलाक़ात दिल्ली के कुछ मुस्लिम नेताओं से हुई. 
महात्मा गांधी, 2 फरवरी 1948 को वर्धा के सेवाग्राम में होने वाले एक कार्यक्रम में शामिल होना चाहते थे. क्योंकि उन्हें वर्द्धा में अपने आश्रम गए हुए एक साल से ज़्यादा का समय बीत चुका था. लेकिन जाने से पहले वो इस बात को लेकर आश्वस्त होना चाहते थे, कि दिल्ली में हिंदू और मुस्लिम समुदाय पूरी तरह सुरक्षित रहेंगे. उन दिनों दिल्ली में हालात सामान्य नहीं थे और सांप्रदायिक तनाव बना हुआ था. मुस्लिम नेताओं के साथ बातचीत के बाद वो आश्वस्त हो गये और उन्होंने अपने सहयोगी ब्रिज कृष्ण चांदीवाला को वर्द्धा की ट्रेन टिकट Book करने के लिए कहा.

30 जनवरी को दोपहर 1 बजे, गुजरात के एक समाज-सेवक शांतिकुमार मोरारजी उनसे मिलने पहुंचे. 

इसके बाद बापू ने दोपहर में अपना सारा समय शरणार्थियों, हरिजनों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और कांग्रेस पार्टी के नेताओं से मिलने में गुज़ार दिया. 

इसके बाद शाम साढ़े 4 बजे सरदार वल्लभभाई पटेल, महात्मा गांधी से मिलने पहुंचे. महात्मा गांधी ने उनसे पंडित जवाहरलाल नेहरु और उनके बीच बढ़ रहे तनाव पर चर्चा की. बापू के मुताबिक जवाहर लाल नेहरू और सरदार पटेल के बीच ये संघर्ष दुर्भाग्यपूर्ण था. और वो चाहते थे कि इस संघर्ष का अंत करने के लिए इन दोनों में से एक को.. कैबिनेट से हट जाना चाहिए. सरदार पटेल के साथ इस विषय पर उनकी चर्चा की वजह से, उन्हें प्रार्थना सभा के लिए देर हो गई. खुद पंडित नेहरु भी प्रार्थना सभा के बाद महात्मा गांधी से मिलने के लिए आने वाले थे.

शाम को क़रीब पौने पांच बजे महात्मा गांधी बिड़ला हाऊस से बाहर निकले. और बागीचे की तरफ बढ़ने लगे. क्योंकि वहीं पर प्रार्थना सभा का आयोजन होना था. 

वो पर-पोती आभा और मनु के कंधों पर हाथ रखकर आगे बढ़ रहे थे. 

लेकिन वो जैसे ही प्रार्थना सभा स्थल पर पहुंचे, अचानक एक व्यक्ति उनके पास पहुंच गया. ऐसा लगा, जैसे वो उनके पैर छूना चाहता था. प्रार्थना सभा में देरी हो रही थी, इसलिए आभा ने उस व्यक्ति को रोकने की कोशिश की. लेकिन उस व्यक्ति ने आभा को धक्का दिया. और अचानक Pistol निकालकर point-blank range से बापू को एक के बाद एक तीन गोलियां मार दी. एक गोली गांधी जी के सीने में लगी. जबकि दो गोलियां उनके पेट में लगी. इस दौरान गांधी जी के मुंह से जो शब्द निकले, वो थे 'हे राम'

गोली की आवाज़ सुनते ही भीड़ ने गोली चलाने वाले व्यक्ति को पकड़ लिया और पुलिस को सौंप दिया.इसके बाद गांधी जी को बिड़ला हाऊस के अंदर ले जाया गया. लेकिन उनकी मौत गोली लगते ही हो गई थी.

जैसे ही उनकी हत्या की ख़बर फैली, सबसे पहले महात्मा गांधी के बेटे देवदास गांधी और मौलाना आज़ाद बिड़ला हाऊस पहुंचे. इसके बाद पंडित नेहरु और सरदार वल्लभभाई पटेल भी वहां पहुंच गए. और ये सभी लोग शोक मनाने लगे

इसके बाद एक रिपोर्टर उस पुलिस स्टेशन में गया, जहां गोली चलाने वाले व्यक्ति से पूछताछ की जा रही थी. जैसे ही ये रिपोर्टर कमरे के अंदर पहुंचा, हथकड़ी में बंधा आरोपी अपने स्थान पर खड़ा हो गया. और उसने अपना नाम नाथूराम बताया. और कहा, कि वो पुणे का रहने वाला है. 

जब उस व्यक्ति से बापू की हत्या के बारे में पूछा गया, तो पहले वो मुस्कुराया. और फिर उसने कहा, कि उसे अपने किए पर कोई पछतावा नहीं है. 

दूसरी तरफ बिड़ला हाऊस में महात्मा गांधी की जय के नारे लग रहे थे. महात्मा गांधी के शव को सफेद खादी में लपेटा गया और छत पर ले जाया गया. वहां Flood Lights भी लगाई गईं ताकि नीचे मौजूद भीड़, गांधी जी के दर्शन कर सके.

रात 2 बजे, जब भीड़ थोड़ी कम हो गई, तो गांधी जी के सहयोगी उनके पार्थिव शरीर को स्नान कराने के लिए ले गए. सामने एक टब में ठंडा पानी रखा हुआ था. और उनके मृत शरीर को ठंडे पानी से नहलाने की ज़िम्मेदारी उनके सहयोगी ब्रिज कृष्ण चांदीवाला को दी गई. बृज कृष्ण 1919 से ही महात्मा गांधी के साथ थे. महात्मा गांधी का शव देखकर वो बहुत सदमे में थे. उन्होंने गांधी जी के खून से लथपथ कपड़े उतारे. खून जमने की वजह से ये कपड़े उनके शरीर से चिपक गये थे. ये सब देखकर बृज कृष्ण चांदीवाला रोने लगे. 

एक तथ्य ये भी है, कि ब्रिज कृष्ण चांदीवाला ने बापू को जीवित रहते हुए कभी भी ठंडे पानी से स्नान नहीं कराया था. महात्मा गांधी हमेशा गर्म पानी से नहाते थे.. लेकिन उस दिन बृज कृष्ण ने महात्मा गांधी के मृत शरीर को, ठंडे पानी से नहलाया था.

महात्मा गांधी आज भले ही हमारे बीच ना हों. लेकिन उनके विचार आज भी जीवित हैं. हज़ारों वर्षों की मानव सभ्यता में महात्मा गांधी एक ऐसे व्यक्ति हैं जिन्होंने मानव जाति को अपना विरोध जताने का एक नया तरीका सिखाया. उन्होंने ये साबित किया कि बिना खून बहाए, और किसी को पीड़ा पहुंचाए बिना भी... विरोध किया जा सकता है.

एक ऐसा ही प्रभावशाली आंदोलन था, दांडी मार्च. महात्मा गांधी ने 12 मार्च, 1930 को अहमदाबाद के पास स्थित साबरमती आश्रम से दांडी गांव तक 24 दिनों का पैदल मार्च निकाला था. जिसे दांडी मार्च, नमक मार्च और दांडी सत्याग्रह के रूप में भी याद किया जाता है. वर्ष 1930 में अंग्रेजों द्वारा नमक के ऊपर Tax लगाने के कानून के विरोध में बापू ने इस आंदोलन की शुरुआत की थी. उस दौरान गांधीजी ने 24 दिनों तक हर रोज़ औसतन 16 से 19 किलोमीटर की पैदल यात्रा की. 

इस घटना के 89 वर्षों के बाद आज एक बार फिर पूरे देश में दांडी Trend कर रहा है. क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दांडी में बनाए गए National Salt Satyagraha Memorial यानी राष्ट्रीय नमक सत्याग्रह स्मारक को देश को समर्पित किया है. महात्मा गांधी के नेतृत्व में 80 सत्याग्रहियों द्वारा किए गए इस आंदोलन की याद में बनाए गए स्मारक में 89 वर्ष पुरानी यादों को सहेज कर रखा गया है.इसे देखना आपके लिए एक दिलचस्प और अनोखा अनुभव होगा.

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