कश्मीर की समस्या का इतिहास नेहरू-गांधी परिवार और अब्दुल्ला परिवार के इतिहास से भी जुड़ा है .
Trending Photos
जम्मू-कश्मीर को लेकर पिछले 72 साल से झूठ को सच साबित करने की कोशिश की गई. कश्मीर के कुछ नेताओं ने लगातार अनुच्छेद 370 को लेकर गलतफहमी की एक दीवार खड़ी कर दी. जिसका इस्तेमाल पाकिस्तान जैसे देश ने किया. लेकिन आज वो दीवार, आखिरकार टूट गई .
कश्मीर की समस्या का इतिहास नेहरू-गांधी परिवार और अब्दुल्ला परिवार के इतिहास से भी जुड़ा है . दोनों परिवारों के राजनीतिक वारिस पीढ़ी दर पीढ़ी कश्मीर की समस्या को उलझाते रहे .
शुरुआत होती है... शेख अब्दुल्ला और पंडित नेहरू की दोस्ती से . 1948 में पंडित नेहरू की मदद से शेख अब्दुल्ला जम्मू और कश्मीर के प्रधानमंत्री बन गए लेकिन जल्द ही ये दोस्ती और भरोसा टूट गया . वर्ष 1953 में पंडित नेहरू के इशारे पर शेख अब्दुल्ला को प्रधानमंत्री पद से हटा दिया गया और जेल में डाल दिया गया .
1948 से 1953 के बीच कश्मीर से जुड़े हुए पंडित नेहरू के हर फैसले पर शेख अब्दुल्ला का प्रभाव था . इन 5 वर्षों में भारत-पाकिस्तान के बीच पहला युद्ध हुआ . गलत वक्त पर युद्ध विराम करने से POK का निर्माण हुआ . कश्मीर में अनुच्छेद 370 को लागू कर दिया गया और पूरे मामले को संयुक्त राष्ट्र संघ में उठाया गया . पंडित नेहरू के ये सभी फैसले गलत साबित हुए . इन फैसलों में शेख अब्दुल्ला की भी भूमिका मानी जाती है .
1953 में शेख अब्दुल्ला की जगह बख्शी गुलाम मोहम्मद को प्रधानमंत्री बनाया गया . लेकिन कश्मीर के लोगों ने उन्हें दिल्ली की कठपुतली माना . वर्ष 1957, 1962 और 1967 में जम्मू और कश्मीर में चुनाव हुए लेकिन इन चुनावों में धांधली हुई . इनमें से 1957 और 1962 के चुनाव पंडित नेहरू के प्रधानमंत्री रहते हुए . तीसरा चुनाव इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री रहते हुआ .
शेख अब्दुल्ला इस दौरान जेल में रहे और कांग्रेस ने चुनाव में धांधली करके सत्ता पर कब्जा जमा लिया . इन घटनाओं से कश्मीर की जनता का भरोसा टूट गया .
वर्ष 1964 में पंडित नेहरू ने शेख अब्दुल्ला को रिहा कर दिया . इसके बाद वर्ष 1975 में इंदिरा गांधी और शेख अब्दुल्ला के बीच एक समझौता हुआ .
कांग्रेस पार्टी ने समर्थन करके शेख अब्दुल्ला को राज्य का मुख्यमंत्री बनवा दिया . बिना चुनाव जीते शेख अब्दुल्ला मुख्यमंत्री बन गए . इंदिरा गांधी ने शेख अब्दुल्ला को कश्मीर Gift कर दिया . ये तुष्टीकरण की पराकाष्ठा थी और इंदिरा गांधी की ऐतिहासिक भूल थी . क्योंकि इसके बाद अब्दुल्ला परिवार ने कश्मीर की राजनीति पर कब्जा कर लिया . एक परिवार कश्मीर को अपनी जागीर समझने लगा .
इसके बाद शेख अब्दुल्ला के बेटे फारुक अब्दुल्ला और इंदिरा गांधी के बेटे राजीव गांधी के बीच राजनीतिक दोस्ती शुरू हुई . वर्ष 1987 में नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस पार्टी ने साथ-साथ चुनाव लड़ा . इस चुनाव में भी धांधली का आरोप लगा . जिन लोगों ने धांधली का आरोप लगाया उनमें से कुछ अलगाव-वादी और आतंकवादी बन गए .
वर्ष 1989 में जब आंतकवादियों ने कश्मीरी पंडितों को कश्मीर घाटी से बाहर निकालने का अभियान शुरू किया तब फारुक अब्दुल्ला, जम्मू और कश्मीर के मुख्यमंत्री थे . उस सरकार में कांग्रेस पार्टी शामिल थी .
अब फारुक अब्दुल्ला के बेटे उमर अब्दुल्ला और राजीव गांधी के बेटे राहुल गांधी की दोस्ती गहरी हो गई है . शायद यही वजह है कि राहुल गांधी आज भी Article 370 के प्रावधानों को हटाने का विरोध कर रहे हैं .
हम अक्सर कश्मीर के मामले में पंडित नेहरू की भूलों की चर्चा करते हैं . लेकिन कश्मीर को समस्या बनाने में महाराजा हरि सिंह का Role भी कम नहीं था .
महाराजा हरि सिंह अपने राजसी वैभव में डूबे हुए व्यक्ति थे . उनको शिकार खेलने का काफी शौक था . वो किसी भी समस्या में उलझना नहीं चाहते थे . लॉर्ड माउंटबेटन से उनकी दोस्ती थी और ब्रिटिश साम्राज्य के प्रति उनकी पूरी आस्था थी . जब देश आज़ाद हुआ तब वो कश्मीर को Switzerland जैसा एक अलग देश बनाना चाहते थे . इसीलिए जब भी हरि सिंह की मुलाकात
पंडित नेहरू, Lord माउंटबेटन या फिर भारत सरकार के किसी प्रतिनिधि से तय हुई . हर बार हरि सिंह ने मुलाकात टाल दी और अपने प्रतिनिधि को भेज दिया .
हरि सिंह की महात्वाकांक्षा को उस वक्त आघात लगा... जब अक्टूबर 1947 में पाकिस्तान ने काबायलियों को भेजकर जम्मू और कश्मीर पर हमला बोल दिया .
आखिर अपनी प्रजा पर हो रहे अत्याचारों को देखकर हरि सिंह मजबूर हो गए . उन्होंने भारत से सैन्य मदद मांगी . इसके बदले में हरि सिंह को विलय के दस्तावेज पर हस्ताक्षर करना पड़ा . 26 अक्टूबर 1947 को हस्ताक्षर के बाद जम्मू और कश्मीर, भारत का अभिन्न अंग बन गया .
जम्मू और कश्मीर का विलय भारत में उसी तरह हुआ जैसे दूसरी 565 रियासतों का हुआ था . 15 अगस्त 1947 में अंग्रेजों ने इन रियासतों को ये छूट दी थी कि वो भारत या पाकिस्तान में से किसी एक को चुन सकते हैं .
इसका आधार Government of India Act 1935 था . इस Act में Instrument of Accession का जिक्र था . इसे विलय का कानूनी दस्तावेज माना जाता था .
Government of India Act 1935 के मुताबिक किसी Princely States प्रिंसली स्टेट या रियासत को ब्रिटेन के भारतीय उपनिवेश में शामिल माना जाएगा . अगर उस रियासत का शासक या राजा Instrument of Accession यानी विलय पत्र के कानूनी दस्तावेज पर सहमत है . और उसकी सहमति को भारत के गवर्नर जनरल के द्वारा भी स्वीकार किया जाता है .
आज हमने Government of India Act 1935 की बात इसलिए की . क्योंकि इसमें Instrument of Accession का प्रावधान था . और इस पर हस्ताक्षर करते ही जम्मू और कश्मीर का संपूर्ण विलय भारत के साथ हो चुका था . लेकिन अनुच्छेद 370 को जोड़कर भारत के साथ जम्मू और कश्मीर के विलय को कमज़ोर कर दिया गया . और इसके लिए पंडित नेहरू और शेख अब्दुल्ला को ज़िम्मेदार माना जाता है .
पंडित नेहरू एक आदर्शवादी राजनेता थे . वो पाकिस्तान की चालाकियों को अपने आदर्शवाद से हराना चाहते थे . यहीं वो भूल कर गए . वर्ष 1947 में अक्टूबर के महीने में जब काबायली जम्मू और कश्मीर में घुस चुके थे .
28 अक्टूबर 1947 को पंडित नेहरू ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाकत अली खान को एक Telegram भेजा .
इस Telegram में पंडित नेहरू ने लियाकत अली को उन शर्तों की जानकारी दी... जिनके तहत कश्मीर भारत में शामिल हुआ था . पंडित नेहरू ने कश्मीर से काबायलियों को भगाने में सहयोग मांगा . उन्होंने कश्मीर में ऐसा माहौल बनाने की अपील की जिसमें जनता की भागीदारी बढ़ सके . पाकिस्तान ने पंडित नेहरू की सद्भावना का जवाब दुर्भावना से दिया . पंडित नेहरू के Telegram के जवाब में पाकिस्तान ने आरोप लगाया कि भारत, जम्मू और कश्मीर पर हमला करके कश्मीर के विलय की तैयारी कर रहा है .
पाकिस्तान से ना-उम्मीद होने के बाद शांतिप्रिय पंडित नेहरू ने संयुक्त राष्ट्र संघ का रुख किया .
एक जनवरी 1948 को UN Security Council में भारत के प्रतिनिधि P P पिल्लई ने जम्मू और कश्मीर पर काबायलियों के हमले का मुद्दा उठाया . उन्होंने कहा कि उरी से सटे इलाकों में भारत की सेना का मुकाबला 19 हजार हमलावरों से हुआ . हमलावरों में काबायली भी शामिल थे . जम्मू और कश्मीर से सटे पश्चिमी पंजाब यानी पाकिस्तान वाले पंजाब के सीमा से सटे जिलों से भी हमलावरों को शामिल किया था . इन सभी हमलावरों की संख्या करीब एक लाख थी .
जब भारत की सेना पूरे जम्मू और कश्मीर को जीतने से थोड़ी ही दूर थी . तभी पंडित नेहरू ने संघर्ष विराम और जनमत संग्रह का ऐलान कर दिया . पंडित नेहरू ने सैन्य, राजनीतिक और अंतर-राष्ट्रीय कारणों से युद्ध विराम की घोषणा कर दी . इस वजह से जम्मू और कश्मीर बंट गया . Line Of Control यानी नियंत्रण रेखा के दोनों तरफ कश्मीर पर दो अलग-अलग देशों का अधिकार हो गया . जो हिस्सा आज पाकिस्तान के पास है उसे पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर कहा जाता है .
आज कांग्रेस पार्टी ने बार-बार पंडित नेहरू की कश्मीर नीति का महिमा मंडन किया . कांग्रेस ने जूनागढ़ और हैदराबाद की रियासत को भी भारत में शामिल करवाने का श्रेय पंडित नेहरू को दिया . लेकिन ये भ्रम फैलाने की कोशिश है .
जूनागढ़ और हैदराबाद के मामले को सरदार पटेल Handle कर रहे थे . लेकिन कश्मीर के मामले को पंडित नेहरू Handle कर रहे थे . ये दो तरह के मामले थे .
जूनागढ़ और हैदराबाद में मुस्लिम हुकूत थी, वहां पर नवाबों का राज था . ये दोनों नवाब पाकिस्तान में शामिल होना चाहते थे . लेकिन सरदार पटेल ने इन दोनों रियासतों को भारत में शामिल करवा लिया .
दूसरी तरफ जम्मू और कश्मीर के राजा हरि सिंह भारत में शामिल होना चाहते थे . लेकिन इसके बाद भी पंडित नेहरू, जम्मू और कश्मीर का संपूर्ण विलय भारत में नहीं करवा सके . शेख अब्दुल्ला की सलाह पर चलकर वो लगातार गलतियां करते रहे . बीते 70 वर्षों में कश्मीर समस्या की वजह से देश में हजारों निर्दोष लोग मारे गए .
कश्मीर को लेकर पंडित नेहरू की नीति आदर्शवादी थी जबकि सरदार पटेल व्यवहारिक नीति पर भरोसा करते थे . पंडित नेहरू सिर्फ वर्तमान की चिंता कर रहे थे . उनको अपने दोस्त शेख अब्दुल्ला और लॉर्ड माउंटबेटन की सलाह की भी चिंता करनी थी . लेकिन सरदार पटेल सिर्फ और सिर्फ भारत के राष्ट्रीय हितों की चिंता कर रहे थे .
पंडित नेहरू कश्मीर के मामले को संयुक्त राष्ट्र में ले गए . लेकिन सरदार पटेल इसके खिलाफ थे . पंडित नेहरू ने 2 नवंबर 1947 को All India Radio पर कश्मीर में जनमत संग्रह करवाने की घोषणा कर दी .सरदार पटेल उस वक्त देश के सूचना प्रसारण मंत्री थे . लेकिन वो पंडित नेहरू का ये रेडियो संदेश रुकवाने में कामयाब नहीं हो सके थे .
दुर्भाग्य की बात ये है कि पंडित नेहरू कश्मीर के मुद्दों पर अपने गृहमंत्री सरदार पटेल की बजाय आजाद भारत के पहले गवर्नर जनरल Lord माउंटबेटन पर ज्यादा भरोसा करते थे .