ZEE जानकारी: कहानी जम्मू-कश्मीर के दो राजनीतिक परिवारों की
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ZEE जानकारी: कहानी जम्मू-कश्मीर के दो राजनीतिक परिवारों की

जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के पीछे की एक बड़ी वजह ये भी थी. आरोपों के मुताबिक, भ्रष्टाचार ने वहां की राजनीति में अपनी जड़ें फैला ली थीं.

ZEE जानकारी: कहानी जम्मू-कश्मीर के दो राजनीतिक परिवारों की

यह ख़बर जम्मू-कश्मीर के दो राजनीतिक परिवारों और उनके नेताओं को बहुत चुभेगी. 

हम अब्दुल्ला परिवार और मुफ्ती परिवार की बात कर रहे हैं. हो सकता है, कि हमारा विश्लेषण देखने के बाद ये दोनों परिवार हमसे नाराज़ हो जाएं. लेकिन जम्मू-कश्मीर और वहां रहने वाले लोगों के हितों का ध्यान रखते हुए, ये विश्लेषण करना ज़रुरी है. नेताओं के ऊपर देश को चलाने की ज़िम्मेदारी होती है. जन प्रतिनिधियों से आम आदमी ये उम्मीद करता है, कि वो पूरी ईमानदारी के साथ अपना काम करेंगे. लेकिन जब वो जनता के हितों को भूलकर, अपना हित साधने लगते हैं. तो उनके चरित्र पर शक होता है. 

जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के पीछे की एक बड़ी वजह ये भी थी. आरोपों के मुताबिक, भ्रष्टाचार ने वहां की राजनीति में अपनी जड़ें फैला ली थीं. इसका नतीजा ये हुआ, कि आम जनता छोटी से छोटी सुविधाओं के लिए तरसती रही. और वहां के राजनीतिक परिवार हर बीतते दिन के साथ धनवान होते चले गए. इसलिए आज जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक घरानों की कमाई, उनकी संपत्ति और उन्हें मिलने वाली सुविधाओं को वहां की जनता की बदहाली से जोड़कर देखना और समझना ज़रुरी है.

इस वक्त मेरे हाथ में जम्मू-कश्मीर के तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों द्वारा चुनाव आयोग को वर्ष 2004 से 2019 के बीच सौंपी गई अलग-अलग Affidavits हैं. जिसमें इन्होंने अपनी संपत्ति का ब्यौरा दिया था. ये एक आधिकारिक दस्तावेज़ है. जिसमें चुनाव के वक्त सभी उम्मीदवारों को अपनी संपत्ति का ब्यौरा देना होता है. 

वर्ष 2008 के विधानसभा चुनाव के Affidavit में फारूक अब्दुल्ला ने 9 करोड़ 78 लाख रुपये से ज़्यादा की संपत्ति घोषित की थी.
लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव आते-आते उनकी संपत्ति बढ़कर सवा 12 करोड़ रुपये से ज़्यादा की हो गई.

ठीक इसी तरह उनके पुत्र उमर अब्दुल्ला ने 2004 के लोकसभा चुनाव में 1 करोड़ 86 लाख रुपये से ज़्यादा की संपत्ति का ऐलान किया था. लेकिन 2008 के विधानसभा चुनाव में उनकी संपत्ति बढ़कर 3 करोड़ 51 लाख रुपये से ज़्यादा की हो गई. 
2004 के लोकसभा चुनाव में महबूबा मुफ्ती ने साढ़े 4 लाख रुपये की संपत्ति का ऐलान किया था. 
लेकिन 2019 के चुनाव में उनकी संपत्ति बढ़कर 89 लाख रुपये से ज़्यादा की हो गई. यानी इन 15 वर्षों में उनकी संपत्ति में क़रीब 1900 प्रतिशत से ज़्यादा का इज़ाफा हुआ.

अब सवाल ये है, कि इन सभी के पास इतनी संपत्ति आई कहां से ? इनके कितने बंगले हैं ? इन्हें कौन-कौन सी सरकारी सुविधाएं मिलती हैं ? और सरकार इनके ऊपर आम जनता की गाढ़ी कमाई का कितना हिस्सा खर्च करती हैं ? आज हमने इन सभी सवालों का जवाब ढूंढने की कोशिश की है. लेकिन आगे बढ़ने से पहले हम आपको कुछ महीनों पुराना एक बयान सुनाना चाहते हैं. उस वक्त कश्मीर के कुछ स्थानीय नेता एक Press Conference कर रहे थे. और उसी दौरान, कश्मीर के धनवान राजनीतिक घरानों की कमाई वाला मुद्दा उठा था.

कश्मीर के स्थानीय नेता बार-बार पत्रकारों से एक बात कह रहे थे, कि कश्मीर के धनवान राजनीतिक परिवारों के पास इतना पैसा आया कहां से ? उनके पास इतनी महंगी-महंगी गाड़ियां कहां से आईं ? अब एक-एक करके इसके तह में जाने की कोशिश करते हैं.
सबसे पहले ये देखिए, कि कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्रियों को क्या-क्या सुविधाएं मिलती हैं ?

जम्मू-कश्मीर विधानसभा के पूर्व सदस्यों पर लागू होने वाले Pension Act 1984 के तहत, पूर्व मुख्यमंत्रियों को पेट्रोल के खर्च के सहित एक कार मिलती है. गाड़ी चलाने वाला ड्राइवर मिलता है. Furnished मकान मिलता है. घर के रख-रखाव के लिए प्रति वर्ष 35 हज़ार रुपये मिलते हैं. इतना ही नहीं इन नेताओं को हर साल 48 हज़ार रुपये तक की मुफ्त Phone Calls करने की सुविधा भी मिलती है . इसके अलावा एक विशेष सचिव और दो Peon मिलते हैं. वो भी सरकारी खर्चे पर. साथ ही साथ पूर्व विधायक होने के नाते उन्हें पेंशन के तौर पर 20 हज़ार रुपये से लेकर कई लाख रुपये तक मिलते हैं. ये रकम इस आधार पर तय होती है, कि वो कितने साल विधायक रह चुके हैं. 

सरकारी आवास के अलावा राज्य के पूर्व मुख्यमंत्रियों को बुलेट प्रूफ गाड़ियां भी मिलती हैं. उमर अब्दुल्ला, उनके पिता फारूक अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती तीनों को Z Plus श्रेणी की सुरक्षा मिली हुई है. Z Plus में शामिल सुरक्षाकर्मियों की संख्या 50 के आस-पास होती है . लेकिन वो ज़्यादा भी हो सकती है. 2015 में जम्मू-कश्मीर की विधान परिषद में जानकारी दी गई थी, कि राज्य के नेताओं को मिलने वाली सुरक्षा पर प्रति महीने क़रीब 11 करोड़ रुपये का खर्च आता है. यानी प्रति वर्ष 130 करोड़ रुपये से ज़्यादा का खर्च. इनमें से बड़ी संख्या इन दोनों पार्टियों से जुड़े हुए नेताओं की है. 

सवाल ये है, कि जिस राज्य की आर्थिक हालत इतनी खराब हो. वहां के विधायक या पूर्व मुख्यमंत्रियों को ये सुविधाएं क्यों और कैसे मिलती हैं ? इसके पीछे का एक इतिहास है.

1984 के इस Act को, फारुक अब्दुल्ला के रिश्तेदार और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम मोहम्मद शाह ने लागू किया था.
लेकिन, बाद में जब फारुक अब्दुल्ला राज्य के मुख्यमंत्री बने तो 1997 से 1998 के बीच, उन्होंने इस Act में संशोधन करके. कई सारी Extra सुविधाएं जोड़ दीं. 

1996 से लेकर अबतक वहां के मुख्यमंत्रियों के घर की सजावट और मरम्मत पर 30 करोड़ रुपये से ज़्यादा का सरकारी खर्च होने का अनुमान है.

2002 में जब मुफ्ती मोहम्मद सईद मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने श्रीनगर के M.A. रोड स्थित Guest House Number Five को अपना आधिकारिक निवास बनाया. इस Guest House को उनके हिसाब से तैयार करने के लिए 6 करोड़ रुपये खर्च किए गए.

2005 में जब कांग्रेस नेता गुलाम नबी आज़ाद मुख्यमंत्री बने, तो उन्होंने हरि निवास पैलेस को आधिकारिक निवास बनाया. और कहा जाता है, कि उसकी सजावट के लिए क़रीब 15 करोड़ रुपये खर्च किए गए. ये पैलेस क़रीब 56 एकड़ में फैला है. और इसमें तीन Presidential suites, V.V.I.P Guest House और कई कमरे हैं. 

फारुक अब्दुल्ला ने भी हरि निवास पैलेस के सामने घर बनाने की शुरुआत की थी. लेकिन, हाई कोर्ट के आदेश के बाद उसे रोक दिया गया. 

2009 में जब उमर अब्दुल्ला मुख्यमंत्री बने, तो उन्होंने नया घर बनाने का फैसला लिया. और रिपोर्ट्स के मुताबिक, इसके लिए क़रीब साढ़े 3 करोड़ रुपये खर्च किए. 

ठीक इसी तरह महबूबा मुफ्ती ने भी सरकारी पैसों से बुलेट प्रूफ शीशों वाला घर खड़ा कर लिया. 

जहां तक संपत्ति की बात है, तो 2019 में चुनाव आयोग में दिए हलफनामे के अनुसार फारुक अब्दुल्ला के पास तीन अलग-अलग जगहों पर ज़मीनें हैं. श्रीनगर के एक बड़े Commercial Building में उनकी हिस्सेदारी है. गुपकार रोड पर एक घर है. और एक घर जम्मू में भी है. ये भी कहा जाता है, कि पाकिस्तान के लाहौर में भी अब्दुल्ला परिवार की करोड़ों की संपत्ति है. 

2008 के हलफनामे के मुताबिक उमर अब्दुल्ला के पास दिल्ली में एक आलीशान फ्लैट है. और हिमाचल के कुल्लू में फैक्ट्री और ज़मीन थी. लेकिन 2014 के Affidavit में इसका कोई ज़िक्र नहीं मिला.

2019 में चुनाव आयोग को दिए हलफनामे में महबूबा मुफ्ती ने बताया था, कि उनके पास अनंतनाग में 5 हज़ार Square Feet के इलाके में रिहाईशी घर है. साथ ही साथ कुछ ज़मीन भी है. 

रिपोर्ट्स के मुताबिक, दोनों ही परिवार के कई सदस्यों के पास देश और विदेश में कीमती Properties हैं. जिनका ब्यौरा सार्वजनिक नहीं है. 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह, दोनों ही इस गंभीर विषय पर अपनी चिंता जता चुके हैं. क्योंकि कश्मीर...वहीं का वहीं रह गया. और वहां के धनवान राजनीतिक परिवार पहले से ज़्यादा धनवान होते चले गए.

जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोगों से अपनी गैस सब्सिडी छोड़ने की अपील की थी. तो फारूक अब्दुल्ला ने कहा था, कि गैस सब्सिडी छोड़ना या न छोड़ना सांसदों, विधायकों और उपभोक्ताओं की इच्छा पर ही निर्भर करता है. और ऐसी ख़बर आई थी, कि उन्होंने 2015 में गैस सब्सिडी के लिए आवेदन दिया था. ठीक इसी तरह उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती अभी भी सरकारी खर्च पर तैयार किए गए आवास का लाभ उठा रहे हैं. लेकिन अनुच्छेद 370 ख़त्म होने के बाद, उनकी ये सुविधा ख़त्म हो सकती है. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत... लंबे समय से सरकारी आवासों पर कब्जा किये पूर्व मुख्यमंत्रियों से उनका सरकारी बंगला वापस लिया जा सकता है.

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