सुषमा स्वराज ने लोकसभा में अनुच्छेद 370 को हटाए जाने का प्रस्ताव पारित होने के बाद किया था . अपने आखिरी ट्वीट में उन्होंने लिखा था कि वो अपने जीवन में इस दिन को देखने की प्रतीक्षा कर रही थीं .
Trending Photos
मंगलवार को जब सारा देश अनुच्छेद 370 को हटाए जाने पर खुशियां मना रहा था, तभी एक दुखद खबर भी आ गई . दिल्ली के AIIMS में बीजेपी की बड़ी नेता और पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज का निधन हो गया . लेकिन अपने निधन से करीब 3 घंटे पहले उन्होंने एक Tweet किया था .
ये Tweet उन्होंने लोकसभा में अनुच्छेद 370 को हटाए जाने का प्रस्ताव पारित होने के बाद किया था . अपने आखिरी ट्वीट में उन्होंने लिखा था कि वो अपने जीवन में इस दिन को देखने की प्रतीक्षा कर रही थीं . सुषमा स्वराज का सपना था कि कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक भारत एक हो जाए .
कल उनके जीवन की ये सबसे बड़ी इच्छा पूरी हो गई . यानी निधन से पहले शायद उन्हें वो शांति मिल गई, जिसकी उन्हें वर्षों से तलाश थी . सुषमा स्वराज के लिए देश की एकजुटता कितनी अहम थी, ये समझने के लिए आपको वर्ष 1996 में संसद दिए गए उनके एक भाषण का अंश सुनना चाहिए . इस भाषण में उन्होंने बताया था कि बीजेपी क्यों अनुच्छेद 370 का विरोध करती है .
भारत की एकता और संस्कृति को अखंडित रखने का सपना देखने वाली सुषमा जी.. अगर कश्मीर की ये तस्वीरें देख पातीं तो बहुत खुश होतीं . लेकिन ऐसा लगता है कि निधन से पहले ही उन्हें कश्मीर से आने वाली इस सुखद तस्वीर का एहसास हो गया था . और इसीलिए जाते जाते वो देश को इसके लिए बधाई देना नहीं भूलीं .
मृत्यु सबसे बड़ा सत्य है . जीवन का उद्देश्य हमेशा जीते रहना नहीं होता, बल्कि कुछ ऐसा कर जाना होता है, जिसकी यादें मौत के बाद भी जिंदा रहती हैं . लेकिन दुनिया में ऐसे बहुत कम लोग हैं जिनके जिंदगी भर के ख़जाने पर मौत भी डाका नहीं डाल सकती .
भारत की पूर्व विदेश मंत्री और बीजेपी के बड़े नेताओं में शुमार.. सुषमा स्वराज की जिंदगी ऐसी ही थी . कल रात 67 साल की उम्र में सुषमा स्वराज का निधन हो गया . लेकिन कहते हैं जिंदगी का असली अर्थ उसकी लंबाई में नहीं, बल्कि गहराई में छिपा होता है . इसलिए आज हम सुषमा स्वराज की जिंदगी का कुछ गहरे अर्थों में विश्लेषण करेंगे .
आज मन बहुत दुखी है . सुषमा स्वराज के निधन के बाद पूरा देश शोक में है. . देश में शोक की ऐसी घड़ियां कई वर्षों में एक बार आती हैं . क्योंकि सुषमा जैसा प्यार बहुत कम लोगों को मिलता है. वो सबकी प्रिय थीं और सर्वमान्य थीं . दुनिया के हर ग्रंथ में लिखा है कि मृत्यु एक अटल सत्य है. जो दुनिया में आया है, उसे एक न एक दिन जाना ही होगा . लेकिन जब सुषमा स्वराज जैसे लोग दुनिया से जाते हैं, तो मौत से नफरत होती है, उस पर क्रोध आता है .
लेकिन सुषमा स्वराज ऐसी नेता थीं जो क्रोध की नहीं कर्म की राजनीति किया करती थीं . अपनी जिंदगी के आखिरी पलों में लोग अक्सर डर का शिकार हो जाते हैं, उन्हें कुछ होश नहीं रहता . लेकिन सुषमा स्वराज आखिरी पलों तक देश के बारे में सोच रही थीं .
राज्य सभा के बाद लोककसभा में भी Article 370 को हटाए जाने का प्रस्ताव पारित होने के बाद.. सुषमा स्वराज ने कल शाम 7 बजकर 23 मिनट पर एक ट्वीट किया था . इस ट्वीट में उन्होंने कहा था कि वो अपने जीवन में इस दिन को देखने की प्रतीक्षा कर रही थीं . यानी निधन से कुछ घंटे पहले तक भी.. उनके दिल और दिमाग पर देशहित छाया हुआ था .
आज सुबह प्रधानमंत्री मोदी ने जब सुषमा स्वराज के घर जाकर उन्हें श्रद्धांजलि दी, तब उनकी आंखों में आंसू आ गए . मोदी भावुक हो गए थे . और उनकी भावनाएं उनके चेहरे पर दिखाई देने लगी थीं .
सुषमा स्वराज कौन थीं? भारत के भविष्य में, जब इतिहास का ये सवाल पूछा जाएगा, तो जवाब देने में बहुत परेशानी होगी . क्योंकि वो विदेश मंत्री थीं, कद्दावर नेता थीं, दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री थीं, सांसद थी, बच्चों का ख्याल रखने वाली मां थीं, कुशल गृहणी थीं, और उनका Sense Of Humor भी बहुत शानदार था . उनके व्यक्तित्व को कम शब्दों में समेटना हो तो हम ये कहेंगे कि वो भारत की महिला शक्ति का सबसे बड़ा चेहरा थीं .
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की एक कविता थी . जिसमें वो कहते हैं .
जला अस्थियाँ बारी-बारी
चिटकाई जिनमें चिंगारी,
जो चढ़ गये पुण्यवेदी पर
लिए बिना गर्दन का मोल
कलम, आज उनकी जय बोल.
यानी जो लोग देशहित के बारे में सोचते सोचते आखिरी सांस लेते हैं . लिखने वालों को अपनी कलम से उनकी जय बोलनी चाहिए . सुषमा स्वराज भी ऐसी ही राष्ट्रवादी नेता थीं . जिनकी जय जयकार आज देश में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में हो रही है .
सुषमा स्वराज के आखिरी दर्शनों के लिए आज हज़ारों की संख्या में लोग मौजूद थे . उनके पार्थिव शरीर को पहले उनके घर पर रखा गया, फिर बीजेपी मुख्यालय में तमाम बड़ी हस्तियों ने सुषमा स्वराज को आखिरी विदाई और शाम करीब साढ़े 4 बजे पूरे राजकीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार कर दिया गया .
अक्सर ये कहा जाता है कि किसी की शख्सियत का अंदाज़ा लगाना है, तो उसकी अंतिम यात्रा देख लीजिए . अगर नेता, आम जनता के क़रीब होता है, तो उसे लोगों से कितना प्यार मिलता है, ये अंतिम यात्रा से पता चलता है . सुषमा स्वराज एक सर्वमान्य नेता थीं . जिनका सम्मान उनकी अपनी पार्टी के साथ साथ विपक्ष भी करता था .
इसीलिए उनके अंतिम दर्शन के लिए विपक्ष के नेता भी आये . एक दिन के लिए ही सही, लेकिन सुषमा स्वराज ने पक्ष और विपक्ष की राजनीति करने वाले नेताओं को एकता के सूत्र में बांध दिया .
शब्दों का उचित इस्तेमाल करने में सुषमा स्वराज को महारत हासिल थी. उनके लिए शब्द जब भावनाओं का रूप लेते थे तो वो किसी मां की तरह लोगों की मदद करती थीं . लेकिन जब उनके शब्द ज़ुबान पर चढ़ते थे, तो तीखे भाषण बनकर विरोधियों को घायल कर देते थे . उनकी शख्सियत और राजनीति पर हमने आज एक ख़ास विश्लेषण तैयार किया है, जिसे हम आपको आगे दिखाएंगे. लेकिन उससे पहले सुषमा स्वराज की कुछ उपलब्धियां आपको बता देते हैं .
सुषमा स्वराज दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री थीं . वो बीजेपी से मुख्यमंत्री बनने वाली पहली महिला थीं . वो हरियाणा में सबसे कम उम्र की महिला मंत्री बनी थीं . सुषमा स्वराज बीजेपी की पहली महिला राष्ट्रीय प्रवक्ता भी थीं . सुषमा स्वराज 5 साल तक विदेश मंत्री रहने वाली पहली महिला भी थीं .
मशहूर हिंदी फिल्म आनंद का एक डायलॉग है कि जिंदगी लंबी नहीं बड़ी होनी चाहिए . सुषमा स्वराज का निधन सिर्फ 67 साल की उम्र में हो गया..उम्र के लिहाज़ से उनका जीवन बहुत लंबा नहीं था, लेकिन उनकी जिंदगी में बड़प्पन बहुत था, ममता बहुत थी और एक Iron Lady वाले सारे गुण भी उनमें थे . भारत में एक राजनेता के तौर पर और दुनिया में एक Diplomat के तौर पर उनका कद बहुत बड़ा था .
आज के दौर में राजनेता अपनी सहूलियत के हिसाब से दल बदल लेते हैं..लेकिन सुषमा स्वराज हमेशा पार्टी के साथ खड़े रहने वाली नेता थीं . सुषमा मानती थीं कि जिस पार्टी को अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी जैसे नेताओं ने यहां तक पहुंचाया है, उसके साथ बने रहना और उसे आगे बढ़ाना उनका सबसे बड़ा कर्तव्य है . अटल जी के साथ ही 91 साल के लाल कृष्ण आडवाणी को भी सुषमा आखिरी क्षणों तक सम्मान देती रहीं . उन्हें पहली बार अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में ही कैबिनेट मंत्री बनाया गया था . ये अजब संयोग है कि अटल जी की मृत्यु भी आज से एक साल पहले अगस्त के महीने में ही हुई थी . सुषमा स्वराज की अंतिम विदाई को अगर अटल जी की पंक्तियों में बयां किया जाए.. तो वो पंक्तियां होंगी...
“मौत की उमर क्या है? दो पल भी नहीं,
ज़िन्दगी सिलसिला, आज कल की नहीं
मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूं,
लौटकर आऊँगा, कूच से क्यों डरूं?”
सुषमा स्वराज के निधन के साथ ही आज आपातकाल के दौर की भी याद आ रही है.
Emergency के दौरान जॉर्ज फर्नांडिस और उनके साथियों को गिरफ्तार कर लिया गया था. 1977 के चुनाव के लिए जॉर्ज फर्नांडिस के Nomination Papers भरने के लिए सुषमा स्वराज बिहार के मुज़्जफरपुर चली गईं थीं. Emergency के दौरान राजनीतिक क़ैदियों के लिए काला कोट पहने किसी व्यक्ति को अपने पास देखना बहुत बड़ी राहत थी. सुषमा स्वराज और उनके पति स्वराज कौशल दोनों वकील थे. और उन्होंने जॉर्ज फर्नांडिस के पक्ष में Baroda Dynamite Case लड़ा था. उस वक्त सुषमा स्वराज ने जॉर्ज फर्नांडिस के लिए एक नारा दिया था. और वो नारा था, 'जेल का फाटक टूटेगा, जॉर्ज हमारा छूटेगा'...और कहा जाता है, कि यहीं से उनके राजनीतिक करियर का उदय हुआ.
लाल कृष्ण आडवाणी 91 साल के हैं . सुषमा स्वराज उनसे 24 साल छोटी थीं . आप सोचिए लाल कृष्ण आडवाणी के लिए सुषमा स्वराज की अंतिम यात्रा में शामिल होना कितना दुखदायी रहा होगा . अटल और आडवाणी जैसे नेताओं ने सुषमा स्वराज को राजनीति में उनकी जगह दिलाई, और आज BJP वरिष्ठ नेताओं की आंखों के सामने...सुषमा हमेशा के लिए विदा हो गईं .
सुषमा स्वराज ने इस बार लोकसभा चुनाव नहीं लड़ा था . इसके पीछे उनका खराब स्वास्थ था . लेकिन बिगड़ती सेहत के बावजूद वो पार्टी के साथ हर वक्त मौजूद रहीं . उनके कुछ आखिरी Tweets भी इस बात के गवाह हैं कि उनका पार्टी से जुड़ाव कितना गहरा था . सिर्फ बीजेपी ही नहीं बल्कि भारत की राजनीति को उनकी आदत पड़ गई थी .
सुषमा स्वराज भारत की महिला शक्ती की भी पहचान थीं, उन्हें साड़ियां पहनने का बहुत शौक था और वो हर दिन के हिसाब से अलग अलग रंगों की साड़ियां पहना करती थीं . सुषमा स्वराज मंगलसूत्र भी पहनती थीं, और सिंदूर भी लगाती थीं . करवा चौथ का त्योहार उन्हें बहुत पसंद था . उन्होंने डांस करना भी बहुत अच्छा लगता था . आप कह सकते हैं कि भारतीय परंपराओं को निभाना बहुत अच्छे से आता था .
आज भारतीय संस्कृति की इस पहचान को कुछ लोग पिछड़ेपन से जोड़ लेते हैं . लेकिन सुषमा स्वराज ने बता दिया कि परंपराएं बाधा नहीं होतीं, बल्कि आपके व्यक्तित्व की पहचान होती हैं. और उसे मजबूत बनाती हैं .
आज का युग... डिजिटल कलियुग है.. इस दौर में हर भावना को Emojis से व्यक्त किया जाता है. लोग Facebook पर ही हंस देते हैं, फेसबुक पर ही रो देते हैं.. सारे सुख और दुख, उंगलियों के एक Touch से सैकड़ों किलोमीटर दूर पहुंच जाते हैं. अब शोक सभाएं भी सोशल मीडिया पर ही हो जाती हैं. ऐसे डिजिटल कलियुग में सुषमा स्वराज की अंतिम यात्रा हैरान करती है. इस यात्रा में डिजिटल आंसू नहीं थे. बल्कि असली आंसू बह रहे थे. ये अंतिम यात्राओं के छोटे होने का युग है, क्योंकि किसी के पास समय नहीं है. लेकिन आज समय रुक गया था. क्योंकि आज हर कोई सुषमा जी को अलविदा कह रहा था .
सुषमा स्वराज की मौजूदगी से उनके ना रहने तक, भारत की राजनीति को, भारत की विदेश नीति को उनकी आदत पड़ गई थी.
ज़माना चाहे किसी का भी हो. पक्ष हो या विपक्ष हो. वो हर दल की प्रिय नेता थीं. जीवन के अंतिम क्षणों में वो Retirement वाली ज़िन्दगी जी रही थीं. लेकिन उनके Retirement वाले जीवन में भी, उनकी मौजूदगी को देश का हर नागरिक क़रीब से महसूस कर रहा था. क्या आपने कभी सोचा है, कि एक नेता की सबसे बड़ी पूंजी क्या होती है ? अगर हर दल का नेता, सरकारी अफसर, Diplomats, और देश की आम जनता किसी के होने से खुश है. और किसी के जाने से दुखी है, तो समझ लीजिए उसने लोगों पर कितना गहरा असर छोड़ा होगा. सार्वजनिक जीवन में यही थी सुषमा स्वराज की कमाई.
आम जनता की नज़रों में सुषमा स्वराज होने का मतलब क्या है, ये हम आपको आगे बताएंगे. पहले ये देखिए, कि बतौर विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने कश्मीर नीति से लेकर कुलभूषण जाधव के मुद्दे तक किस प्रकार अपने सौम्य व्यवहार से आक्रामक कूटनीति की.
विदेश मंत्री रहते हुए जिस भी मंच पर पाकिस्तान ने कश्मीर के मुद्दे को उछालने की कोशिश की, उस मंच पर सुषमा स्वराज ने अपना दुर्गा वाला रुप दिखाया. सितंबर 2016 में सयुंक्त राष्ट्र में दिए गए उनके भाषण की चर्चा आज भी होती है. उस वक्त उनके भाषण का ज़िक्र पूरी दुनिया में हुआ था. यहां तक कि देश के विपक्ष ने भी सुषमा स्वराज की तारीफ की थी. तीन साल पहले दुनिया के सबसे बड़े मंच पर दिया गया भाषण हिंदी में था. जिसमें पाकिस्तान को सीधी चेतावनी देते हुए सुषमा स्वराज ने कहा था, कि 'कश्मीर भारत का हिस्सा था, भारत का हिस्सा है और भारत का हिस्सा रहेगा'. आज उस भाषण का एक छोटा सा हिस्सा देखना ज़रुरी है.
आज हमें सुषमा स्वराज के 18 साल पुराने उस Interview की भी याद आ रही है. जब वो Zee News के Studio आई थीं. दिसम्बर 2001 में देश की संसद पर आतंकवादी हमला हुआ था. उस हमले को मैंने काफी क़रीब से देखा था. क्योंकि, सबकुछ मेरी आंखों के सामने हुआ था. सुषमा स्वराज उस वक्त देश की सूचना एवं प्रसारण मंत्री हुआ करती थीं. और शाम को संसद भवन से वापस लौटने के बाद मैंने उनका एक Interview किया था. आज संसद पर हुए... सबसे बड़े हमले की कहानी..खुद सुषमा स्वराज के अनुभव के आधार पर सुनने का भी दिन है.
United Nations के मंच से पाकिस्तान को Expose करने की बात हो. या संसद हमले की पीड़ा को महसूस करने की बात हो. अपने राजनीतिक जीवन में सुषमा जी ने सबकुछ देखा. लेकिन एक विदेश मंत्री के तौर पर उन्होंने देश के लिए जो कुछ भी किया, उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता.
2014 से 2017 के बीच विदेशों में फंसे एक लाख से ज़्यादा भारतीय नागरिकों को सुरक्षित देश वापस लाया गया. इसमें विदेश मंत्रालय की बड़ी भूमिका थी.
यमन में हुए गृह युद्ध के दौरान भारत के विदेश मंत्रालय ने क़रीब 2 हज़ार विदेशी नागरिकों को भी सुरक्षित बाहर निकाला.
उनके कार्यकाल में विदेश मंत्रालय द्वारा 250 से ज़्यादा नए Passport सेवा केंद्र खोले गए. पहले सिर्फ 77 Centers हुआ करते थे.
सुषमा स्वराज के कार्यकाल में भारत Shanghai Cooperation Organisation का सदस्य बना. जो बहुत बड़ी बात थी.
The Wall Street Journal ने सुषमा स्वराज को भारत का सबसे प्रिय नेता बताया. और कहा कि वो बिना थके अपने देश के लोगों के लिए काम करती हैं.
उनके कार्यकाल में भारत को तीन, Export Control Regime की सदस्यता मिली.
इसके अलावा इसी वर्ष मार्च में सुषमा स्वराज Organisation of Islamic Co-operation के विदेश मंत्रियों की बैठक में जाने वाली भारत की पहली विदेश मंत्री बनी. पाकिस्तान के विरोध के बावजूद इस्लामिक देशों के सबसे बड़े संगठन ने सुषमा स्वराज को बतौर Guest of Honour आमंत्रित किया था.
सुषमा स्वराज के लिए निजी तौर पर सबसे बड़ी जीत कुलभूषण जाधव केस को कहा जाएगा. क्योंकि, इस मामले में उन्होंने खुद संज्ञान लिया. और इस केस को अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में ले जाने का फैसला किया. इसके लिए उन्होंने हरीश साल्वे की मदद ली. जिन्होंने सिर्फ 1 रुपये की फीस लेकर International Court Of Justice में भारत को जीत दिलाई. विडंबना देखिए, कल ही हरीश साल्वे ने सुषमा स्वराज से बात की थी. और सुषमा जी ने उन्हें अपने घर आकर 1 रुपये की फीस स्वीकार करने को कहा था. लेकिन, नियति को कुछ और ही मंजूर था.
ज़िंदगी एक खूबसूरत झूठ है. और मौत एक पीड़ादायक सच. इस सच्चाई को स्वीकार करना बहुत मुश्किल है, कि सुषमा स्वराज अब हमारे बीच नहीं हैं. लेकिन मृत्यु का दूसरा पहलू ये भी है, कि वो मृत व्यक्ति की यादों को एक बार फिर ताज़ा कर देती है. सुषमा स्वराज एक प्रखर वक्ता के रूप में हमेशा लोगों के दिलों में ज़िंदा रहेंगी. संसद में दिये गये उनके यादगार भाषणों को हमेशा याद किया जाएगा. आज हमने Zee News की लाइब्रेरी की मदद से सुषमा स्वराज के जीवन के इसी हिस्से को जीने की कोशिश की है.
अंतिम दिनों में सरकारी बंगला छोड़ने के बाद सुषमा स्वराज अपने घर में रहा करती थीं. लेकिन, उनका एक Digital Address भी था. जिसका पता था, @Sushma Swaraj....ये Twitter पर सुषमा स्वराज का Digital घर था. और इस घर में 1 करोड़ 32 लाख लोग रहते थे. यानी ये सभी लोग Twitter पर सुषमा स्वराज के Followers थे.
2018 में वो ट्विटर पर सबसे ज्यादा फॉलो की जाने वाली दुनिया की महिला नेता थीं. इस मामले में उनकी ओवर ऑल रैंकिंग 7 थी . हालांकि, सुषमा स्वराज खुद किसी को Follow नहीं करती थीं. लेकिन उनके निधन के बाद सुषमा स्वराज का Digital घर अब खाली हो गया है. उनका Digital Address वीरान हो गया है. लेकिन इस वीराने में भी अगर आप उनके Twitter Handle पर जाएंगे, तो आपको सुषमा स्वराज की मुस्कुराती हुई तस्वीर दिखाई देगी. हालांकि, ये तस्वीर और उनका Twitter Account कब तक Active रहेगा, कहना मुश्किल है.
क्योंकि Twitter ऐसे किसी Option की जानकारी नहीं देता, जिससे किसी व्यक्ति के निधन के बाद उसके Twitter Account को सहेज कर रखा जाए. या उसे यादगार बना दिया जाए. मृत व्यक्ति के परिवार के सदस्य अगर दस्तावेज़ों के साथ Twitter से उसका Account, De-Activate करने के लिए कहे, तो Twitter पर ये सुविधा उपलब्ध है.