ZEE जानकारी: भारत में अब एक उद्योग बन गया है ट्यूशन
Advertisement

ZEE जानकारी: भारत में अब एक उद्योग बन गया है ट्यूशन

 एक अंतर्राष्ट्रीय रिसर्च में ये पता चला है कि भारत के बच्चे ट्यूशन पढ़ने के मामले में दुनिया में सबसे आगे हैं.

ZEE जानकारी: भारत में अब एक उद्योग बन गया है ट्यूशन

अब हम भारत की शिक्षा व्यवस्था और देश के हर परिवार से जुड़ी दो ख़बरों का विश्लेषण करेंगे. पहली ख़बर ये है कि सरकार ने दसवीं कक्षा तक के बच्चों के भारी भरकम School Bags का वज़न बहुत हल्का कर दिया है. अब ये तय कर दिया गया है कि स्कूल Bags का वज़न 5 किलो से ज़्यादा नहीं होगा. ये ख़बर पहली कक्षा से लेकर 10वीं कक्षा तक के 24 करोड़ छात्रों के लिए एक बहुत बड़ी खुशख़बरी है. 

और दूसरी ख़बर ये है कि एक अंतर्राष्ट्रीय रिसर्च में ये पता चला है कि भारत के बच्चे ट्यूशन पढ़ने के मामले में दुनिया में सबसे आगे हैं. आपने तरह तरह के उद्योंगों के बारे में सुना होगा लेकिन हमारे देश में अब ट्यूशन भी एक उद्योग बन गया है. और ये उद्योग ज़बरदस्त मुनाफ़े में चल रहा है.

लेकिन पहले हम बच्चों के भारी भरकम स्कूल Bags की बात करेंगे. हमारे देश के बच्चे स्कूल बैग के भारी बोझ की वजह से हमेशा तकलीफ में रहते हैं. बच्चे किताबों को इस तरह ढोते हैं जैसे वो कोई मज़दूर हों. लेकिन अब ऐसा नहीं होगा मानव संसाधन विकास मंत्रालय के नये नियमों के मुताबिक पहली और दूसरी कक्षा तक स्कूल बैग का वजन डेढ़ किलोग्राम से ज़्यादा नहीं होना चाहिए.  

तीसरी कक्षा से पांचवी कक्षा तक के लिए ये सीमा 2 से 3 किलोग्राम है

छठी और सातवीं कक्षा के लिए स्कूल बैग का वजन 4 किलोग्राम से ज़्यादा नहीं होना चाहिए

आठवीं और नौंवी कक्षा में पढ़ने वालों के लिए साढ़े 4 किलोग्राम की सीमा है 

और दसवीं कक्षा में पढ़ने वाले छात्रों के स्कूल बैग का वजन 5 किलोग्राम से ज़्यादा नहीं होना चाहिए

ये भी तय किया गया है कि पहली और दूसरी कक्षा में पढ़ने वाले बच्चों को होमवर्क नहीं दिया जाएगा और इन्हें सिर्फ़ गणित और भाषाओं से जुड़े हुए विषय ही पढ़ने होंगे. इस नियम की वजह से स्कूल बैग में किताबों का वज़न बहुत कम हो जाएगा. 

वैसे Assocham के एक सर्वे के मुताबिक देश के स्कूलों में पढ़ने वाले 13 वर्ष की आयु के 68 प्रतिशत बच्चे....पीठ दर्द समस्या से पीड़ित हैं .

Children's School Bag Act 2006 के मुताबिक स्कूल जाने वाले किसी भी छात्र के बैग का वज़न उसके शरीर के भार का सिर्फ 10 प्रतिशत या उससे भी कम होना चाहिए लेकिन देश के 88 प्रतिशत बच्चे अपने शरीर के वज़न के 45 प्रतिशत वज़न के बराबर का बोझ स्कूल बैग के रूप में उठाते हैं

भारत में पिछले 40 वर्षों से इस समस्या पर चर्चा की जा रही थी लेकिन स्कूलों की मुनाफे वाली मानसिकता के चक्कर में ये समस्या बहुत नीचे दब गई थी लेकिन अब इसका समाधान निकाल लिया गया है . हालांकि भारत में नियमों का पालन करवाना सबसे कठिन काम है . 

अब बात करते हैं देश की tuition industry यानी ट्यूशन उद्योग की . आपको जानकर हैरानी होगी कि पूरी दुनिया के मुक़ाबले भारत में सबसे ज़्यादा छात्र tuition पढ़ने जाते हैं . यानी भारत के छात्रों के कंधों पर स्कूल बैग के साथ साथ ट्यूशन का बोझ भी मौजूद है . 

दुनियाभर के देशों के Education system को समझने के लिए एक सर्वे किया गया जिसके मुताबिक भारत के हर 10 में से करीब 6 छात्र स्कूल या कॉलेज में पढ़ने के अलावा, अलग से ट्यूशन लेते हैं . जबकि दूसरे देशों में ये आंकड़ा 10 में से 4 छात्रों का है . आपको जानकर हैरानी होगी कि अमेरिका, सऊदी अरब और Argentina में 10 में से सिर्फ़ एक छात्र ट्यूशन लेता है . यानी स्कूल की पढ़ाई का स्तर ऐसा होता है.. कि ट्यूशन की ज़रूरत नहीं पड़ती

भारत में सबसे ज़्यादा छात्र mathematics यानी गणित को सबसे मुश्किल विषय मानते हैं . देश के करीब 74 प्रतिशत छात्र गणित की ट्यूशन लेते हैं . ये एक अजीब विरोधाभास है कि जिस शून्य की खोज भारत में हुई थी उस देश के बच्चे गणित से घबराते हैं . इसका दूसरा पहलू ये भी है भारत के ज़्यादातर माता-पिता अपने बच्चों की पढ़ाई को लेकर बहुत चिंतित हैं उन्हें लगता है कि ट्यूशन की मदद से ही बच्चे ज़्यादा नंबर ला सकते हैं और सफल हो सकते हैं. इसलिए वो बच्चों की पढ़ाई से कोई समझौता नहीं करना चाहते. 

Assocham के एक सर्वे के मुताबिक भारत में प्राइवेट ट्यूशन का बाज़ार करीब डेढ लाख करोड़ रूपये का है . 

स्कूली शिक्षा से लेकर डॉक्टर और इंजीनियर बनने की परीक्षा तक... हर क्षेत्र में ट्यूशन और कोचिंग का दबदबा है . भारत में ये धारणा बन चुकी है कि छोटी-मोटी नौकरी से लेकर IAS बनने तक का सपना.. बिना कोचिंग के पूरा नहीं किया जा सकता.  यानी जिन बच्चों पर भारत के भविष्य के निर्माण का ज़िम्मा है.. वो स्कूल बैग और ट्यूशन के बोझ से दबे हुए हैं. 

ये हमारे देश की कमज़ोर शिक्षा व्यवस्था का परिणाम है जिसने बच्चों को पढ़ाई के नाम पर बोझ डालने का काम किया है . एक दूसरे से आगे निकलने चक्कर में वो ज़िंदगी रेस में पिछड़ रहे हैं . उनके पास शिक्षा तो है लेकिन ज्ञान की बहुत कमी हैं इसलिए भारत की शिक्षा व्यवस्था को Smart Training देनी ज़रूरी है . 

दुनिया में ऐसे कई देश हैं जिन्होंने अपने बच्चों के कंधों से स्कूल बैग का बोझ कर दिया है . डिज़िटल क्रांति के दौर में ये देश अपने बच्चों को किताबों के बजाए कंप्यूटर, टैबलेट और स्मार्ट फोन से पढ़ाते हैं . अमेरिका के स्कूलों में बच्चों को पढ़ाने के लिए 75 प्रतिशत Classrooms में कंप्यूटर और 74 प्रतिशत Classrooms में स्मार्ट फोन का इस्तेमाल किया जाता है. 
चीन के 50 प्रतिशत Classrooms में बच्चों को पढ़ाने के लिए Tablet का इस्तेमाल किया जाता है 

लेकिन भारत में आज भी करीब 70 प्रतिशत Classroom सिर्फ़ Blackboard के भरोसे चल रहे हैं . आज हमने देश की शिक्षा व्यवस्था को आईना दिखाने के लिए अमेरिका की शिक्षा व्यवस्था की मदद ली है . कुछ समय पहले ज़ी न्यूज़ की टीम ने अमेरिका के कैलिफॉर्निया में जाकर.. वहां के सरकारी स्कूलों की Smartness का वीडियो विश्लेषण किया था... इस विश्लेषण के ज़रिए हमनें देश को बताया था कि कैसे अमेरिका में स्कूल जाने वाले बच्चे भारी भरकम बस्तों का वज़न नहीं उठाते..बल्कि वहां शिक्षा के आधुनिक तौर तरीकों से देश के भविष्य को मजबूत बनाया जाता है 

Trending news