ZEE जानकारी: सफलता के शिखर पर पहुंचे इंसान के 'अकेलेपन' और 'अंत' की कहानी
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ZEE जानकारी: सफलता के शिखर पर पहुंचे इंसान के 'अकेलेपन' और 'अंत' की कहानी

वीजी सिद्धार्थ के मामले में एक बड़ी कंपनी चलाने वाला व्यक्ति मानसिक रुप से टूट गया. एक ऐसा व्यक्ति, जो क़ामयाबी की ऊंचाइयों पर गया. उसने हज़ारों लोगों को नौकरी दी. लेकिन वही व्यक्ति अपने जीवन से हार मान गया.

ZEE जानकारी: सफलता के शिखर पर पहुंचे इंसान के 'अकेलेपन' और 'अंत' की कहानी

अब हम CCD के मालिक वीजी सिद्धार्थ और उनकी आत्महत्या से जुड़ी ख़बर की बात करेंगे. वीजी सिद्धार्थ की कथित आत्महत्या, बहुत सारे लोगों को सिर्फ व्यापार जगत की ख़बर लग रही है. एक औद्योगिक घराने की ख़बर लग रही है. लेकिन ये उससे कहीं ज़्यादा बड़ी और महत्वपूर्ण ख़बर है.

ये ख़बर सफलता के शिखर पर पहुंचे इंसान के अकेलेपन की कहानी है. कामयाबी के बाद मिली नाकामयाबी की कहानी है. और इस कहानी में देश के हर नागरिक के लिए कुछ ना कुछ छिपा हुआ है. क्योंकि, सफलता के बाद अगर किसी को असफलता मिल जाए, तो उससे कैसे Deal किया जाए ? ये बहुत कम लोग समझ पाते हैं. हमारे देश में अक्सर ये कहा जाता है, कि मन के हारे हार है.. मन के जीते जीत. यानी मन की स्थिति से ही किसी व्यक्ति की जीत या हार का फैसला होता है. लेकिन जब लोगों का मन ही बीमार होगा, तो वो जीवन में जीत के बारे में कैसे सोच सकते हैं ?

वीजी सिद्धार्थ शायद जीवन के इसी कड़वे अनुभव को महसूस कर रहे थे. और उन्होंने आत्महत्या जैसा कदम उठाने का फैसला ले लिया. कल विश्लेषण के दौरान हमने उम्मीद जताई थी, कि वो सकुशल होंगे. और जल्द ही उन्हें सुरक्षित ढूंढ निकाला जाएगा. लेकिन, हमें ये कहते हुए अफसोस हो रहा है, कि वीजी सिद्धार्थ जीवित नहीं लौटे. 30 घंटों के Search Operation के बाद आज उनके पार्थिव शरीर को नेत्रावती नदी से बरामद कर लिया गया. 

सिद्धार्थ द्वारा आत्महत्या जैसा कदम उठाने के बाद इस पर राजनीति शुरु हो गई है. अलग-अलग राजनीतिक दल के नेता सरकार और सरकारी एजेंसियों को दोषी ठहरा रहे हैं. और ये कह रहे हैं, कि Income Tax Department, ED और CBI जैसी संस्थाओं का दुरुपयोग करके, औद्योगिक घरानों को डराया जा रहा है. उद्योगपतियों को आत्महत्या जैसा कदम उठाने के लिए मजबूर किया जा रहा है. लेकिन इन सबके बीच कोई मूल समस्या की बात नहीं कर रहा.

क्योंकि, वीजी सिद्धार्थ के मामले में एक बड़ी कंपनी चलाने वाला व्यक्ति मानसिक रुप से टूट गया. एक ऐसा व्यक्ति, जो क़ामयाबी की ऊंचाइयों पर गया. उसने हज़ारों लोगों को नौकरी दी. लेकिन वही व्यक्ति अपने जीवन से हार मान गया. अंग्रेज़ी का एक बड़ा मशहूर कथन है, It's Lonely At The Top....यानी आप सफलता की जितनी ऊंचाई पर पहुंचते हैं, उतने ही अकेले हो जाते हैं.

चुनौतियों से अकेले संघर्ष करने की वजह से निर्णय लेने की क्षमता और आत्मविश्वास में बढ़ोतरी होती है. लेकिन कई बार अकेले निर्णय लेने की वजह से मानसिक थकान भी महसूस होती है. और लोग अकेलेपन के भी शिकार हो जाते हैं. इसलिए, आज हमें वीजी सिद्धार्थ जैसे लोगों के दिमाग में झांकने की ज़रुरत है. ऐसे लोग आत्महत्या जैसा कदम क्यों उठाते हैं ? इसे समझने के लिए हमें ऐसे लोगों के दिमाग का DNA टेस्ट करना ही होगा. 

आपने नोट किया होगा कि रोज़मर्रा की ज़िंदगी में एक सवाल अक्सर पूछा जाता है कि 'कैसे हैं आप' या 'क्या हाल चाल हैं' ? और इस सवाल का एक ही जवाब मिलता है.....बढ़िया हैं.... या ठीक हैं. लेकिन ऐसा जवाब देने वालों को खुद से ये पूछना चाहिए कि क्या वो सचमुच ठीक हैं या फिर उन्हें Depression ने जकड़ लिया है ? अक्सर लोग एक दूसरे से ये कहते हैं कि आजकल Life में बहुत Tension है. लेकिन कोई इस वाक्य को गंभीरता से नहीं लेता और इस तनाव को समझ ही नहीं पाता.

वीजी सिद्धार्थ के मामले में बिल्कुल ऐसा ही हुआ है. ये Coffee और अकेलेपन का Deadly Combination है. जिसमें एक Entrepreneur है. Coffee है. और उसकी तन्हाई है. और इन तीनों ही बातों का ज़िक्र उस चिट्ठी में किया गया है, जो वीजी सिद्धार्थ ने आत्महत्या से पहले लिखी थी. हम इसे सीधे तौर पर Suicide Note तो नहीं कह सकते. लेकिन ये एक प्रकार का Suicide Note ही है. जिसमें सिद्धार्थ ने एक कारोबारी के तौर अपनी नाकामी का ज़िक्र करते हुए दुनिया से जाने का फैसला कर लिया. अक्सर Suicide Note में... मरने वाला व्यक्ति अपनी मौत के लिए किसी और को ज़िम्मेदार ठहरा कर जाता है.

लेकिन वीजी सिद्धार्थ की चिट्ठी पढ़कर ऐसा लगता है, कि उन्होंने अपनी मौत के लिए खुद को ज़िम्मेदार ठहराया है. अगर आप भी इस चिट्ठी को पढ़ेंगे, तो इसमें आपको Victim Card वाली सोच दिखाई देगी. यानी जिस चीज़ के लिए आप ज़िम्मेदार नहीं होते, आप उसकी भी ज़िम्मेदारी ले लेते हैं. अब मैं आपको इस चिट्ठी के कुछ अंश पढ़कर सुनाना चाहता हूं. 

इस चिट्ठी को पढ़ने के बाद एक बात साफ हो जाती है, कि सिद्धार्थ ने किसी से कोई जानकारी शेयर नहीं की. अपने परिवार से भी नहीं. चिट्ठी में उन्होंने Today I Gave Up और मुझे माफ कर दो जैसी कमज़ोर बातें कहीं. उन्होंने इन शब्दों का इस्तेमाल उस वक्त किया, जब वो अच्छी तरह जानते थे, कि उनकी स्थिति इतनी भी बुरी नहीं थी. उनके ऊपर जितना भी कर्ज़ था, उसे वो आसानी से चुका सकते थे. कोई दिक्कत नहीं थी. और अपनी चिट्ठी में उन्होंने ये बात भी कही. लेकिन जब कोई व्यक्ति पूरी तरह हताश और निराश हो जाता है, तो उसके सोचने और समझने की शक्ति ख़त्म हो जाती है.

वीजी सिद्धार्थ के केस में मामला इतना साधारण नहीं है. वो एक Entrepreneur थे. बड़ी कंपनी चला रहे थे. और अगर कोई व्यक्ति किसी बड़ी कंपनी का मालिक है, तो उसके द्वारा कहा गया एक-एक शब्द हज़ारों-करोड़ रुपये का होता है. उसके मुंह से निकला एक-एक शब्द शेयर मार्केट से जुड़ा होता है. इस मामले में भी बिल्कुल ऐसा ही हुआ. क्योंकि सिद्धार्थ के ग़ायब होने की ख़बर आते ही, CCD के शेयर्स में 36 फीसदी की गिरावट हुई. पिछले दो दिनों में CCD के शेयर्स के भाव 193 रुपये से गिरकर 123 रुपये पर आ गए. 

आज हमने वीजी सिद्धार्थ की इसी चिट्ठी को मनोविज्ञान के नज़रिये से समझने की कोशिश की है. और इसके लिए हमने एक मनोचिकित्सक से बात की है. इनकी बातें सुनकर आप समझ जाएंगे, कि आत्महत्या का निर्णय लेने से पहले सिद्धार्थ की मनोदशा क्या थी ?

Harvard Business Review ने वर्ष 2012 में एक सर्वे किया था. जिसमें अलग-अलग कंपनियों के 50 फीसदी CEOs ने स्वीकार किया था, कि वो अपने पद पर रहते हुए अकेलापन महसूस करते हैं. इसी सर्वे में 61 प्रतिशत CEOs ने माना था, कि अकेलेपन की वजह से उनके काम पर बुरा प्रभाव पड़ता है. 

वीजी सिद्धार्थ शायद इसी अकेलेपन के शिकार थे. उन्होंने किसी को नहीं बताया कि वो अकेले हैं. Depressed हो चुके हैं. और इसके बाद उन्होंने आत्महत्या जैसा कदम उठा लिया. अपने अंतिम क्षणों में वो कितने अकेले थे, इसका अंदाज़ा उनके चार Phone Calls से समझा जा सकता है. जो उन्होंने अपने मित्र जावेद परवेज़ को किया था. जावेद परवेज़ नाम के व्यक्ति ने कहा, कि सोमवार सुबह आए ज़्यादातर Calls व्यापार से संबंधित थे. लेकिन सोमवार शाम 6 बजकर 6 मिनट पर आया 58 सेकेंड का Phone Call काफी परेशान करने वाला था. क्योंकि, उस वक्त सिद्धार्थ काफी Disturbed लग रहे थे. और शायद ये उनकी आखिरी Call थी. 

अब सवाल ये है, कि जो लोग किसी कंपनी को चला रहे होते हैं. या सफलता की बुलंदियों पर होते हैं. वो खुद को इतना अकेला महसूस क्यों करते हैं ? आज हमने इसे समझने की भी कोशिश की है.

किसी कंपनी या संस्थान में काम करने वाले कर्मचारियों को अगर कोई समस्या आती है, तो वो उस समस्या के समाधान के लिए अक्सर अपने Leader के पास जाते हैं. जो उनका मार्गदर्शन करते हैं. लेकिन, सफलता के शिखर पर बैठे पुरुष या महिला के पास किसी को Approach करने की सुविधा नहीं होती. इसलिए वो काफी दबाव महसूस करते हैं.

शिखर पर बैठे लोग निराशा या अकेलेपन को गंभीरता से नहीं लेते. ऐसे लोगों में से सिर्फ 1 प्रतिशत लोग मदद लेते हैं. जबकि 99 फीसदी लोग मौन रहकर अंदर ही अंदर घुटते रहते हैं.

किसी कंपनी का CEO या Co-Owner होने के नाते ऐसे लोगों पर हर वक्त कंपनी को आगे बढ़ाने का दबाव रहता है. 

एक बात ये भी है, कि ज़्यादातर कंपनियों के Founders को लोगों की समस्याओं का समाधान करने का तरीका नहीं पता होता. इसकी वजह से भी उनके ऊपर Pressure बढ़ता है.

और शायद इन्हीं लोगों के लिए मशहूर वैज्ञानिक Albert Einstein ने कहा था, It Is Strange To Be Known So Universally And Yet To Be So Lonely....यानी ये बहुत अजीब है कि पूरे ब्रह्मांड में मशहूर होने के बावजूद आप बहुत अकेले हैं. 

यानी आप भले ही क़ामयाब हों. लेकिन खुद से ये सवाल ज़रुर पूछिएगा, कि क्या आप खुश हैं ? अगर आप खुश नहीं हैं, या बुरे दौर से गुज़र रहे हैं, तो आपको तत्काल प्रभाव से संवाद की ज़रुरत है. 

संवाद ना करने की वजह से, और अकेलापन महसूस करने की वजह से वीजी सिद्धार्थ ने आत्महत्या जैसा कदम उठा लिया. जिसे कतई जायज़ नहीं ठहराया जा सकता. इसी पैमाने पर अगर कल को विजय माल्या बोल दे कि वो भी Depression का शिकार है. क्योंकि ED वाले उसे परेशान कर रहे हैं. और वो भी आत्महत्या की धमकी देने लगे, तो क्या इसे जायज़ ठहराया जाएगा ? 

आत्महत्या का तो नहीं पता. लेकिन विजय माल्या ने सिद्धार्थ की चिट्ठी को अपने हित के लिए ज़रुर साध लिया है. और Tweet करके सरकारी एजेंसियों और Banks पर आरोप लगाया है. कि वो किसी को भी निराश और हताश करने के लिए उकसा सकते हैं. अपने खिलाफ हो रही कार्रवाई को विजय माल्या ने दुष्टतापूर्ण और निर्दयी बताते हुए, Victim Card खेलने की कोशिश की है.

आज के युग में अकेलापन एक महामारी की तरह पूरी दुनिया में फैल चुकी है. और भारत जैसे आध्यात्मिक देश के पास भी इस परेशानी से लड़ने का कोई कारगर उपाय नहीं है. कई बार ऐसा भी होता है कि कुछ लोग हफ्तों तक आपस में बातचीत नहीं कर पाते . 

2011 की जनगणना के मुताबिक देश में अकेले रहने वाले लोगों की संख्या करीब डेढ़ करोड थी. ये आंकड़े आज से कई वर्ष पहले के हैं. और अब इस संख्या में बहुत बड़ा अंतर आ चुका है. 

WHO के मुताबिक भारत में 20 करोड़ से ज़्यादा लोग Depression सहित अन्य मानसिक बीमारियों के शिकार हैं. लेकिन हमें लगता है कि ये आकंड़ा और भी ज़्यादा हो सकता है. क्योंकि लोग मानसिक बीमारी पर खुलकर बात नहीं कर पाते. 

भारत में मानसिक बीमारी से पीड़ित लोगों को घृणा की नज़रों से देखा जाता है.

एक रिसर्च के मुताबिक अकेलेपन से होने वाला नुकसान दिनभर में 15 सिगरेट पीने से होने वाले नुकसान के बराबर है. अकेलेपन और इससे होने वाले तनाव की वजह से सेहत पर बुरा असर पड़ता है . 

एक अन्य रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में काम करने वाले करीब 42 प्रतिशत कर्मचारी Depression और Anxiety से पीड़ित हैं.

इसी वर्ष भारत के कामकाजी लोगों पर हुए एक सर्वे में पाया गया, कि भारत में हर 5 में से 1 नौकरी पेशा व्यक्ति Workplace Depression का शिकार है. 

वर्ष 2008 में 2 प्रतिशत कामकाजी लोगों में खुदकुशी के लक्षण देखे गये थे.

लेकिन 2016 में ये संख्या बढ़कर 8 प्रतिशत हो गई. यानी लोग अपने Depression पर नियंत्रण नहीं कर पाते. और इसकी वजह से आत्महत्या जैसे विचार उनके दिमाग में आते हैं.

CCD को बुलंदियों तक ले जाने वाले वीजी सिद्धार्थ के दुखद अंत के पीछे की बड़ी वजह, उनका अकेलापन और Depression हो सकता है. अब सवाल ये है, कि इस समस्या का इलाज क्या है ? इसे समझने के लिए हम आपको द्वापर युग की एक घटना के बारे में बताना चाहते हैं. 

महाभारत के दौरान कुरूक्षेत्र के मैदान में... अर्जुन को Depression हो गया था. और उन्होंने अपनी समस्या को भगवान श्री कृष्ण के साथ Share किया था. तब श्री कृष्ण ने अर्जुन को Depression से बाहर निकालने के लिए कुछ समय तक संवाद किया. जिसे भगवत गीता कहते हैं. यहां सीखने वाली बात ये है कि अगर आप Depression और अकेलेपन की समस्या से परेशान हैं तो संवाद शुरू कीजिए. ये संवाद अपने मित्र, किसी करीबी रिश्तेदार या फिर डॉक्टर से भी किया सकता है और इसमें संकोच की कोई बात नहीं है. 

DNA में आपकी और आपके परिवार की सेहत की फ़िक्र करते हुए हम एक बात हर रोज़ कहते हैं कि
'खुश रहिए और सुरक्षित रहिए'. ऐसा कहने के पीछे हमारा मकसद आपको सेहत के प्रति जागरूक करना है. लेकिन ऐसा लगता है कि हमारे देश के ज़्यादातर लोग सेहत को सिर्फ़ शारीरिक सेहत से जोड़कर देखते हैं. मानसिक सेहत से जोड़कर नहीं. हमें ये नज़रिया बदलना होगा. इससे पहले की काफी देर हो जाए. कुल मिलाकर इस पूरे विश्लेषण का सार ये है कि संवाद में संकोच मत कीजिए. क्योंकि संवाद से मन को शक्ति मिलती है और एक शक्तिशाली मन.. Depression पर आसानी से विजय प्राप्त कर सकता है.

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